UPSC सिविल सेवा परीक्षा: सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त प्रयास की मांग संबंधी याचिका खारिज की, कहा- 'सरकार को फैसला लेने दें'

Avanish Pathak

20 Feb 2023 4:03 PM GMT

  • UPSC सिविल सेवा परीक्षा: सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त प्रयास की मांग संबंधी याचिका खारिज की, कहा- सरकार को फैसला लेने दें

    सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने सोमवार को संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा को पास करने के लिए क्षतिपूर्ति प्रयास के लिए सिविल सेवा के उम्मीदवारों की याचिका खारिज कर दी।

    प्रारंभिक परीक्षा इस साल मई में होने वाली है, जबकि मुख्य परीक्षा सितंबर में आयोजित की जाएगी।

    याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि COVID-19 महामारी के कारण, उम्मीदवार जो उस अवधि में पात्र थे, अब या तो अनुमत प्रयासों की कुल संख्या समाप्‍त होने के कारण या आयु-वर्जित होने के कारण, अयोग्य हो गए हैं।

    याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया,

    “असंख्य UPSC CSE 2020 के उम्मीदवारों को अपना अंतिम प्रयास करने के लिए उचित और वैध अवसर से वंचित कर दिया गया। ऐसे कई वर्ग के लोग हैं जो इससे प्रभावित हो रहे थे। उम्मीदवारों की कुछ प्रभावित श्रेणियां, अन्य बातों के साथ-साथ, वे हैं जो परीक्षा की तारीख पर या उससे थोड़ा पहले COVID पॉजिटिव हो गए थे, जो कंटेनमेंट जोन के रूप में घोषित स्थानों पर रह रहे थे, जो फ्रंटलाइन वर्कर्स के रूप में देश की सेवा कर रहे थे, जो संबंध‌ित थे, इसलिए सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन न करने के कारण ठीक से परीक्षा नहीं दे सके, जो कोविड से संबंधित सह-रुग्णता आदि से पीड़ित थे।”

    हालांकि, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कृष्णन वेणुगोपाल और गोपाल शंकरनारायणन द्वारा की गई अपील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

    जस्टिस रस्तोगी ने कहा, 'हमें कहीं न कहीं एक रेखा खींचनी होगी। राहत की संभावना तलाशी गई। लेकिन एक बार जब इस अदालत ने विषय वस्तु पर फैसला कर लिया है, तो आप रिट याचिका के बाद याचिका दायर नहीं कर सकते हैं।"

    यह पहली बार नहीं है जब इस मुद्दे को शीर्ष अदालत में उठाया गया है। 2021 में, तीन-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें ज‌स्टिस रस्तोगी भी शामिल थे, ने केंद्र और आयोग को उन उम्मीदवारों को एक अतिरिक्त प्रयास देने के निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया था, महामारी के दौरान जिनके अंतिम प्रयास को समाप्त हो गए थे। रचना बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2021) 5 एससीसी 638।

    वेणुगोपाल ने सोमवार को आरोप लगाया कि अदालत को तब "कानून की सही स्थिति" के बारे में सूचित नहीं किया गया था। वरिष्ठ वकील ने आगे दावा किया कि उत्तरदाताओं की ओर से घोर झूठ और गलतबयानी की गई थी। "अब वे रचना के फैसले का उपयोग याचिकाकर्ताओं के अनुरोधों पर विचार नहीं करने के कारण के रूप में करते हैं।"

    वेणुगोपाल ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि 2022 की एक रिपोर्ट में, राज्यसभा की विभाग-संबंधित कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने सिफारिश की थी कि उम्मीदवारों को महामारी के दो साल के लिए अतिरिक्त प्रयास या ऊपरी आयु सीमा में छूट, जो भी लागू हो, एक बार के उपाय के रूप में मुआवजा दिया जाए। सीनियर एडवोकेट ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार संसदीय समिति की सिफारिशों पर कोई वास्तविक विचार करने में विफल रही है।

    ज‌स्टिस रस्तोगी ने जवाब दिया,

    “नीति के मामले में, सरकार को कॉल लेने दें। हमारे आदेश सरकार के आड़े नहीं आएंगे। लेकिन, अगर आप इस अदालत द्वारा न्यायिक समीक्षा या जांच चाहते हैं तो किसी बिंदु पर हमें रेखा खींचनी होगी। ”

    पिछले साल, संसदीय समिति ने सिफारिश की थी कि महामारी के कारण हुई 'अनकही पीड़ा और दुर्गम कष्टों' के कारण, सरकार को अपना विचार बदलना चाहिए और सहानुभूतिपूर्वक सीएसई उम्मीदवारों की मांग पर विचार करना चाहिए और आयु में छूट के साथ एक अतिरिक्त प्रयास प्रदान करना चाहिए।


    केस टाइटलः प्रीति भगवान अनहवाना व अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य। रिट पीटिशन (सिविल) नंबर 179 ऑफ 2023

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