यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा स्थगित नहीं की जा सकती, सुप्रीम कोर्ट ने यूपीएससी को दिया निर्देश लास्ट चांस वाले कैंडिडेट को एक अतिरिक्त मौका देने पर विचार करें

LiveLaw News Network

1 Oct 2020 10:49 AM GMT

  • यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा स्थगित नहीं की जा सकती, सुप्रीम कोर्ट ने यूपीएससी को दिया निर्देश लास्ट चांस वाले कैंडिडेट को एक अतिरिक्त मौका देने पर विचार करें

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उस याचिका को खारिज कर दिया है,जिसमें COVID19 महामारी के मद्देनजर संघ लोक सेवा परीक्षा (यूपीएससी) 2020 को स्थगित करने की मांग की गई थी।

    यह परीक्षा 4 अक्टूबर, 2020 आयोजित की जानी है। जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने परीक्षा को स्थगित करने से इनकार कर दिया है। वहीं यूपीएससी के साथ-साथ केंद्र को भी निर्देश जारी किया है कि जिन उम्मीदवारों का यूपीएससी की परीक्षा देने का यह लास्ट चांस या अंतिम प्रयास है,उनको वे ऊपरी आयु-सीमा का विस्तार किए बिना एक औैर अतिरिक्त मौका देने पर विचार करें।

    अदालत ने आगे उल्लेख किया कि हाल ही में कुछ परीक्षा आयोजित की गई थी, जो इस तथ्य का प्रमाण है कि गृह मंत्रालय द्वारा इन परीक्षाओं को आयोजित करवाने में एसओपी का पालन किया गया था।

    इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं द्वारा सभी राज्यों में परिवहन सुविधाओं की कमी की पुष्टि नहीं की गई है।

    1.अन्य निर्देशों के बीच, यूपीएससी को यह भी निर्देश दिया गया है कि वह सभी राज्यों को निर्देश जारी करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परीक्षा केंद्रों के पास स्थित होटलों में एडमिट कार्ड रखने वाले उम्मीदवारों को प्रवेश दिया जाए, क्योंकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग एसओपी हैं, जिसमें अन्य राज्यों से आने वाले व्यक्तियों को अपने राज्यों में प्रवेश की अनुमति न देना भी शामिल है।

    2. गृह मंत्रालय द्वारा जारी किए गए चिकित्सा प्रोटोकॉल के मद्देनजर, कोर्ट ने उन उम्मीदवारों को परीक्षा में उपस्थिति होने की अनुमति नहीं दी है जो COVID19 पाॅजिटिव हैं, क्योंकि इससे अन्य उम्मीदवारों को खतरा हो सकता है।

    3.अदालत ने एमएचए को यह भी निर्देश दिया है कि यदि मौजूदा दिशा-निर्देशों का अनुपालन करने में कोइ विफलता रहती है और कोई भी चूक बनी रहती है तो वह यूपीएससी को अनुपूरक दिशा-निर्देश जारी करे। इसके अलावा, एक केंद्र में 100 से अधिक छात्रों को समायोजित नहीं किया जा सकता है।

    4.कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के उस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया,जिसमें यूपीएससी 2021 प्रारंभिक के साथ यूपीएससी 2020 प्रारंभिक के विलय की मांग की गई थी या दोनों को एक साथ कराने की मांग की गई थी, क्योंकि इससे अन्य परीक्षाओं पर एक व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। वहीं (केंद्र सरकार के तहत काम कर रहे एक कोविड योद्धा )एक सिविल सर्विस के उम्मीदवार के पिता की तरफ से दायर से आवेदन के संबंध में न्यायालय ने कहा कि हस्तक्षेपकर्ता COVID अवधि के दौरान काम कर रहा था,इस दलील के आधार पर यूपीएससी द्वारा अब तक की गई व्यवस्था को विस्थापित नहीं किया जा सकता है। 24 सितंबर को जस्टिस एएम खानविल्कर और जस्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ ने मामले को 28 सितंबर के लिए पोस्ट किया था, लेकिन नोटिस जारी नहीं किया था।

    20 यूपीएससी के उम्मीदवारों ने 4 अक्टूबर को आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा 2020 के खिलाफ एडवोकेट अलख आलोक श्रीवास्तव के माध्यम से याचिका दायर की थी। उन्होंने प्रस्तुत किया था कि 7 घंटे लंबी यह ऑफलाइन परीक्षा, भारत के 72 शहरों में बनाए गए परीक्षा केंद्रों में लगभग छह लाख उम्मीदवारों द्वारा दी जाएगी, इस कारण यह परीक्षा COVID19 वायरस के आगे प्रसार का एक बड़ा स्रोत बन सकती है।

    इसलिए यह प्रस्तुत किया गया था कि यूपीएससी परीक्षा के लिए संशोधित कैलेंडर पूरी तरह से मनमाना है। वहीं संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उम्मीदवारों के स्वास्थ्य और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करने वाला है।

    याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि बीमारी या मृत्यु के खतरे के डर से, हो सकता है वह उक्त परीक्षा न दे पाएं। इस प्रकार, यह संशोधित कैलेंडर , उनके संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत अपना पेशा चुनने/ जनता की सेवा करने के अधिकार (राईट टू प्रैक्टिस) का उल्लंन करता है।

    आगे यह भी कहा गया कि संशोधित कैलेंडर वर्ग आधारित भेदभाव से ग्रस्त है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, क्योंकि महामारी के बीच परीक्षा दे रहे मध्यम वर्ग और/या निम्न मध्यम वर्ग से संबंधित छात्र परिवहन, आवास, या अन्य खर्च वहन करने में सक्षम नहीं होंगे। इसके अलावा, इसने संविधान के अनुच्छेद 16 का भी उल्लंघन किया है क्योंकि इसने कई लोगों को सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर से वंचित किया है।

    याचिकाकर्ताओं ने इसलिए 2 से 3 महीने के लिए सिविल सेवा परीक्षा को स्थगित करने की मांग की थी ताकि बाढ़/ लगातार बारिश समाप्त हो सकें , COVID19 का ग्राफ नीचे आ जाए और राज्य सरकारें को (जो अन्यथा,इस समय तैयार नहीं है) उक्त परीक्षा के एसओपी के कार्यान्वयन के लिए खुद को तैयार करने का अधिक समय मिल सकें।

    यह भी बताया गया कि सिविल सेवा परीक्षा, एक भर्ती परीक्षा होने के नाते, एक अकादमिक परीक्षा से पूरी तरह से अलग है और इस प्रकार इसके स्थगित होने की स्थिति में, किसी भी शैक्षणिक सत्र में देरी या नुकसान का कोई सवाल पैदा नहीं होता है।

    याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए अन्य आधार नीचे सूचीबद्ध हैं-

    - कई सिविल सेवा आकांक्षी या उम्मीदवार, पहले से ही विभिन्न अस्पतालों और/ या प्रशासनिक विभागों में फ्रंटलाइन COVID वारियर्स के रूप में काम कर रहे हैं। ऐसे में उनके लिए अपने काम की जगह छोड़कर परीक्षा केंद्रों तक पहुंचना मुश्किल ही नहीं होगा, बल्कि ऐसे महत्वपूर्ण समय पर उनके कार्यस्थल पर उनकी अनुपस्थिति से ब्व्टप्क्​रोगियों और / या ब्व्टप्क्​प्रबंधन को भारी परेशानी हो सकती है।

    - हाल ही में बड़े पैमाने पर आयोजित की गई इसी तरह की परीक्षाओं में, वस्तुतः किसी एसओपी का पालन नहीं किया गया, न ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हुआ और प्रतिवादियों की तरफ से किए गए सभी दावे धमीनी धरातल पर विफल हो गए थे।

    - भारत के प्रत्येक जिले में कम से कम एक परीक्षा केंद्र नहीं होने के कारण और इस तथ्य के कारण कि कई छात्र अपने पढ़ने की जगह से अपने गृहनगर वापिस लौट आए हैं, आज कई ऐसे छात्र हैं जिनके परीक्षा केंद्र उनके वर्तमान निवास स्थान से 1000 कि.मी. दूर हैं।

    - COVID19 को वायुजनित पाया गया है और कई मामलों में यह स्पर्शोन्मुख या अलक्षणी है। ऐसे में परीक्षा केंद्र में छात्रों /उनके माता-पिता के बड़ी संख्या में एकत्रित होने के कारण इसके तेजी से बढ़ने की संभावना रहेगी।

    - कई जिले /नगर निकाय ने अभी भी अपने क्षेत्रों में पूर्ण लॉकडाउन लागू कर रखा है। कई बड़े शहरों में कई कंटेनमेंट जोन हैं। ऐसे क्षेत्रों में छात्रों की आवाजाही प्रतिबंधित है, जिससे उनको काफी परेशानी होगी।

    - छात्रों को परीक्षा वाले दिन 7-8 घंटे से अधिक समय तक मास्क पहनने की आवश्यकता होगी और इससे ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाएगा और इसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क की काम करने की गति धीमी हो जाएगी। इस प्रकार छात्रों के स्वास्थ्य के हित को देखते हुए भी इस परीक्षा को स्थगित करना भी न्याय के हित में है।

    - यहां तक कि अनलॉक -4 दिशानिर्देशों के अनुसार, सभी पुस्तकालय, कॉलेज, शैक्षणिक और कोचिंग संस्थान भी बंद हैं। जिस कारण कई उम्मीदवार उक्त परीक्षा की पर्याप्त तैयारी करने से वंचित हो गए हैं।

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