Uphaar Cinema Tragedy | सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं द्वारा चुकाई गई जुर्माने की राशि से निर्मित ट्रॉमा सेंटरों के निरीक्षण का प्रस्ताव रखा

Shahadat

23 Sept 2025 4:15 PM IST

  • Uphaar Cinema Tragedy | सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं द्वारा चुकाई गई जुर्माने की राशि से निर्मित ट्रॉमा सेंटरों के निरीक्षण का प्रस्ताव रखा

    1997 के उपहार सिनेमा अग्निकांड के पीड़ितों से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन ट्रॉमा सेंटरों के निरीक्षण का आदेश दिया, जिनके निर्माण के बारे में कहा गया कि वे अंसल बंधुओं पर लगाए गए 60 करोड़ रुपये के जुर्माने से बनाए गए।

    जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मामले की सुनवाई की और सीनियर एडवोकेट जयंत मेहता (याचिकाकर्ता-उपहार त्रासदी पीड़ितों के संघ की ओर से) को निरीक्षण के लिए किसी को नियुक्त करने का निर्देश दिया।

    सुनवाई के दौरान, मेहता ने 2015 में अंसल बंधुओं को रिहा करते समय अदालत द्वारा जारी निर्देशों के क्रियान्वयन की मांग वाली याचिका पर बहस की। उन्होंने दावा किया कि दोषियों ने अदालत द्वारा दिखाई गई उदारता का लाभ उठाया। हालांकि, उस समय सौंपी गई ज़िम्मेदारियों को पूरा नहीं किया। उन्होंने आगे बताया कि अदालत के निर्देशों के अनुसार, दिल्ली विद्युत बोर्ड को 5 एकड़ ज़मीन आवंटित करनी थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

    मेहता ने तर्क दिया,

    "दोषियों की सज़ा कम कर दी गई और उन्हें ट्रॉमा सेंटर बनाने के लिए कहा गया...60 करोड़ रुपये बेकार हो गए। एक बार बजट में जाने के बाद यह पता लगाना असंभव है कि पैसा कहाँ खर्च हुआ। ट्रॉमा सेंटर पीड़ितों की स्मृति में था...दोषी बच निकले, कोई दायित्व पूरा नहीं हुआ। डीवीबी को 5 एकड़ ज़मीन देनी थी। अदालत का आदेश अंतिम होने के बावजूद आज तक कोई ज़मीन नहीं दी गई। उन्हें लाभ तो मिला, लेकिन उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं की...आज तक इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए कोई समिति नहीं बनाई गई..."

    अदालत ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे से पूछा कि क्या अंसल बंधुओं से 60 करोड़ रुपये की पूरी जुर्माने की राशि प्राप्त हुई और उसका उपयोग किया गया। हां में जवाब देते हुए एएसजी ने दिल्ली भर में चल रही तीन बड़ी अस्पताल परियोजनाओं, जिनमें ट्रॉमा सेंटर हैं, का ज़िक्र किया और बताया कि द्वारका में एक इंदिरा गांधी अस्पताल पहले से ही चल रहा है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि 60 करोड़ रुपये की राशि "बहुत कम" है।

    जस्टिस कांत ने सहमति जताते हुए कहा कि ट्रॉमा सेंटर के निर्माण के मामले में यह राशि "ना के बराबर" है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि फैसले को कई साल बीत चुके हैं। जज ने कहा कि सरकार ने ट्रॉमा सेंटर के निर्माण पर जुर्माने के रूप में मिले 60 करोड़ रुपये से भी ज़्यादा सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए।

    जज ने टिप्पणी की,

    "60 करोड़ रुपये (जुर्माना) तो ना के बराबर है...सरकार ने सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च कर दिए...हम और क्या उम्मीद कर सकते हैं? क्या आपको लगता है कि द्वारका अस्पताल हवा में बना है? क्या यह सरकारी ज़मीन नहीं है? क्या आपको पता है कि इस अस्पताल के निर्माण में कितनी ज़मीन का इस्तेमाल हुआ है? क्या आपको लगता है कि दिल्ली में 60 करोड़ रुपये में 5 एकड़ ज़मीन उपलब्ध है?"

    अंततः, जस्टिस कांत ने प्रस्ताव दिया कि ट्रॉमा सेंटरों का दौरा करके यह पता लगाया जाए कि वे ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं। पीठ ने यह भी सुझाव दिया कि इस मामले को विरोधात्मक मुकदमे में न बदला जाए।

    जस्टिस कांत ने टिप्पणी की कि पीठ समीक्षा के लिए नहीं बैठी है और एकमात्र चिंता यह है कि क्या 2015 के फैसले में उल्लिखित ट्रॉमा देखभाल सुविधाएं ठीक से उपलब्ध कराई गईं या नहीं।

    इसलिए मेहता से कहा गया कि वह किसी व्यक्ति को ट्रॉमा सेंटरों का दौरा करने और यह पता लगाने के लिए नियुक्त करें,

    - क्या वे ठीक से काम कर रहे हैं?

    - क्या उनके पास 24/7 आपातकालीन कर्मचारी उपलब्ध हैं?

    - क्या ट्रॉमा सेंटरों में किसी संकट का तुरंत समाधान करने के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं या नहीं?

    - क्या उनके पास परिवहन आदि की अन्य सुविधाएं हैं?

    - ट्रॉमा सेंटर कितने आपातकालीन मामलों को तुरंत संभाल सकते हैं?

    उपरोक्त सुझाव देने के बाद जस्टिस कांत ने कहा,

    "हम आगे की व्यवस्था के लिए कुछ कर सकते हैं..."।

    जब मेहता ने बताया कि भूमि आवंटन का निर्देश जुर्माना राशि लगाने के अतिरिक्त है तो पीठ ने यह कहते हुए मामले को स्थगित कर दिया कि पहले ट्रॉमा सेंटरों का दौरा किया जा सकता है।

    Case Title: ASSOCIATION OF VICTIMS OF UPHAR TRAGEDY Versus SUSHIL ANSAL AND ORS., MA 743-745/2025 in Crl.A. No. 600-602/2010

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