अभियुक्त को सहअभियुक्त की गवाही के आधार पर दोषी ठहराना सुरक्ष‌ित नहींः सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

4 Jun 2020 9:37 AM GMT

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    Supreme Court of India

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी अभियुक्त को सहअभियुक्त की अपुष्ट गवाही के आधार पर दोषी ठहराना सुरक्षित नहीं है। जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, केएम जोसेफ और वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि एक सहअ‌‌भ‌ियुक्त को अपनी गवाही के भौतिक विवरणों की पुष्टि करनी चाहिए।

    अदालत ने तमिलनाडु के पूर्व विधायक एमके बालन के अपहरण और हत्या के दोषियों का दोष बरकरार रखा। 2001 के इस मामले में एक डिवीजन बेंच के विभाजित फैसले के बाद 3 जजों की बेंच के पास भेजा गया था। इस मामले में, न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के दो प्रावधानों के बीच विरोधाभास पर चर्चा की।

    साक्ष्य अधिनियम की धारा 133 में कहा गया है कि एक सह-अपराधी एक सक्षम गवाह होता है और सहअपराधी की अपुष्ट गवाही पर आधारित दोष मात्र इस आधार पर अवैध नहीं है कि गवाही अपुष्ट है। जबकि साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 का इलस्ट्रेशन 'बी', यह कहता है कि कोर्ट यह मान सकती है कि सहअपराधी भरोस योग्य नहीं है, जब तक कि वो जब तक कि वह भौतिक पुष्टि न कर दे।

    न्यायालय ने कहा कि इन दो प्रावधानों के आपसी ‌विरोधाभासों पर ध्यान दिया जा चुका है, सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरवन सिंह रतन सिंह बनाम पंजाब राज्य, हारूम हाजी अब्दुल्ला बनाम महाराष्ट्र राज्य, शेषन्ना भूमन्ना यादव बनाम राज्य मामले में समझाया जा चुका है। बेंच ने के हाशिम बनाम तमिलनाडु राज्य (2005) 1 SCC 237 के मामले में की ‌निम्न टिप्पणियों को विशेष रूप से रेखांकित किया:

    -यह आवश्यक नहीं है कि इस मामले में हर भौतिक परिस्थिति की स्वतंत्र पुष्टि होनी चाहिए कि मामले में स्वतंत्र सबूत, शिकायतकर्ता या सहअपराधी की गवाही के अलावा, अपने आप में दृढ़ विश्वास बनाए रखने के लिए पर्याप्त होना चाहिए

    - यह आवश्यक है कि यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ अतिरिक्त सबूत होने चाहिए कि यह सहअपराधी (या शिकायतकर्ता) की कहानी सही है और कार्रवाई करने के लिए उचित रूप से सुरक्षित है।

    -इसका मतलब यह नहीं है कि पहचान के रूप में पुष्टि को अभियुक्त की पहचान करने के लिए आवश्यक सभी परिस्थितियों तक विस्तारित होना चाहिए।

    - पुष्टि स्वतंत्र स्रोतों से होनी चाहिए और एक सहअपराधी की गवाही दूसरे सहअपराधी की गवाही की पुष्टि के लिए पर्याप्त नहीं होगी। हालांकि परिस्थितियां ऐसी हो सकती हैं, जिसमें पु‌‌‌ष्ट‌ि की आवश्यकता को सुरक्षित किया जा सके, उन विशेष परिस्थितियों में दोष सिद्ध‌ि अवैध नहीं होगी।

    -पुष्टि इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं होना चाहिए कि अभियुक्त ने अपराध किया है। यदि यह अपराध के साथ उसके संबंध का परिस्थितिजन्य साक्ष्य है तो पर्याप्त होगा।

    बेंच ने कहा,

    साक्ष्य अधिनियम धारा 133, धारा 114 के इलस्ट्रेशन (b)के साथ पढ़ें, का संयुक्त परिणाम यह है कि अदालतों, विवेक के एक नियम के रूप में, आवश्यकता का विकास किया है कि किसी अभियुक्त को केवल सहअपराधी की अपुष्ट गवाही के आधार पर दोषी ठहराना असुरक्षित होगा। सहअपराधी की गवाही की सामग्री विशेष के संबंध में पु‌ष्टि होनी चाहिए। यह स्पष्ट है कि एक सहअपराधी को अपराध की सामान्य रूपरेखा से परिचित होना चाहिए क्योंकि उसने अपराध में भाग लिया है और इसलिए, वास्तव में, सामान्य शब्दों में मामले से परिचित होना चाहिए। एक विशेष अभियुक्त और अपराध के बीच संबंध जोड़ने के लिए एक साथी की गवाही की पुष्टि महत्वपूर्ण महत्व होगी।

    केस नं : CRIMINAL APPEAL N0. 403 of 2010

    केस टाइटल: सोमसुदंरम @ सोमू बनाम द स्टेट

    कोरम: जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, केएम जोसेफ और वी रामासुब्रमण्यन

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