गैर-पंजीकृत व्यक्ति आर्किटेक्चर का काम कर सकते हैं, लेकिन वे खुद को आर्किटेक्ट नहीं कह सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

18 March 2020 5:19 AM GMT

  • गैर-पंजीकृत व्यक्ति आर्किटेक्चर का काम कर सकते हैं, लेकिन वे खुद को आर्किटेक्ट नहीं कह सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्किटेक्ट्स एक्ट की धारा 37 आर्किटेक्ट्स एक्ट के तहत गैर-पंजीकृत व्यक्तियों को आर्किटेक्चर और इसकी संज्ञानात्मक गतिविधियों की प्र‌ैक्टिस करने से रोकती नहीं है।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि आर्किटेक्ट, एसो‌सिएसट आर्क‌िटेक्ट नामक पदों पर या ऐसे ही प्रारूप के पदों पर ऐसे व्यक्तियों को नहीं रखा जा सकता, जिनका पंजीयन आर्किटेक्ट्स एक्ट के तहत आर्किटेक्ट्स के रूप में नहीं है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आर्किटेक्चर काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से दायर अपील में सुप्रीम कोर्ट ने इन दो प्रश्नों पर विचार किया। (1) क्या आर्किटेक्ट्स एक्ट की धारा 37 आर्किटेक्ट्स एक्ट के तहत गैर-पंजिकृत आर्किटेक्ट्स को डिजाइन, निरीक्षण और बिल्डिंग निर्माण जैसे गतिविधियों की प्रैक्टिस करने से रोकती है।

    और (ii) क्या 'आर्किटेक्ट, एसोसिएट आर्किटेक्ट या ऐसे ही प्रारूप की पोस्ट पर किसी ऐसे व्यक्ति को रखा जा सकता है, जिसने द्वारा आर्किटेक्ट एक्ट के तहत पंजीकरण नहीं कराया है?

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में माना था कि धारा 37 अपंजीकृत व्यक्तियों को "आर्किटेक्ट" टाइटल का उपयोग करने से रोकती है। उन्होंने कहा था कि पदोन्नति नीति 2005 ने एसोसिएट आर्किटेक्ट के क्लास II के पद पर आर्किटेक्चर की डिग्री नहीं रखने वाले व्यक्तियों की न‌ियुक्ति की अनुमति दी थी, हालांकि इसने आर्किटेक्ट अधिनियम की धारा 37 का उल्लंघन नहीं किया था।

    प्रैक्टिस पर प्रतिबंध नहीं

    पहले प्रश्न का उत्तर देते हुए बेंच ने धारा 37 में दिए गए वाक्यांश "कोई भी व्यक्ति ... आर्किटेक्ट टाइटल और स्टाइल का उपयोग नहीं करेगा" पर चर्चा की।

    पीठ ने कहा-

    यह स्पष्ट है कि विधायिका ने गैर-पंजीकृत व्यक्तियों को आर्किटेक्चर और संबंधित गतिविधियों की प्रैक्टिस से रोका नहीं है। जैसा कि भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम के तहत चिकित्सकों या सर्जनों के मामले में या अधिवक्ता अधिनियम के तहत अधिवक्ताओं के मामले में है। विधायिका ने जानबूझकर आर्किटेक्ट्स के मामले में कम कड़े उपाय किए, जिसके तहत गैर-पंजीकृत व्यक्तियों को केवल आर्किटेक्ट "टाइटल और स्टाइल" का उपयोग करने से रोका गया है।

    आर्किटेक्ट्स एक्ट का उद्देश्य और कारणों का विवरण स्पष्ट करता है कि विधायिका निस्संदेह रूप से अयोग्य व्यक्तियों द्वारा इमारतों का निर्माण किए जाने और उनसे होने वाले खतरों से चिंतित थी।

    इस जोखिम से बचाव के लिए, विधायिका ने सबसे पहले वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त योग्यताओं का एक न्यूनतम मानक निर्धारित किया, जिसे एक व्यक्ति को आर्किटेक्ट एक्ट के तहत एक आर्किटेक्ट के रूप में नामित होने से पहले पूरा करना होता है। यह अधिनियम की धारा 14, 15 और 17 के तहत किया जाता है।

    इसके बाद, विधायिका ने व्यक्तियों के दो वर्ग बनाए: प्रथम श्रेणी में पंजीकृत आर्किटेक्ट शामिल थे, जो इन न्यूनतम योग्यताओं को पूरा करते थे और दूसरी श्रेणी में अपंजीकृत व्यक्तियों को शामिल किया गया, जो इन न्यूनतम योग्यताओं को पूरा नहीं करते थे।

    यह आर्किटेक्ट्स अधिनियम की धारा 2 (ए), 17, 23 और 35 का का प्रभाव है। महत्वपूर्ण रूप से, विधायिका ने "आर्किटेक्ट" को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया, जिसने आर्किटेक्ट्स एक्ट के तहत पंजीकृत किया हो, न कि किसी ऐसे व्यक्ति को जिसने आर्किटेक्ट या किसी भी संज्ञानात्मक गतिविधियों की प्रैक्टिस किया हो।

    इस प्रकार, विधायिका ने आर्किटेक्ट अधिनियम के तहत बनाए गए नियामक शासन को व्यक्तियों के प्रथम वर्ग तक सीमित कर दिया। जनता को दूसरे वर्ग, अप्रशिक्षित व्यक्तियों के जोखिम से बचाने के लिए, विधायिका के पास दो विकल्प थे: पहला यह व्यक्तियों के इस दूसरे वर्ग को पेशे में शामिल होने से रोक सकता था (जैसा कि इसने चिकित्सकों और अधिवक्ताओं के साथ किया था); या वैकल्पिक रूप से यह व्यक्तियों के इस दूसरे वर्ग को खुद को "आर्किटेक्ट" कहने से रोक सकता है।

    उद्देश्यों और कारणों का विवरण यह स्पष्ट करता है कि विधायिका ने दूसरा विकल्प चुना था और वास्तव में उस विकल्प को स्पष्ट करने के लिए बड़ी लंबाई गई थी।

    विधायिका ने कहा था कि कानून के पारित होने के बाद एक अपंजीकृत व्यक्ति के लिए खुद को आर्किटेक्ट के रूप में नामित करना गैरकानूनी होगा। साथ ही यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कानून आर्किटेक्ट के "टाइटल" की रक्षा करता है, लेकिन पंजीकृत आर्किटेक्ट को इमारतों के डिजाइन, पर्यवेक्षण और निर्माण का कार्य करने का विशेष अधिकार नहीं देता है। अन्य संज्ञानात्मक पेशे या अपंजीकृत व्यक्ति इन गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं बशर्ते कि वे खुद को "आर्किटेक्ट्स" न कहें।

    कोर्ट ने आगे कहा कि यह ठीक नहीं होगा कि नियामक दृष्टि से सभी प्रोपेशनल्स को, जो निर्माण प्रक्रिया में शामिल हैं, आर्किटेक्चर में डिग्री लेने को कहा जाए। आर्किटेक्ट्स की गतिविधियों पर ध्यान देते हुए पीठ ने कहा-

    आर्किटेक्ट्स ये इन गतिविधियों में शामिल रहते हैं, लेकिन उनके साथ ही कई अन्य लोग भी इन गतिविधियों में शामिल होते हैं, जिनमें बिल्डर्स, इंजीनियर और डिज़ाइनर आदि शामिल हैं।

    यदि विधायिका अपंजीकृत व्यक्तियों को "‌आर्किटेक्चर की गतिविधियों में शामिल होने पर" पूर्ण प्रतिबंध लगाती है, तो इस बात पर काफी भ्रम होगा कि किन गतिविधियों को आर्किटेक्चर माना जाए और किन्हें नहीं।

    इसके परिणामस्वरूप कई ऐसे पेशेवरों को इमारतों के डिजाइन, पर्यवेक्षण और निर्माण में शामिल होने से मात्र इसलिए रोक दिया जाएगा, क्योंकि वे आर्किटेक्ट्स एक्ट के तहत पंजीकृत नहीं थे।

    अपंजीकृत व्यक्तियों ने खुद को "आर्किटेक्ट" के रूप में संबोधित करने रोका

    दूसरे प्रश्न का उत्तर देते हुए, पीठ ने उच्च न्यायालय से असहमति जताई और कहा कि धारा 37 अपंजीकृत व्यक्तियों को खुद को "आर्किटेक्ट" के रूप में संदर्भित करने से रोकती है। पीट ने कहा-

    हमने यह माना है कि धारा 37 अपंजीकृत व्यक्तियों को आर्किटेक्ट का अभ्यास करने से रोकती नहीं है, हालांकि यह अपंजीकृत व्यक्तियों को आर्किटेक्ट "टाइटल और स्टाइल" का उपयोग करने से रोकती है।

    आर्किटेक्ट्स एक्ट की योजना के तहत, केवल वैधानिक मान्यता प्राप्त न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता रखने वाले व्यक्ति ही एक्ट के तहत "आर्किटेक्ट" के रूप में पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकते हैं। क़ानून के तहत एक आर्क‌िटेक्ट के रूप में पंजीकरण कुछ न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता रखने की गारंटी है। धारा 37 अपंजीकृत व्यक्तियों को खुद को नामित करने या खुद को "आर्किटेक्ट" के रूप में संदर्भित करने से रोकती है।

    कोर्ट ने कहा कि NOIDA ऐसे व्यक्तियों को बढ़ावा नहीं दे सकता है या भर्ती नहीं कर सकता है, जिन्हें आर्किटेक्ट्स एक्ट के तहत मान्यता प्राप्त आर्किटेक्चर डिग्री नहीं ली है।

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