अनुच्छेद 32 के तहत हम तथ्यों के पहलुओं में नहीं जा सकते : सुप्रीम कोर्ट ने बदले की भावना से किये गये तबादले को चुनौती देने वाली बैंक कर्मचारी की याचिका सुनने से इनकार किया

LiveLaw News Network

25 Nov 2020 4:55 PM IST

  • अनुच्छेद 32 के तहत हम तथ्यों के पहलुओं में नहीं जा सकते : सुप्रीम कोर्ट ने बदले की भावना से किये गये तबादले को चुनौती देने वाली बैंक कर्मचारी की याचिका सुनने से इनकार किया

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा,

    "संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत हम तथ्यों की तह में नहीं जा सकते। यदि हम इस तरह कार्य करते हैं तो हमारी अदालती प्रणाली ध्वस्त हो जायेगी।"

    न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की खंडपीठ यस बैंक के एक कर्मचारी शीलेश शिवशंकरण की याचिका की सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने बैंक में गड़बड़ी के खिलाफ आवाज उठाने के कारण बदले की भावना से किये गये तबादले को चुनौती दी थी तथा इस मामले की जांच का भारतीय रिजर्व बैंक को आदेश देने की मांग की गयी थी।

    न्यायमूर्ति भट ने सुनवाई के दौरान कहा,

    "आप ही इकलौते नहीं हैं। यदि हम इस तरह कार्य करते हैं तो हमारी अदालती प्रणाली ध्वस्त हो जायेगी। अनेक फोरम उपलब्ध हैं- यदि आप कामगार हैं तो आप या तो औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत जा सकते हैं या मुकदमे के तहत यहां आ सकते हैं।"

    न्यायमूर्ति ललित ने कहा,

    "आपकी शिकायत यह है कि आपको आपके मुख्य कार्य से हटाकर दूसरे पद पर तबादला कर दिया गया? लेकिन आप अन्य सभी अदालतों को नजरंदाज करके अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट नहीं आ सकते। इस मामले में पहले से ही कानून तय है कि नियमित तबादलों के मामले में सुप्रीम कोर्ट सामान्य तौर पर हस्तक्षेप नहीं करेगा। इतना ही नहीं, आप यस बैंक के कर्मचारी हैं, जो निजी क्षेत्र का बैंक है। इसलिए, हम अनुच्छेद 32 के तहत हस्तक्षेप नहीं कर सकते।"

    उन्होंने आगे कहा,

    "आप कह रहे हैं कि तबादला प्रतिशोध की कार्रवाई का परिणाम है? यह तथ्यात्मक मसला है और इसकी तहकीकात की जरूरत है। हम अनुच्छेद 32 के तहत इसके तथ्यात्मक पहलुओं में नहीं जा सकते, एक बार के लिए भी नहीं। आप इस याचिका को वापस ले लीजिए अन्यथा हमें इसे खारिज करना होगा।"

    पिटीशनर – इन- पर्सन ने कहा,

    "आप (लॉर्डशिप) चाहते हैं तो इस याचिका को खारिज कर सकते हैं। लेकिन मैं यह सोचते हुए यहां से भारी मन से जाऊंगा कि मैं न्याय से वंचित रह गया। यह मामला मेरी जिन्दगी और आजीविका से संबंधित है। यह ज्ञात है कि मैंने बैंक में गड़बड़ी को लेकर आवाज उठायी थी और नौ माह बाद, बैंक ध्वस्त हो गया। यह सामान्य तबादला आदेश नहीं हैं। मेरे पास इस बात के रिकॉर्ड मौजूद हैं कि मुझे धमकी दी गयी थी कि मेरा तबादला कर दिया जायेगा और मेरा कैरियर बर्बाद कर दिया जायेगा। कल, वे लोग मुझे बर्खास्त भी कर सकते हैं। मुझे पीएमएलए में विशेषज्ञता प्राप्त है और मेरा तबादला फेमा जैसे अज्ञात डोमेन में कर दिया गया है, जिसमें मुझे विशेषज्ञता हासिल करने के लिए 10 साल लग जायेंगे। मैंने निवेशकों और जमाकर्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए बैंक में गड़बड़ी को लेकर आवाज उठायी थी। यदि (लॉर्डशिप) आप मुझे संरक्षित नहीं करेंगे तो गड़बड़ी को लेकर आगे कौन आवाज बुलंद करेगा? हम जानते हैं कि हर रोज बैंक प्रबंधनों द्वारा धोखाधड़ी की जाती है।"

    न्यायमूर्ति ललित ने कहा,

    "पीएमएलए और फेमा लगभग जुड़े हुए हैं। बैंकिंग क्षेत्र में इन दिनों लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सभी क्षेत्रों में विशेषज्ञ हों।"

    न्यायमूर्ति ललित ने कहा,

    "एडजेक्टिव्स मत बनाइए। आपकी जान को कहां खतरा है? आपकी आजीविका को कैसे नुकसान है? आपको केवल पद 'ए' से पद 'बी' पर भेज दिया गया है। यदि आप यह कहते हैं कि आपका तबादला प्रतिशोधात्मक कार्रवाई के तहत की गयी, तब इस मुद्दे का तथ्यात्मक आंकलन और विश्लेषण करना आवश्यक होगा तथा अनुच्छेद 32 के अधिकार क्षेत्र के तहत यह निर्धारित करना संभव नहीं है कि यह (तबादला) बदले की भावना से किया गया था या नहीं।"

    बेंच ने आदेश दिया,

    "अनुच्छेद 32 में, सुप्रीम कोर्ट से तथ्यों के पहलुओं में जाने की अपेक्षा नहीं की जाती है। इन सभी प्रश्नों को उचित तरीके से शुरू किये गये मुकदमे में उठाया जा सकता है।"

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