''यूजीसी दिशानिर्देश छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते'' : अंतिम वर्ष की परीक्षाएं रद्द/स्थगित करने के विरोध में एक प्रोफेसर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे
LiveLaw News Network
29 July 2020 9:09 PM IST

पुणे के एक प्रोफेसर डीआर कुलकर्णी ने यूजीसी दिशानिर्देशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के मामले में एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया है। यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों के लिए यह अनिवार्य कर दिया था कि वह अपनी अंतिम वर्ष की परीक्षाएं 30 सितंबर तक करवा लें।
इस आवेदक ने आयोग के समर्थन में हस्तक्षेप करने की मांग की है। इस आवेदन में कहा गया है कि यूजीसी की तरफ से जारी दिशानिर्देश छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते हैं।
शुक्रवार को शीर्ष अदालत के समक्ष चार याचिकाएं सूचीबद्ध की गई थी। जिनमें मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से 6 जुलाई को जारी अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई थी। वहीं यूजीसी के उन दिशानिर्देश को भी रद्द करने की मांग की गई थी,जिनके तहत 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षाएं आयोजित करवाना अनिवार्य किया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि यूजीसी की तरफ से सभी राज्य सरकारों को अनुमति दी जानी चाहिए ताकि वह पिछले प्रदर्शन के आधार पर अंतिम वर्ष के छात्रों को उत्तीर्ण कर सकें।
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की खंडपीठ ने इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को निर्देश दिया था कि वे 29 जुलाई तक सभी याचिकाओं के संबंध में आयोग की तरफ से जवाब दायर करें।
आवेदक की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विनय नवारे और अधिवक्ता अभय अंतूरकर पेश हुए और तर्क दिया कि परीक्षाओं को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित नहीं किया जा सकता है।
यह भी दलील दी कि-
'' अंतिम तिथि तय करते समय अंतिम वर्ष के छात्रों के हित को ध्यान में रखना होगा ... परीक्षाओं को अनिश्चित अवधि के लिए स्थगित करना अनुचित और मनमाना होगा।''
इसके अलावा यह तर्क भी दिया गया है कि याचिकाकर्ताओं की यह दलील भी ''पूरी तरह से आधारहीन'' है कि परीक्षा आयोजित करवाने से छात्रों, कर्मचारियों और समाज के अन्य सदस्यों के जीवन के लिए खतरा पैदा करेगा।
''याचिकाकर्ता इस बात पर विचार करने में विफल रहे हैं कि संशोधित दिशानिर्देशों में स्वयं प्रतिवादी नंबर एक-यूजीसी ने संबंधित विश्वविद्यालयों को ऑफलाइन (पेन व पेपर) मोड, या ऑनलाइन मोड, या हाइब्रिड मोड (दोनों,ऑफलाइन व आॅनलाइन) में परीक्षा आयोजित करवाने की अनुमति दे दी थी। इस प्रकार, विश्वविद्यालय अपने क्षेत्र की स्थिति स्थिति को ध्यान में रखते हुए परीक्षा आयोजित करवाने के पूर्वोक्त तरीकों में से किसी एक तरीके को चुन सकते हैं ...''
उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया है कि यह दिशानिर्देश संवैधानिक रूप से ''मजबूत'' हैं क्योंकि इनको यूजी अधिनियम के सेक्शन 12 (आयोग के कार्य) रिड विद सेक्शन 26 (नियम बनाने की शक्ति) से ताकत मिलती है।