UAPA केसः एनआईए ने एलन शोएब की जमानत को चुनौती दी; सुप्रीम कोर्ट ने इसे थवाहा फजल की जमानत याचिका के साथ टैग किया

LiveLaw News Network

30 July 2021 4:00 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उसने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देते हुए एक विशेष अनुमति याचिका दायर की है, जिसमें हाईकोर्ट ने लाॅ के छात्र एलन शोएब को दी गई जमानत के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था। कथित तौर पर माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में शोएब के खिलाफ यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया है।

    केंद्रीय एजेंसी ने यह सबमिशन उस समय दी, जब सुप्रीम कोर्ट एलन के सह-आरोपी थवाहा फजल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो कि एक पत्रकारिता का छात्र है। फजल ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें विशेष एनआईए कोर्ट द्वारा उसे दी गई जमानत को रद्द कर दिया था।

    अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने पीठ को बताया कि एसएलपी कल शाम दायर की गई है।

    एनआईए के सबमिशन के आधार पर, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने दोनों मामलों को एक साथ टैग कर दिया और उन्हें आगे की सुनवाई के लिए 24 अगस्त को पोस्ट कर दिया है।

    हालांकि थवाहा फजल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर बसंत ने अंतरिम राहत का अनुरोध किया, लेकिन पीठ ने कहा कि इस पर फिलहाल विचार नहीं किया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति सिन्हा ने कहा, ''इस समय नहीं। एक याचिका जमानत को चुनौती देने वाली है और दूसरी याचिका में जमानत देने की मांग की जा रही है। दोनों पर एक साथ विचार किया जाना चाहिए।''

    इसी साल 4 जनवरी को केरल हाईकोर्ट द्वारा पारित उस फैसले के खिलाफ यह याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसने विशेष एनआईए कोर्ट के उन निष्कर्षों को उलट दिया था कि आरोप पत्र के आधार पर आरोपियों के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है। हालांकि, हाईकोर्ट ने एलन शोएब को उसकी कम उम्र और अवसाद से संबंधित उसके मनोरोग संबंधी मुद्दों को देखते हुए दी गई जमानत में हस्तक्षेप नहीं किया था।

    विशेष अदालत ने पिछले साल सितंबर में दिए अपने आदेश में कहा था कि आरोपियों के खिलाफ कोई ऐसा प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है, जिससे उनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम की धारा 43डी(5) लागू हो।

    विशेष अदालत ने पाया कि मामले की सामग्री, अधिक से अधिक, यह सुझाव देती है कि आरोपी का माओवादियों के प्रति झुकाव था, लेकिन वह किसी भी तरह की हिंसा या हिंसा के लिए उकसाने में शामिल नहीं था। हाईकोर्ट ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड पर आए दस्तावेजों का ऐसा ''थ्रेड-बेयर विश्लेषण'' किया, जैसा ट्रायल में किया जाता है। साथ ही कहा कि अभियुक्तों से जब्त किए गए दस्तावेज ''अत्यधिक उत्तेजनशील और अस्थिर'' थे।

    अप्रैल में, सुप्रीम कोर्ट ने फजल की याचिका पर नोटिस जारी किया था और मौखिक रूप से कहा था कि ''ट्रायल कोर्ट ने भी समान रूप से तर्कसंगत आदेश पारित किया है।''

    यह मामला सबसे पहले केरल पुलिस ने नवंबर 2019 में दर्ज किया था। बाद में, एनआईए ने मामले को अपने हाथ में ले लिया। पिछले हफ्ते, फजल की तरफ से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि फजल एक युवा छात्र है और उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं रहा है। वरिष्ठ वकील ने यह भी कहा था कि वह एक गरीब पृष्ठभूमि से है और 500 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में रहा है।

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