"टीवी एंकर, सरकार के बयानों को बढ़ावा देने के लिए हेट स्पीच को फैलाना पसंद करते हैं": डॉ कोटा नीलिमा और संगीता त्यागी ने सुदर्शन टीवी मामले में हस्तक्षेप की मांग की
LiveLaw News Network
24 Sept 2020 8:42 PM IST
प्रसिद्ध लेखिका और शोधकर्ता डॉ कोटा नीलिमा और स्वर्गीय श्री राजीव त्यागी (कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता) की पत्नी संगीता त्यागी ने सुप्रीम कोर्ट में सुदर्शन टीवी के शो के प्रसारण के खिलाफ चल रहे मामले में हस्तक्षेप किया है।
एडवोकेट सुनील फर्नांडीस द्वारा दायर अर्जी में कहा गया है कि सुदर्शन टीवी का शो, चैनल के मुख्य संपादक सुरेश चव्हाणके जिसके एंकर हैं, "वृहत्तर छल और दुर्भावना का प्रतीक" हैं, जिसने देश में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के टीवी एंकरों के संक्रमित कर दिया है, जैसे कि वो "प्राइम टाइम" में हेट स्पीच में संलिप्त हैं।
उपरोक्त मुद्दों पर याचिका में कहा गया है, "हमारे देश में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की स्थिति, आवेदकों का सर्वाधिक सम्मानजनक प्रस्तुतिकरण है कि , नाजी जर्मनी के साथ दुखद और अवांछनीय समानताएं रखती हैं, कम से कम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में "हेट स्पीच" के संबंध में, और इसलिए, आवेदकों का मानना है कि वे अपने संवैधानिक कर्तव्य में विफल हो जाते, यदि वे तत्कालीन आवेदन के साथ माननीय न्यायालय से संपर्क नहीं करते।"
आवेदकों का कहना है कि स्वर्गीय श्री राजीव त्यागी दिनांक 12.08.2020 की शाम 5 बजे एक टीवी डिबेट में तब 'हेट स्पीच' के दुर्भाग्यपूर्ण शिकार हुए थे, जब बेंगलुरु में हुई हिंसा की चर्चा में उन्हें बार-बार "जयचंद" कहा गया (यह एक अपमानजनक रूपक है, जिसे इन दिनों ऐसे हिंदूओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो दक्षिणपंथी कट्टरपंथी विचारधारा का समर्थन नहीं करते)। नतीजतन, स्वर्गीय श्री राजीव त्यागी को बहस के तुरंत बाद उसी दिन दिल का घातक दौरा पड़ा, जिससे वे उबर नहीं पाए और उनका निधन हो गया। इस प्रकार, आवेदक 2 को "हेट स्पीच" के कारण अपूरणीय क्षति का सामना करना पड़ा।
इसके बाद, हस्तक्षेपकर्ताओं ने कहा कि भारत में कोई भी मौजूदा कानून "हेट स्पीच" को परिभाषित नहीं करता है, भले ही संयुक्त राष्ट्र ने "हेट स्पीच पर रणनीति और कार्य योजना" में "हेट स्पीच" शब्द को परिभाषित किया है- भाषण, लेखन या व्यवहार में किसी प्रकार का संचार, जिसमें किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ इस आधार पर कि वे कौन हैं, यानि धर्म, जातीयता, राष्ट्रीयता, नस्ल, रंग, वंश, लिंग या अन्य पहचान कारकों के आधार पर अपमानजनक या भेदभावपूर्ण भाषा का उपयोग किया गया हो या हमला किया गया हो।"
दलील में कहा गया है कि इन दिनों एक स्थिर और लगभग अपरिवर्तनीय प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है कि टीवी एंकरों और टीवी डिबेट ने खुद को "हेट स्पीच" का प्रबल पैरोकार बना लिया है। इसके कारण कई हैं, याचिका में कहा गया है कि इन टीवी डिबेट्स का "रिमोट कंट्रोल" सत्ताधारी राजनीतिक वर्ग के हाथों में है, ताकि ऐसा नैरेटिव बनाया जा सके जो उनके "चुनावी और वैचारिक उद्देश्यों" के अनुरूप हो और उनके राजनीतिक और वैचारिक विरोधियों को बदनाम किया जा सके, उनका खलनायिकीकरण किया जा सके, उन्हें दुष्प्रचारित किया जा सके।"
दलील में कहा गया है कि डॉ कोटा नीलिमा ने इस "बीमारी" पर शोध और अध्ययन करने का प्रयास किया है और उन्होंने रेट द डिबेट ("आरटीडी") के रूप में टेलीविजन न्यूज डिबेट्स का एक स्वतंत्र, तथ्यात्मक और एक शोध-आधारित अध्ययन विकसित किया है, जिसका उद्देश्य है "निहित स्वार्थों द्वारा मीडिया के लोकतांत्रिक वैचारिक अंतराल के उपनिवेशीकरण को उजागर करना।"
दलील में कहा गया, "यह एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म है, जो मुख्यधारा के प्रमुख टेलीविजन न्यूज चैनल्स की परिचर्चाओं का विश्लेषण मात्रात्मक और गुणात्मक मेट्रिक्स पर करता है, बहस की सामग्री, एंकर और पैनलिस्ट के आचरण का मूल्यांकन करता है...."
इस पृष्ठभूमि में, आवेदक ने कहा कि यह पाया गया कि चर्चा का विषय, शुरुआती टिप्पणियां, और अमीश देवगन, अर्नब गोस्वामी, अंजना ओम कश्यप और आनंद नरसिम्हन जैसे टीवी एंकरों द्वारा संचालित "न्यूज़ डिबेट्स" का 'प्रवाह' सरकार की कथनी और करनी का समर्थन करना, विरोध या असहमति की आवाज़ों को ध्वस्त करना और गिराना होता है।
"मूल अवधारणाओं की विस्मृति यानी राष्ट्र और वर्तमान सरकार के मध्य का अंतर पूरा हो जाता है। ये टीवी एंकर एक प्राथमिक धारणा बनाते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा किया गया सब कुछ राष्ट्र के हित में है और जो कोई भी विरोध में बोलता वह "राष्ट्र-विरोधी" है।
इन दलीलों के आधार पर, आवेदकों ने सुप्रीम कोर्ट से संविधान के अनुच्छेद 19 की आड़ में "हेट स्पीच" को बढ़ावा दे रहे टीवी डिबेट्स/ टीवी एंकरों पर ध्यान प्रार्थना की है और अनुच्छेद 32, 141, 142 और 144 के तहत उचित निर्देश पारित करने निवेदन किया है।