टीआरएस विधायकों की खरीद-फरोख्त का मामला: सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी जांच की अनुमति देने वाले हाईकोर्ट का निर्देश खारिज किया, सीबीआई जांच की याचिका पर हाईकोर्ट से पुनर्विचार करने को कहा
Shahadat
24 Nov 2022 11:57 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने 21 नवंबर को तेलंगाना हाईकोर्ट द्वारा 15 नवंबर को जारी निर्देश रद्द कर दिया, जिसने तेलंगाना पुलिस के विशेष जांच दल को कथित टीआरएस विधायकों के अवैध खरीद-फरोख्त मामले में हाईकोर्ट की निगरानी में जांच करने की अनुमति दी थी।
मामले में तीन अभियुक्तों रामचंद्र भारती, कोरे नंदू कुमार और डी.पी.एस.के.वी.एन. सिम्हायाजी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एकल पीठ से अनुरोध किया कि वह उनके द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार करे और जांच को सीबीआई को उसके गुण-दोषों के आधार पर स्थानांतरित करने की मांग करे।
दोनों पक्षकारों अभियुक्त और तेलंगाना राज्य इस बात पर सहमत हुए कि खंडपीठ द्वारा की गई टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना इस मामले पर एकल न्यायाधीश द्वारा अपने गुणों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
डिवीजन बेंच ने सीबीआई को जांच स्थानांतरित करने से इनकार करते हुए एसआईटी को हाईकोर्ट की निगरानी में जांच करने और किसी राजनीतिक या कार्यकारी एजेंसी को रिपोर्ट नहीं करने का निर्देश दिया। एसआईटी को अपनी पहली रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में एकल पीठ के समक्ष प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया गया और मीडिया को सूचना लीक करने से रोक दिया गया।
खंडपीठ के निर्देशों को अस्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"हम पाते हैं कि खंडपीठ के न्यायाधीशों द्वारा जारी किए गए कुछ निर्देश कानून में टिकाऊ नहीं हैं"।
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने 29 अक्टूबर के फैसले को चुनौती देने वाली अभियुक्तों द्वारा की गई अपीलों पर भी विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को साइबराबाद आयुक्तालय के पुलिस आयुक्त के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। अदालत ने हाईकोर्ट से कहा कि यदि याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गई जमानत याचिकाओं पर शीघ्रता से विचार किया जाए।
तीन याचिकाकर्ताओं को साइबराबाद पुलिस ने टीआरएस के चार विधायकों को बड़ी रकम देकर कथित रूप से फंसाने का प्रयास करने के आरोप में गिरफ्तार किया। हैदराबाद में एसपीई और एसीबी मामलों के पहले अतिरिक्त विशेष न्यायाधीश ने सहायक पुलिस आयुक्तालय, राजेंद्रनगर मंडल, साइबराबाद आयुक्तालय द्वारा दायर रिमांड आवेदन खारिज कर दिया। ट्रायल जज ने रिमांड आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया कि आरोपी व्यक्तियों को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41ए के तहत अनिवार्य नोटिस जारी नहीं किया गया।
निचली अदालत के आदेश को राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। राज्य ने तर्क दिया कि अर्नेश कुमार के मामले में की गई टिप्पणियां मामले में लागू नहीं होंगी। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए याचिकाकर्ताओं को सरेंडर करने का निर्देश दिया। ट्रायल कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 4 नवंबर के आदेश के अनुसार जमानत याचिकाओं पर विचार किया और इसे खारिज कर दिया।
केस विवरण- रामचंद्र बरथी @ सतीश शर्मा वी.के. बनाम तेलंगाना राज्य | लाइवलॉ (SC) 986/2022| एसएलपी (सीआरएल) 10356/2022 | 21 नवंबर, 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ।
हेडनोट्स
भारत का संविधान, 1950; अनुच्छेद 141 - हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अधीनस्थ न्यायालय नहीं है। हालांकि, जब हाईकोर्ट इस न्यायालय के निर्णयों से निपटता है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सभी के लिए बाध्यकारी हैं, तो यह अपेक्षा की जाती है कि निर्णयों को उचित सम्मान के साथ निपटाया जाना चाहिए।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 41ए - आक्षेपित निर्णय [तेलंगाना राज्य बनाम रामचंद्र बरथी @ सतीश शर्मा वी.के.] में की गई टिप्पणियां, जो अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) 8 एससीसी 273 के मामले में की गई टिप्पणियों के विपरीत हैं, उनको तेलंगाना राज्य में बाध्यकारी मिसाल के तौर पर नहीं माना जाएगा।
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