सुप्रीम कोर्ट की तीन अलग-अलग पीठों ने नागरिकों द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग पर चिंता जताई
Shahadat
16 July 2025 5:06 AM

पिछले दो दिनों में सुप्रीम कोर्ट की तीन पीठों ने आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट, दिव्यांगजनों को लक्षित करने वाली हास्य सामग्री और कथित रूप से अपमानजनक कार्टूनों से जुड़े अलग-अलग मामलों पर विचार करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के बढ़ते दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की।
जजों की टिप्पणियों में नागरिकों द्वारा आत्म-संयम की आवश्यकता, व्यक्तिगत गरिमा की रक्षा और ऑनलाइन सामग्री के लिए एक संभावित नियामक ढाँचे पर ज़ोर दिया गया।
नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रयोग में आत्म-संयम बरतना चाहिए
14 जुलाई को जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने कोलकाता निवासी वज़ाहत खान द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की कि नागरिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का लगातार दुरुपयोग कर रहे हैं।
इस मामले में वजाहत खान के सोशल मीडिया पोस्ट पर कई राज्यों में दर्ज FIR को एक साथ जोड़ने का अनुरोध किया गया था।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि ऐसे मामले न्याय व्यवस्था में बाधा डाल रहे हैं। इस बात पर ज़ोर दिया कि नागरिकों को सोशल मीडिया पर आत्म-संयम बरतना चाहिए ताकि राज्य तंत्र को हस्तक्षेप न करना पड़े।
न्यायालय ने नागरिकों के बीच अधिक भाईचारे की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। इस बात पर ज़ोर दिया कि अनुच्छेद 19 के तहत दी गई स्वतंत्रता का प्रयोग उचित प्रतिबंधों और आंतरिक विनियमन के साथ किया जाना चाहिए। इसने नागरिकों के लिए दिशानिर्देश जारी करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और याचिकाकर्ता के वकील और राज्य दोनों से ऐसे दिशानिर्देश तैयार करने में न्यायालय की सहायता करने का अनुरोध किया।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हालांकि राज्य के विरुद्ध अधिकार की गारंटी दी गई लेकिन नागरिकों को इस स्वतंत्रता का ज़िम्मेदारी से प्रयोग करने के अपने कर्तव्य को भी समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर विभाजनकारी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए और यदि नागरिक आत्म-नियमन करने में विफल रहे, तो राज्य का हस्तक्षेप अपरिहार्य हो जाएगा।
उन्होंने टिप्पणी की,
"देश की एकता और अखंडता को बनाए रखना मौलिक कर्तव्यों में से एक है... नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल्य समझना चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो राज्य हस्तक्षेप करेगा और कौन चाहेगा कि राज्य हस्तक्षेप करे?"
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यह मुद्दा केवल याचिकाकर्ता तक सीमित नहीं है। "भाईचारे, धर्मनिरपेक्षता और व्यक्तियों की गरिमा के हित में" इस पर व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता है।
जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि समाधान तभी निकलेगा, जब नागरिक ऐसी सामग्री से जुड़ना बंद कर देंगे। उन्होंने सवाल किया कि जागरूकता कैसे फैलाई जा सकती है ताकि लोग ऐसी बातों को अस्वीकार्य मानने लगें।
न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के बाहर दर्ज FIR में गिरफ्तारी से खान को दी गई अंतरिम सुरक्षा जारी रखी और मामले को चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया।
अदालत ने कथित रूप से आपत्तिजनक हास्य से जुड़े मामले में सामग्री विनियमन पर विचार मांगे
15 जुलाई को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने तीन याचिकाओं पर सुनवाई की, जिनमें से दो यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया और आशीष चंचलानी द्वारा FIR को एक साथ जोड़ने के लिए दायर की गईं और एक एसएमए क्योर फाउंडेशन द्वारा हास्य कलाकारों समय रैना, विपुन गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर के खिलाफ विकलांग व्यक्तियों को निशाना बनाकर कथित रूप से असंवेदनशील चुटकुलों को लेकर दायर की गई।
खंडपीठ ने दोहराया कि उठाया गया मुद्दा गंभीर है, क्योंकि यह दिव्यांगजनों की गरिमा से जुड़ा है। प्रतिवादियों को प्रति-शपथपत्र दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय देते हुए न्यायालय ने ठक्कर को छोड़कर सभी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का निर्देश दिया।
इससे पहले की सुनवाई में खंडपीठ ने इलाहाबादिया की "गंदी, विकृत" टिप्पणियों के लिए कड़ी फटकार लगाई और यूट्यूब तथा अन्य सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री को नियंत्रित करने के लिए कुछ करने की मंशा व्यक्त की थी। इस संबंध में उसने केंद्र सरकार से भी उसके विचार पूछे थे।
जस्टिस कांत ने कहा कि ऐसे किसी भी दिशानिर्देश को संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए और स्वतंत्रता और जिम्मेदारी दोनों को प्रतिबिंबित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायालय बार सहित सभी हितधारकों से दिशानिर्देशों पर सुझावों के लिए खुला है और एक ऐसे ढांचे का "परीक्षण" करना चाहता है, जो स्वतंत्रता और कर्तव्य के बीच संतुलन बनाए रखे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) अनुच्छेद 21 (जीवन और सम्मान के अधिकार) का उल्लंघन नहीं कर सकता।
उन्होंने कहा,
"यदि कोई प्रतिस्पर्धा होती है तो अनुच्छेद 21 को लागू होना चाहिए।"
साथ ही खंडपीठ ने चेतावनी दी कि न्यायालय द्वारा विचारित किसी भी दिशा-निर्देश का “किसी के द्वारा दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए” और यह कि अधिकारों की रक्षा तो होनी ही चाहिए। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए एक ढांचा भी होना चाहिए कि सभी की गरिमा सुरक्षित रहे।
कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को कोर्ट ने लगाई फटकार
14 जुलाई को जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने इंदौर के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को फटकार लगाई, जिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस पर कथित रूप से आपत्तिजनक कार्टून बनाने के आरोप में FIR दर्ज है। खंडपीठ ने कहा कि उनका आचरण भड़काऊ और अपरिपक्व है।
मूल रूप से COVID-19 टीकों पर आधारित यह कार्टून 2025 में किसी तीसरे पक्ष द्वारा दोबारा पोस्ट किया गया और मालवीय ने इसे शेयर किया, जिसके बाद उनके खिलाफ FIR दर्ज की गई।
जस्टिस धूलिया ने टिप्पणी की कि कार्टूनिस्ट ने अपरिपक्वता दिखाई। यह बताए जाने पर कि कार्टूनिस्ट की उम्र 50 वर्ष से अधिक है, जस्टिस धूलिया ने कहा, "अभी भी कोई परिपक्वता नहीं है। हम मानते हैं कि यह भड़काऊ है।"
हालांकि खंडपीठ ने उन्हें गिरफ्तारी से अंतरिम राहत प्रदान की, लेकिन उन्होंने कार्टूनिस्ट द्वारा सोशल मीडिया पर किए गए अन्य पोस्ट के लिए भी उनकी आलोचना की। जस्टिस धूलिया ने पोस्ट की आपत्तिजनक प्रकृति और सोशल मीडिया पर इस्तेमाल की जा रही भाषा, जिसमें कानूनी बिरादरी के सदस्य भी शामिल हैं, पर चिंता व्यक्त की।
अदालत ने मामले को 15 अगस्त के बाद सूचीबद्ध किया और दोनों पक्षों को इस बीच अपनी दलीलें पूरी करने का निर्देश दिया।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखने वाले हालिया फैसले
गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में अदालत ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दों पर महत्वपूर्ण फैसले दिए।
जस्टिस अभय ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने व्यंग्य या विवादास्पद भाषण को सिर्फ़ इसलिए अपराध घोषित न करने की चेतावनी दी थी क्योंकि वह अपमानजनक है।
8 अप्रैल को अदालत ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें विशाल ददलानी और तहसीन पूनावाला पर 10-10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया, जबकि जैन मुनि तरुण सागर की आलोचना करने के लिए उनके खिलाफ दर्ज FIR खारिज कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार जब हाईकोर्ट ने पाया कि कोई अपराध नहीं बनता है तो उसे जुर्माना नहीं लगाना चाहिए या नैतिक पुलिसिंग नहीं करनी चाहिए।
अदालत ने कहा,
"अदालत का काम नैतिक पुलिसिंग करना नहीं है।"
मार्च में इसी खंडपीठ ने इंस्टाग्राम पर कविता पोस्ट करने के लिए कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज FIR रद्द कर दी थी। फैसले में कहा गया कि जज मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बाध्य हैं, भले ही उन्हें उनकी विषयवस्तु पसंद न आए।
न्यायालय ने कहा,
"हम जजों का भी संविधान की रक्षा करने का दायित्व है।"
न्यायालय ने यह भी कहा कि साहित्य, कविता, व्यंग्य और नाटक मानव जीवन को समृद्ध बनाते हैं और अनुच्छेद 21 के तहत एक सम्मानजनक अस्तित्व के केंद्र में हैं।
न्यायालय ने पुलिस के इस कर्तव्य पर भी ज़ोर दिया कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करे।
न्यायालय ने कहा,
"भले ही बड़ी संख्या में लोग किसी अन्य व्यक्ति द्वारा व्यक्त विचारों को नापसंद करते हों, फिर भी व्यक्ति के विचार व्यक्त करने के अधिकार का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए... विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे संविधान के आदर्शों में से एक है। नागरिक होने के नाते पुलिस अधिकारी संविधान का पालन करने और इस अधिकार की रक्षा करने के लिए बाध्य हैं।"
न्यायालय ने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अभिव्यक्ति का मूल्यांकन असुरक्षित या असहिष्णु लोगों के दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि एक मज़बूत और विवेकशील नागरिक के दृष्टिकोण से करना चाहिए।
न्यायालय ने आगे कहा -
"हमारे गणतंत्र के 75 वर्षों के बाद भी हम अपने मूल सिद्धांतों पर इतने कमज़ोर नहीं दिख सकते कि केवल एक कविता या किसी भी प्रकार की कला या मनोरंजन, जैसे स्टैंड-अप कॉमेडी, के गायन से विभिन्न समुदायों के बीच दुश्मनी या घृणा पैदा होने का आरोप लगाया जा सके। इस तरह के दृष्टिकोण को मानने से सार्वजनिक क्षेत्र में विचारों की सभी वैध अभिव्यक्तियों का दमन होगा, जो एक स्वतंत्र समाज के लिए अत्यंत मौलिक है।"