आंदोलन करने के और भी तरीके हैं, वादियों से फिरौती न मांगें: वकीलों की हड़ताल पर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की खिंचाई की
Shahadat
29 Nov 2024 8:24 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (29 नवंबर) को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि वकीलों के अदालती काम से दूर रहने से वादियों को अनुचित रूप से नुकसान पहुंचता है। वकीलों के पास आंदोलन करने के और भी शक्तिशाली तरीके हैं। कोर्ट जुलाई 2024 में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों द्वारा अदालती काम से दूर रहने से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा था।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“संवैधानिक अदालतों के अस्तित्व के 75 वर्षों में किसी दिन हमें इसके लिए जवाबदेह होना पड़ेगा। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में कम से कम 4 से 5 हजार मामले होने चाहिए। बाबासाहेब अंबेडकर के अंतिम भाषण के अनुसार, विरोध करने के और भी तरीके हैं। ऐसे बार एसोसिएशन हैं, जिन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए वास्तविक मुद्दों को उठाया। मजबूत प्रस्ताव पारित किए हैं, जो बहुत प्रभावी हैं। एक विशेष दिन अदालत में आने वाले दस हजार वादियों का क्या दोष है? आप उन्हें फिरौती दे रहे हैं। वकीलों के बहुत शक्तिशाली संगठन हैं। आंदोलन करने के विभिन्न तरीके। वादियों को बंधक मत बनाओ। यह बहुत अनुचित है।”
जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के एक्टिंग उपाध्यक्ष जसदेव सिंह बराड़ को हड़ताल से दूर रहने का वचन देने में उनकी अनिच्छा पर फटकार लगाई।
अगस्त में न्यायालय ने नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा कि बार एसोसिएशन के सदस्यों के आचरण के लिए उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए।
पिछले सप्ताह न्यायालय ने अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की मंशा जताई। बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष तथा संयुक्त सचिव को व्यक्तिगत रूप से न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया, क्योंकि उन्होंने हड़ताल में शामिल न होने का वचन देने में अनिच्छा दिखाई।
सुनवाई के दौरान जस्टिस ओक ने बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष जसदेव सिंह बराड़ से पूछा कि क्या एसोसिएशन कैप्टन हरीश उप्पल बनाम भारत संघ के मामले में निर्धारित कानून का पालन करने का वचन देगा, जिसमें वकीलों की हड़ताल को अवैध घोषित किया गया।
बार-बार पूछे जाने के बावजूद बराड़ ने यह नहीं कहा कि वह वचन देंगे।
जस्टिस ओक ने टिप्पणी की,
"हमें अंडरटेकिंग देने में यह हिचकिचाहट समझ में नहीं आती। हड़ताल के लिए कोई औचित्य होने पर भी आप पहले अंडरटेकिंग दे सकते हैं। फिर औचित्य बता सकते हैं। यदि आप इतने अड़े हुए हैं तो हम अवमानना नोटिस जारी करेंगे।"
बार एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने शुरू में एक सप्ताह का समय मांगा। न्यायालय द्वारा इनकार करने के बाद, आज बयान की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि बार एसोसिएशन कानून का पालन करेगी। हालांकि, न्यायालय ने जोर देकर कहा कि बयान बरार और बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों की ओर से ही आना चाहिए, न कि न्यायालय में बार एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील की ओर से।
जस्टिस ओक ने गुस्से में टिप्पणी करते हुए कहा,
"यह व्यक्ति (बरार) न्यायालय को जवाब देने को तैयार नहीं है। उसे कानून की एबीसी भी नहीं पता, वह बार एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व करता है। अब वह अंडरटेकिंग नहीं देगा।"
उन्होंने कहा कि न्यायालय बार काउंसिल ऑफ इंडिया से उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने को कहेगा। न्यायालय ने बरार को कार्यकारी समिति के अन्य सदस्यों से परामर्श करने और बयान देने की अनुमति दी। जब मामले को सूची के अंत में फिर से उठाया गया तो बार एसोसिएशन के वकील ने अदालत को सूचित किया कि एसोसिएशन वचनबद्धता देने के लिए तैयार है।
जस्टिस ओक ने टिप्पणी की कि बरार की ओर से पहले की हिचकिचाहट बहुत परेशान करने वाली थी।
अपने आदेश में पीठ ने दर्ज किया कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के एक्टिंग उपाध्यक्ष और संयुक्त सचिव ने एसोसिएशन की ओर से कहा कि वे हड़ताल पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के कानून का पालन करने के लिए बिना शर्त वचनबद्धता दायर करेंगे। अदालत ने उन्हें वचनबद्धता दायर करने के लिए 8 दिसंबर तक का समय दिया। अगली सुनवाई 13 दिसंबर के लिए निर्धारित की।
जस्टिस ओक ने बार एसोसिएशन के वकील द्वारा दिए गए औचित्य की आलोचना की, जिन्होंने दावा किया कि हड़ताल किराया नियंत्रण अधिनियम के प्रावधानों के विरोध में थी, जो किराया नियंत्रकों से कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को अधिकार हस्तांतरित करता है।
उन्होंने कहा,
"एक विशेष दिन अदालत में आने वाले दस हजार वादियों का क्या दोष है? आप उन्हें बंधक बना रहे हैं। यह बहुत अनुचित है।"
अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने बार एसोसिएशन की कार्रवाइयों का संज्ञान लिया था, जब उसने देखा कि वकील 26 जुलाई, 2024 को हाईकोर्ट के समक्ष उपस्थित होने से दूर रहे, जिसके कारण रिट याचिका खारिज हो गई। यह देखते हुए कि यह आचरण स्थापित कानून के विपरीत था, कोर्ट ने बार एसोसिएशन को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा।
सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों की हड़ताल की लगातार निंदा की, न्यायिक कामकाज और वादियों पर उनके हानिकारक प्रभाव पर जोर दिया है। पिछले मामलों में कोर्ट ने कड़े कदम उठाए, जिसमें अवमानना नोटिस जारी करना और हाईकोर्ट को शिकायत निवारण प्रकोष्ठ स्थापित करने का निर्देश देना शामिल है, जिससे एडवोकेट अदालती काम को बाधित किए बिना अपनी चिंताओं को व्यक्त कर सकें।
केस टाइटल- मेसर्स एम3एम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य।