'द इंडियन एक्सप्रेस' ने कोर्ट कार्यवाही गलत रिपोर्टिंग पर नए सिरे से माफ़ी की मांग वाले आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

Shahadat

21 April 2025 6:40 AM

  • द इंडियन एक्सप्रेस ने कोर्ट कार्यवाही गलत रिपोर्टिंग पर नए सिरे से माफ़ी की मांग वाले आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

    'द इंडियन एक्सप्रेस' ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें न्यायालय की कार्यवाही की गलत रिपोर्टिंग पर उसके माफ़ीनामे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया गया था। साथ ही यह निर्देश दिया गया था कि एक नया माफ़ीनामे वाला हलफ़नामा दायर किया जाए।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने इस मामले में अनुमति देते हुए इसे उसी हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड (वह कंपनी जो टाइम्स ऑफ इंडिया का मालिक है और इसे प्रकाशित करती है) द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका के साथ संलग्न कर दिया।

    पिछले साल 4 सितंबर को बेनेट कोलमैन की याचिका पर अनुमति देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि 2 सितंबर के गुजरात हाईकोर्ट के विवादित आदेश पर रोक रहेगी। हालांकि यह स्पष्ट किया गया कि हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य कार्यवाही, जो गुजरात माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा अधिनियम में संशोधन से संबंधित है, जारी रहेगी।

    मामले की पृष्ठभूमि

    पिछले साल 13 अगस्त को चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस को नोटिस जारी कर सुनवाई के दौरान न्यायालय की टिप्पणियों की गलत रिपोर्टिंग के लिए स्पष्टीकरण मांगा था। न्यायालय ने पाया कि समाचार पत्रों की रिपोर्ट ने गलत धारणा दी कि सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणियां उसके अंतिम विचार थे। बाद में न्यूज़पेपर माफ़ीनामा प्रकाशित करने के लिए सहमत हो गए।

    2 सितंबर को हाईकोर्ट टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस और दिव्य भास्कर द्वारा 23 अगस्त को प्रकाशित माफ़ीनामे के तरीके से असंतुष्ट था। उनके संबंधित वकीलों द्वारा किए गए अनुरोध पर इसने न्यूज़पेपर्स को "पहले पृष्ठ पर मोटे अक्षरों में" नई सार्वजनिक माफ़ी मांगने के लिए 3 दिन का समय दिया, जबकि जनता को उनके द्वारा प्रकाशित "गलत रिपोर्टिंग" के बारे में स्पष्ट रूप से सूचित किया।

    हाईकोर्ट चीफ जस्टिस ने बताया कि समाचार पत्रों द्वारा दी गई माफ़ीनामे की हेडलाइन में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि माफ़ी किस बारे में थी।

    कहा गया,

    "आपको इसे पूरी तरह से शीर्षक देना चाहिए था कि माफ़ी किससे संबंधित है। कौन समझेगा कि माफ़ी किस लिए है? गलत रिपोर्ट की रिपोर्टिंग के लिए माफ़ी, यह आनी चाहिए और इस माफ़ी के साथ रिपोर्ट भी होनी चाहिए। लोग इससे कैसे जुड़ेंगे? कुछ लोगों ने वह आइटम (13 अगस्त की रिपोर्ट) पढ़ा होगा और कुछ ने शायद यह माफ़ी पढ़ी होगी।"

    न्यूज़पेपर्स की ओर से पेश सीनियर वकील ने जब कहा कि सार्वजनिक माफ़ी रिपोर्ट की तारीख और शीर्षक से संबंधित है, तो चीफ जस्टिस ने कहा कि माफ़ी एक 'दिखावा' लगती है, क्योंकि इसमें उस समाचार शीर्षक के बारे में विस्तार से नहीं बताया गया, जिसे गलत तरीके से रिपोर्ट किया गया था।

    उन्होंने कहा,

    "यह वह तरीका नहीं है, जिससे कोई अख़बार ग़लत ख़बर की रिपोर्टिंग के लिए माफ़ी मांगता है। यह ख़बर से संबंधित होना चाहिए। यह माफ़ी मांगने का तरीका नहीं है। जब आप सनसनीखेज ख़बर बना रहे होते हैं तो यह बहुत बड़े अक्षरों, बोल्ड अक्षरों के साथ कुछ कैचवर्ड, कैचफ़्रेज़, बीच में होता है...पछतावा कहां है? यह बिना शर्त माफ़ी नहीं है। यह सिर्फ़ दिखावा है। दोनों अख़बारों में एक ही भाषा है। दोनों संपादकों ने एक ही भाषा में माफ़ी मांगी।"

    केस टाइटल: इंडियन एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड बनाम रजिस्ट्रार हाई कोर्ट ऑफ़ गुजरात, डायरी नंबर 42992/2024

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