Tahir Hussain Bail | सुप्रीम कोर्ट के जज ने अंकित शर्मा हत्याकांड की सुनवाई में देरी को लेकर दिल्ली पुलिस पर सवाल उठाए

Shahadat

22 Jan 2025 11:45 AM

  • Tahir Hussain Bail | सुप्रीम कोर्ट के जज ने अंकित शर्मा हत्याकांड की सुनवाई में देरी को लेकर दिल्ली पुलिस पर सवाल उठाए

    ताहिर हुसैन की अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान IB अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या से जुड़े मामले में मुकदमे में देरी पर सवाल उठाए। हालांकि जून 2020 में आरोपपत्र दाखिल किया गया, लेकिन जज ने बताया कि मुकदमे में बहुत अधिक प्रगति नहीं हुई और अब तक केवल पांच से भी कम गवाहों की जांच की गई।

    संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित करते हुए जज ने अभियोजन एजेंसी से मुकदमे को पूरा करने में देरी पर सवाल उठाया, जब उसने मामले में गंभीर आरोपों का हवाला देते हुए हुसैन को अंतरिम जमानत देने का पुरजोर विरोध किया।

    "यह जीवन और स्वतंत्रता का मामला है। इसलिए हमने दिन-प्रतिदिन सूचीबद्ध किया। आपने 5 साल से ट्रायल पूरा क्यों नहीं किया? 5 में से सिर्फ़ 4 चश्मदीद गवाहों की जांच की? 02.06.2020 को चार्जशीट दाखिल की गई! इन सब पर गौर किया जाना चाहिए। आप किसी को इस तरह से दोषी नहीं ठहरा सकते! वह (ताहिर हुसैन) 5 साल में एक दिन भी जेल से बाहर नहीं आया। हम अपनी आँखें बंद नहीं कर सकते। संविधान का अनुच्छेद 21 किस लिए है?"

    जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा,

    "पांच साल से आपने अपने स्टार गवाह की भी जांच नहीं की और वह दिल्ली से बाहर है! हम इस पर और कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते।"

    यह टिप्पणी तब की गई जब हुसैन की ओर से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ अग्रवाल ने जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अमानुल्लाह की पीठ को सूचित किया कि अभियोजन पक्ष ने 5 चश्मदीद गवाहों में से 4 की जांच की। इनमें से 2 मुकर गए और 5वां दिल्ली से बाहर बताया गया, जिसके बारे में कोई जानकारी नहीं है कि वह कब उपलब्ध होने की उम्मीद है। मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल आदि के मामले में दिए गए निर्णयों का हवाला देते हुए इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि लंबे समय तक कारावास और मुकदमे की सुनवाई पूरी होने में देरी के कारण अदालत को जमानत देने में दिक्कत हो सकती है, भले ही कानून के तहत मामला न बनता हो या PMLA/UAPA के तहत कठोर शर्तों को पूरा न किया गया हो।

    दिल्ली पुलिस की ओर से दलील देते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने अदालत से आग्रह किया कि हुसैन के मामले में अंतरिम जमानत देने के लिए अपने विवेक का प्रयोग न किया जाए, क्योंकि आरोप बहुत गंभीर थे। यह रेखांकित किया गया कि हुसैन की भूमिका केवल भड़काने तक सीमित नहीं थी; बल्कि उसने दिल्ली दंगों की साजिश रची और उसका घर "केंद्र" है, जहां से निर्देश भेजे गए और हथियार बरामद किए गए।

    "केंद्र" शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति जताते हुए जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि इस तरह का आरोप सामग्री से नहीं लगाया गया और आरोप केवल हथियारों की बरामदगी से संबंधित था। इस पर एएसजी ने अपनी दलील को नरम करते हुए "केंद्र" के स्थान पर "हब" रख दिया।

    इस पृष्ठभूमि में जस्टिस अमानुल्लाह ने एजेंसी द्वारा समय पर सुनवाई पूरी करने में चूक पर सवाल उठाया, अगर मामला इतना गंभीर था।

    अंततः, पीठ ने खंडित फैसला सुनाया, जिसमें जस्टिस पंकज मित्तल ने याचिका खारिज की और जस्टिस अमानुल्लाह ने इसे अनुमति दी। अब मामले को तीसरे न्यायाधीश या बड़ी पीठ के पास भेजने के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) के समक्ष रखा जाएगा।

    केस टाइटल: मोहम्मद ताहिर हुसैन बनाम दिल्ली राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 856/2025

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