सुप्रीम कोर्ट का 'सीलबंद लिफाफा' प्रक्रिया के प्रति बदलता रवैया

Shahadat

21 March 2023 10:27 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट का सीलबंद लिफाफा प्रक्रिया के प्रति बदलता रवैया

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना के तहत सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों को पेंशन बकाया के वितरण से संबंधित मामले में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत सीलबंद कवर नोट को स्वीकार करने से इनकार करके खूब सुर्खियां बटोरीं। उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीलबंद लिफाफा लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह सीलबंद कवरों के "व्यक्तिगत रूप से प्रतिकूल" की है। उन्होंने टिप्पणी की कि सीलबंद कवरों की प्रक्रिया निष्पक्ष न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

    यह सीलबंद लिफाफों के उपयोग की दिशा में भारतीय सुप्रीम कोर्ट के दृष्टिकोण में बदलाव को उजागर करने वाला एक और उदाहरण है। हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट सीलबंद कवरों के उपयोग की खुले तौर पर आलोचना करता रहा है। न्यायाधीश अक्सर इस आशय की टिप्पणी करते रहे हैं।

    "सीलबंद कवर" गोपनीय दस्तावेज़ या जानकारी को संदर्भित करता है, जो सीलबंद लिफाफे या कवर में अदालत को प्रस्तुत किया जाता है। यह दस्तावेज़ मामले में शामिल पक्षों या आम जनता को उपलब्ध नहीं कराया गया। भारतीय अदालतों में सीलबंद कवर का उपयोग गोपनीयता के सिद्धांत पर आधारित है, जो अदालतों को संवेदनशील जानकारी की रक्षा करने की अनुमति देता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती है या व्यक्तियों की गोपनीयता को प्रभावित कर सकती है।

    तदनुसार, अदालत ने अतीत में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों और सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ शिकायत की सीवीसी जांच रिपोर्ट जैसे अन्य मामलों में सीलबंद कवर स्वीकार किए हैं। 2015 के राफेल डील विवाद से जुड़े मामले में भी सीलबंद कवर प्रक्रिया का पालन किया गया। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज, जस्टिस जे चेलमेश्वर ने टिप्पणी की कि अगर वह राफेल सौदे पर याचिकाओं की सुनवाई कर रहे होते तो वे सीलबंद कवर प्रक्रिया का सहारा नहीं लेते।

    स्वाभाविक रूप से सीलबंद कवर का उपयोग भारतीय न्यायशास्त्र में बहस का विषय रहा है, क्योंकि आलोचकों का तर्क है कि यह न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता के सिद्धांतों को कमजोर करता है। अब ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट को अपनी विश्वसनीयता पर सील बंद न्यायशास्त्र के प्रभावों का एहसास हो गया है।

    सीजेआई चंद्रचूड़ द्वारा आज सीलबंद कवर न्यायशास्त्र की आलोचना करने वाली टिप्पणियों के अलावा, अदालत ने कई मौकों पर सीलबंद कवर को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।

    उदाहरण के लिए अडानी-हिंडनबर्ग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नियामक सिस्टम की समीक्षा के लिए प्रस्तावित विशेषज्ञ समिति में शामिल करने के लिए सीलबंद लिफाफे में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नामों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

    सीजेआई ने आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा कि विशेषज्ञों का चयन न्यायालय द्वारा ही किया जाएगा और समिति में जनता का पूर्ण विश्वास होना चाहिए।

    सीजेआई चंद्रचूड़ ने 17 फरवरी को मौखिक रूप से देखा,

    "हम विशेषज्ञों का चयन करेंगे और पूरी पारदर्शिता बनाए रखेंगे। यदि हम सरकार से नाम लेते हैं तो यह सरकार द्वारा गठित समिति के बराबर होगा। आदेश सुरक्षित रखते हुए समिति में पूर्ण (सार्वजनिक) विश्वास होना चाहिए।"

    हालांकि, अदालत ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले पर विशेषज्ञ-समिति को अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

    पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने एआईएडीएमके कार्यकाल के दौरान तमिलनाडु के पूर्व मंत्री एसपी वेलुमणि को भ्रष्टाचार के मामले में उनके खिलाफ दायर प्रारंभिक रिपोर्ट की प्रति रखने की अनुमति नहीं देने के लिए मद्रास हाईकोर्ट की भी आलोचना की थी।

    इसके अलावा, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने भी मुजफ्फरपुर आश्रय मामले से संबंधित मामले में अदालत में सीलबंद लिफाफे के इस्तेमाल का विरोध किया।

    उन्होंने टिप्पणी की कि कार्रवाई की गई रिपोर्ट को सीलबंद कवर में होना जरूरी नहीं है।

    अन्य मामले में उन्होंने जमा किए गए दस्तावेजों को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा,

    "कोई भी सीलबंद कवर न दें, इसे अपने पास रखें। मुझे कोई सीलबंद कवर नहीं चाहिए।"

    सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली एक पीठ ने वास्तव में भारतीय नौसेना में स्थायी आयोग (पीसी) के इनकार से संबंधित फैसले में कहा कि सीलबंद कवर प्रक्रिया 'खतरनाक मिसाल' कायम करती है, क्योंकि यह 'अधिनिर्णय की प्रक्रिया को अस्पष्ट और अपारदर्शी' बनाती है।

    अदालत ने कहा,

    "असाधारण परिस्थितियों में संवेदनशील जानकारी के गैर-प्रकटीकरण का उपाय उस उद्देश्य के अनुपात में होना चाहिए, जो गैर-प्रकटीकरण पूरा करना चाहता है। साथ ही अपवादों को मानदंड नहीं बनना चाहिए।

    मलयालम समाचार चैनल MediaOne पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए टेलीकास्ट प्रतिबंध के संबंध में फैसला आने के बाद ही सीलबंद कवर पर सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण स्पष्ट होना चाहिए। जबकि फैसला केवल सुरक्षित रखा गया है, सुनवाई के दौरान अदालत ने सीलबंद लिफाफों के प्रति अपना विरोध व्यक्त किया।

    इस मामले में केरल हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय द्वारा सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत कुछ दस्तावेजों के आधार पर चैनल के प्रसारण लाइसेंस को नवीनीकृत नहीं करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा है, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को उठाया। हालांकि निष्कर्ष तक पहुंचने और प्रतिबंध को बनाए रखने के लिए इन दस्तावेजों पर भरोसा किया गया, लेकिन दूसरे पक्ष (मीडिया वन) को उन्हें देखने का अवसर नहीं मिला।

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