POSH Act से बार काउंसिल को बाहर रखने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची SCWLA
Shahadat
21 Nov 2025 1:36 PM IST

सुप्रीम कोर्ट विमेन लॉयर्स एसोसिएशन (SCWLA) ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि वर्कप्लेस पर महिलाओं का सेक्सुअल हैरेसमेंट (रोकथाम, रोक और निवारण) एक्ट, 2013 (POSH Act) वकीलों द्वारा बार काउंसिल के सामने दूसरे वकीलों के खिलाफ की गई सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायतों पर लागू नहीं होता है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने याचिका पर नोटिस जारी किया और मामले को सीमा जोशी बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य के साथ टैग कर दिया।
पिटीशनर के वकील ने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला ऑरेलियानो फर्नांडीस मामले में बताए गए सिद्धांतों के खिलाफ है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया Le कि हर प्रोफेशनल बॉडी में एक इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी होनी चाहिए।
उन्होंने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने यह मानकर कि POSH Act एम्प्लॉयर-एम्प्लॉई रिलेशनशिप के बिना लागू नहीं होता, एक छोटी सी व्याख्या अपनाई थी। इसमें इस बात को नज़रअंदाज़ किया कि यह Act महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक वर्कप्लेस पक्का करने के लिए एक खास कानून है।
उन्होंने आगे एक्ट की धारा 16 की ओर इशारा किया, जो कॉन्फिडेंशियलिटी को ज़रूरी बनाता है। इसकी तुलना एडवोकेट्स एक्ट से की, जिसमें ऐसी सुरक्षा नहीं है। उन्होंने कहा कि एडवोकेट्स एक्ट की धारा 35 प्रोफेशनल मिसकंडक्ट पर एक्शन का प्रोविज़न करता है, लेकिन इसमें इंटर्न, लीगल रिसर्चर या ऐसे ही लोग शामिल नहीं हैं।
उन्होंने कहा,
“हम एडवोकेट के तौर पर यहां दूसरों की डिग्निटी के लिए लड़ रहे हैं और हमें रिड्रेसल मैकेनिज्म से दूर रखा गया है।”
नोटिस जारी करने के बाद जस्टिस नागरत्ना ने सुप्रीम कोर्ट जेंडर सेंसिटाइजेशन एंड इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी के सामने फाइल की गई फालतू शिकायतों के मुद्दे पर रोशनी डाली।
उन्होंने कहा,
“आप जानते हैं, हमारे पास GSICC है। हमें हर तरह की शिकायतें मिलती हैं। कि मेरे मामले की सुनवाई नहीं हो रही है... हमें सेक्सुअल हैरेसमेंट के अलावा हर तरह की शिकायतें मिलती हैं, फिर भी हमें ऑर्डर देकर इसे फाइल करना पड़ता है। हमें नहीं पता।”
हाईकोर्ट ने उस ऑर्डर में कहा था कि POSH Act बार काउंसिल ऑफ इंडिया या बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा की महिला वकील सदस्यों की शिकायतों पर लागू नहीं होता है। हाईकोर्ट ने कहा कि एक्ट केवल वहीं लागू होता है, जहां एम्प्लॉयर-एम्प्लॉई का रिश्ता हो और बार काउंसिल को वकीलों का एम्प्लॉयर नहीं माना जा सकता।
इसने कहा कि एक्ट केवल बार काउंसिल के कर्मचारियों या कमेटी सदस्यों पर लागू होगा। हाईकोर्ट ने कहा कि महिला वकीलों के खिलाफ पुरुष वकीलों के गलत व्यवहार को एडवोकेट्स एक्ट की धारा 35 के तहत देखा जा सकता है, जिसमें प्रोफेशनल या अन्य गलत व्यवहार के लिए कार्रवाई का प्रावधान है। इन नतीजों के साथ हाईकोर्ट ने UNS विमेन लीगल एसोसिएशन द्वारा दायर PIL खारिज की, जिसमें वकीलों के खिलाफ सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायतों के लिए परमानेंट शिकायत निवारण सिस्टम बनाने की मांग की गई थी।
जिस रिट पिटीशन के साथ SLP को टैग किया गया, उसमें यह डिक्लेयर करने की मांग की गई कि POSH Act स्टेट बार काउंसिल में रजिस्टर्ड और कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली महिला वकीलों की सुरक्षा करता है। इसमें बार काउंसिल और बार एसोसिएशन को महिला वकीलों की शिकायतें सुनने के लिए इंटरनल कमेटियां बनाने के निर्देश देने की मांग की गई। पिटीशन में तर्क दिया गया कि महिला वकीलों को बाहर करने से POSH Act का मकसद खत्म हो जाता।
Case title – Supreme Court Women Laywers Association v. Bar Council of India and Ors.

