सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने वाले न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी बरकरार रखी
Shahadat
26 Sept 2025 4:28 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व न्यायिक अधिकारी की याचिका खारिज की, जिसे छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस और जज के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता किसी भी सरकारी सेवा में रहने के लायक नहीं है, न्यायिक सेवा तो दूर की बात है।
संक्षेप में मामला
याचिकाकर्ता प्रभाकर ग्वाल छत्तीसगढ़ में न्यायिक अधिकारी है। उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, क्योंकि पूर्ण न्यायालय ने बिना किसी जांच के उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी, क्योंकि यह पाया गया कि उन्होंने अपनी पत्नी के माध्यम से तत्कालीन चीफ जस्टिस और हाईकोर्ट के सीनियर जज सहित कई लोगों के खिलाफ आपराधिक मामला दायर किया। ग्वाल ने बर्खास्तगी के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हालांकि, सिंगल बेंच और डिवीजन बेंच दोनों ने उनके खिलाफ फैसला सुनाया और उनकी बर्खास्तगी बरकरार रखी। व्यथित होकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
मामले की पृष्ठभूमि
अगस्त, 2020 में हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने ग्वाल की रिट याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में अनुच्छेद 311(2)(बी) लागू होता है, क्योंकि उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया। अपने कृत्य के परिणामों को पूरी तरह जानते थे। यह भी कहा गया कि अभिलेखों में ऐसे कारण उपलब्ध है, जिनके कारण फुल कोर्ट ने अनुच्छेद 311(2) का हवाला देते हुए उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की।
सिंगल बेंच का आदेश चुनौती देते हुए ग्वाल ने खंडपीठ के समक्ष अपील दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि सिंगल बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 311 की गलत व्याख्या करके निर्णय पारित किया। यह भी आरोप लगाया गया कि यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन 12वें सीनियर जज को खुश करने के उद्देश्य से पारित किया गया, जिनके विरुद्ध ग्वाल की पत्नी ने शिकायती मामला दायर किया।
ग्वाल ने यह भी तर्क दिया कि सिंगल बेंच ने उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश करने वाली फुल कोर्ट की बैठक में भाग लेकर और फिर उनकी बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली रिट याचिका में जज के रूप में मामले की अध्यक्षता करके अनुचित कार्य किया। यह भी प्रस्तुत किया गया कि सिंगल जज की कार्रवाई, जिसमें विभागीय जांच न होने पर सवाल उठाने में विफलता और दस्तावेज़ों को रोके रखना शामिल है, पक्षपात और निष्पक्षता से कार्य करने में विफलता का संकेत देती है।
अपील में खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से केवल एक ही कार्य नहीं है, जिसने फुल कोर्ट को उसकी बर्खास्तगी की सिफारिश करने के लिए बाध्य किया। बल्कि, यह एक ऐसा मामला है, जिसमें हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, हाईकोर्ट के सीनियर जज, उच्च न्यायिक सेवा के सीनियर न्यायिक अधिकारियों और निम्न न्यायिक सेवा के सहकर्मियों के विरुद्ध बार-बार गंभीर आक्षेप, बेतुके आरोप और अप्रिय टिप्पणियां करते हुए कई पत्राचार हुए, जो सभी झूठे, अपमानजनक और दुर्भावनापूर्ण है।
इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि अभिलेखों में पर्याप्त प्रासंगिक कारण उपलब्ध है, जिसके कारण फुल कोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 311(2)(बी) का हवाला देते हुए अपीलकर्ता की बर्खास्तगी की सिफारिश की और विभागीय जांच को समाप्त कर दिया।
अदालत ने आगे कहा कि किसी दोषी अधिकारी के विरुद्ध कदाचार के आरोपों या अभियोगों का निराकरण करने के लिए जांच की जाती है, जिससे अधिकारी को अपना बचाव करने और अभियोजन पक्ष या विभाग द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों को चुनौती देने का अवसर मिलता है। हालांकि, इस मामले में याचिकाकर्ता के विरुद्ध आरोप केवल कदाचार का नहीं था। बल्कि, यह एक ऐसा मामला है, "जहां न्यायिक अधिकारी का व्यवहार, विशेष रूप से उसका आचरण और जिस तरह से उसने स्वयं को अधिक सक्रिय रूप से प्रस्तुत किया, उसने हाईकोर्ट को इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए बाध्य किया कि अपीलकर्ता न्यायिक सेवा में बने रहने के योग्य नहीं है"।
इस पृष्ठभूमि में खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के व्यवहार को ध्यान में रखते हुए और उसके द्वारा उठाए गए सभी तर्कों को खारिज करने योग्य पाते हुए उसकी अपील खारिज कर दी।
सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्वेस याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित हुए।
Case Title: PRABHAKAR GWAL Versus STATE OF CHHATISGARH AND ANR., Diary No. 58426-2024

