MACT मुआवज़े के आधार पर शुल्क का दावा करने पर वकील के निलंबन को सुप्रीम कोर्ट ने रखा बरकरार
Shahadat
28 July 2025 10:57 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक वकील के मामले में नरमी बरतने से इनकार किया, जिसका लाइसेंस 5 लाख रुपये के मोटर दुर्घटना मुआवज़े के दावे वाले मुवक्किल को 2.3 लाख रुपये की फीस नोटिस जारी करने के कारण 3 साल के लिए निलंबित कर दिया गया था।
न्यायालय ने मोटर दुर्घटना मुआवज़े के दावों की मांग करने वाले गरीब लोगों के वकीलों के 'गिरोहों' द्वारा शोषण के जोखिम को रेखांकित किया और कहा कि MACT के नतीजों के आधार पर फीस की मांग करने का याचिकाकर्ता का आचरण 'घोर कदाचार' है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ पंजाब एंड हरियाणा बार काउंसिल द्वारा लगाए गए 5 साल के निलंबन के खिलाफ याचिकाकर्ता-वकील की याचिका पर विचार कर रही थी। एक चुनौती में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने इस निलंबन अवधि को घटाकर 3 साल कर दिया था। फिर भी व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस मेहता ने याचिकाकर्ता के वकीस से कहा,
"आपने 5,00,000 रुपये के दावे के बदले 2,30,000 रुपये की फीस का नोटिस भेजा है? आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? क्या कानूनी फीस नतीजे से [ज़्यादा] हो सकती है? क्या ऐसा हो सकता है? बार काउंसिल के सामने आपका अपना मामला है कि दावे के नतीजे के आधार पर आप फीस का दावा करने के हकदार होंगे... घोर कदाचार! सिर्फ़ यही कि आप नतीजे के आधार पर फीस की मांग करते हुए नोटिस जारी करते हैं... हम फीस बढ़ाने का नोटिस देने का प्रस्ताव कर रहे हैं... यह एक ऐसा व्यक्ति है, जिसने [एक बहन] को उसके भाई के मुआवज़े से ठगने की कोशिश की।"
जस्टिस नाथ ने आगे कहा,
"BCI ने पहले ही इस अवधि को घटाकर 3 साल कर दिया।"
याचिकाकर्ता के वकील ने जब निलंबन अवधि कम करने की गुहार लगाते हुए कहा कि अगर सज़ा बरकरार रहती है तो याचिकाकर्ता का करियर बर्बाद हो जाएगा तो जस्टिस नाथ ने जवाब दिया,
"हमें नहीं पता कि आपने और कितने लोगों को इस तरह ठगा है... यह पूरी तरह से कदाचार का मामला है।"
हालांकि, यह तर्क दिया गया कि ऐसे अन्य मामले भी थे, जिनके लिए मुवक्किल की ओर से फीस देय थी और एक समेकित राशि जमा की गई थी, लेकिन खंडपीठ इससे सहमत नहीं हुई। उसे याचिकाकर्ता के इस तर्क पर भी हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिला कि उपस्थित होने और जिरह का अवसर न दिए जाने के बावजूद उस पर एकपक्षीय कार्यवाही की गई।
जस्टिस नाथ ने मामले को समाप्त करने से पहले कहा,
"वकीलों को अनुशासन का प्रशिक्षण लेने की आवश्यकता है।"
Case Title: X Versus BAR COUNCIL OF INDIA AND ORS.

