सुप्रीम कोर्ट ने बडगाम बलात्कार मामले में गुलजार पीर को बरी करने का फैसला बरकरार रखा
Shahadat
20 May 2025 4:46 AM

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के बलात्कार मामले में गुलजार अहमद भट को बरी करने का फैसला बरकरार रखा। गुलजार अहमद भट को गुलजार पीर के नाम से भी जाना जाता है।
यह मामला बडगाम जिले में 2013 में दर्ज FIR से शुरू हुआ था, जिसमें रणबीर दंड संहिता (RPC) की धारा 376 और 109 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया। आरोपों की संवेदनशील प्रकृति और आरोपी की प्रोफाइल के कारण इस मुकदमे ने जनता और मीडिया का ध्यान खींचा था।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने तत्कालीन जम्मू और कश्मीर यूटी द्वारा सामूहिक बलात्कार मामले में चार आरोपियों को बरी करने को चुनौती देने वाली अपील खारिज कर दी। यह अपील जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा पारित फैसले से उत्पन्न हुई, जिसमें सेशन जज द्वारा पारित बरी करने का आदेश बरकरार रखा गया।
राज्य के सरकारी वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों ने लगातार अभियुक्तों के खिलाफ गवाही दी और ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने इस साक्ष्य की ताकत का मूल्यांकन करने में विफल रहने की गलती की है।
हालांकि, प्रतिवादी के लिए उपस्थित वकील ने तर्क दिया कि अपील में योग्यता की कमी है और राज्य बरी करने के समवर्ती निष्कर्षों में किसी भी भौतिक विरोधाभास या कानूनी दुर्बलता की पहचान करने में सक्षम नहीं था। उन्होंने बरी करने के फैसले को पलटने के लिए आवश्यक उच्च सीमा की ओर भी इशारा किया, जिसे पूरा करने में राज्य विफल रहा।
दोनों पक्षकारों को सुनने के बाद न्यायालय ने माना कि सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों में हस्तक्षेप करने का कोई बाध्यकारी कारण नहीं था।
तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।
खंडपीठ ने यशवंत और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2019 और राजेश प्रसाद बनाम बिहार राज्य और अन्य 2022 में निर्धारित उदाहरणों पर भरोसा किया, इस सिद्धांत को दोहराते हुए कि अपीलीय अदालतों को बरी करने के फैसले को पलटते समय सावधानी बरतनी चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि
गुलज़ार पीर स्वयंभू आस्था चिकित्सक, जिसके कश्मीर घाटी में राजनेताओं, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों सहित बड़ी संख्या में अनुयायी हैं, उनको खानसाहिब पुलिस स्टेशन में अंततः FIR दर्ज किए जाने के बाद गिरफ़्तार किया गया।
सेशन कोर्ट ने 2015 में गुलज़ार पीर को बरी कर दिया और बाद में 2017 में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने भी बरी किए जाने का फ़ैसला बरकरार रखा। बरी किए जाने के ख़िलाफ़ राज्य की अपील को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसने कहा कि निचली अदालतों के समवर्ती निष्कर्षों को पलटने के लिए कोई ठोस कारण मौजूद नहीं था।
केस-टाइटल: राज्य एसएचओ के माध्यम से, खान साहिब, बडगाम बनाम गुलज़ार अहमद पीर, 2025