सुप्रीम कोर्ट ने धोखाधड़ी मामले में Congress MLA के खिलाफ ट्रायल दिल्ली ट्रांसफर किया
Shahadat
7 Oct 2025 1:52 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक (Congress MLA) राजेंद्र भारती के खिलाफ धोखाधड़ी के मामले में मुकदमा दिल्ली ट्रांसफर किया। भारती ने आरोप लगाया था कि बचाव पक्ष के गवाहों पर दबाव डाला गया था।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने भारती की याचिका पर भारती की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू (राज्य की ओर से) और सीनियर एडवोकेट अधिवक्ता सौरभ मिश्रा शिकायतकर्ता की ओर पेश की गईं दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया, जिसमें भारती ने मुकदमे को मध्य प्रदेश से बाहर ट्रांसफर करने की मांग की।
इस साल फरवरी में जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई पर रोक लगाई। खंडपीठ ने राज्य सरकार के इस सवाल पर गोलमोल जवाब देने पर असंतोष व्यक्त किया कि क्या उसने गवाहों को धमकाने के आरोपों की जांच की। सुनवाई के दौरान, खंडपीठ को बताया गया कि बचाव पक्ष के गवाहों को एक होटल में ले जाया गया और याचिकाकर्ता के खिलाफ गवाही देने के लिए उन पर दबाव डाला गया। हालांकि, राज्य सरकार ने इस आरोप का साफ खंडन किया।
खंडपीठ ने मंगलवार को पाया कि 11 गवाहों में से 3 की मृत्यु हो चुकी है। याचिकाकर्ता ने 6 गवाहों को सौंप दिया। इसलिए केवल 2 गवाहों की गवाही बाकी है। आगे बताया गया कि मुकदमा CrPC की धारा 313 के चरण में है।
सिब्बल ने भारती के खिलाफ दर्ज FIR का हवाला दिया। आरोपों (कि भारती के पास एक सावधि जमा था, जिसे उन्होंने 3 साल की सीमा से आगे बढ़ाया) पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा,
"सारी समस्या इसलिए पैदा हुई, क्योंकि वह चुनाव जीत गए। वे चाहते हैं कि उन्हें 3 साल की सजा मिले ताकि उनकी सदस्यता चली जाए। बस इतना ही। यही पूरा खेल है... आधिकारिक परिसमापक प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा है, शिकायतकर्ता लगातार प्रतिनिधित्व कर रहा है।"
सीनियर वकील ने जांच अधिकारी द्वारा दर्ज गवाह के बयान का भी हवाला दिया, जिसमें गवाह ने कहा कि स्थानीय नेताओं ने उसे याचिकाकर्ता के पक्ष में गवाही न देने के लिए धमकाया।
मिश्रा ने ट्रांसफर का विरोध करते हुए कहा कि ट्रांसफर याचिका तब दायर की गई, जब केवल 2 गवाह बचे थे और अब वे आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें धमकाया गया। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि राज्य गवाहों को सुरक्षा देने को तैयार है। उनके साक्ष्य दिन-प्रतिदिन दर्ज किए जा सकते हैं। यह उल्लेख किया गया कि धमकी के आरोपों की CID अधिकारियों द्वारा जांच की गई, लेकिन कोई सबूत नहीं मिला।
पक्षकारों की सुनवाई के बाद जस्टिस मेहता ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि प्रत्यक्षदर्शी गवाहों ने दावा किया कि उन्हें धमकाया गया। दूसरी ओर, जस्टिस नाथ ने ट्रांसफर के प्रतिवादियों के विरोध पर सवाल उठाया और इस बात पर ज़ोर दिया कि न्याय न केवल होना चाहिए, बल्कि होता हुआ दिखना भी चाहिए।
जहां तक मिश्रा ने यह दावा किया कि जिन अधिकारियों (DPO, ADPO सहित) के खिलाफ आरोप लगाए गए, वे चले गए, जस्टिस मेहता ने कहा,
"बात सिर्फ़ इतनी नहीं है कि वे चले गए। जिस तरह से शुरुआती चरण में उन लोगों को शामिल करके मामले को आगे बढ़ाया गया, जिनके आपसे सीधे संबंध थे, जिस तरह से शुरू में मुकदमे को प्रभावित करने की कोशिश की गई, बस यही पूरी बात है...यह कोई एक घटना नहीं है...बैंक [ट्रांसफर] का विरोध करने पर इतना आमादा क्यों है? अगर मामले का फैसला अदालत या दूसरी अदालत द्वारा किया जाता है, तो बैंक को क्या नुकसान है?"
खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की इस दलील पर भी गौर किया कि मार्च की रिपोर्ट में जांच अधिकारी ने धमकियों के बारे में गवाह का बयान दर्ज किया, लेकिन मई की अगली रिपोर्ट में इसे नजरअंदाज कर दिया गया।
Case Title: Rajendra Bharti v. State of Madhya Pradesh, T.P.(Crl.) No. 1120/2024

