इलाहाबाद हाईकोर्ट जज के विरुद्ध कठोर आदेश पारित करने के मामले पर फिर से सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

7 Aug 2025 3:39 PM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट जज के विरुद्ध कठोर आदेश पारित करने के मामले पर फिर से सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट उस मामले की पुनः सुनवाई करेगा, जिसमें उसने एक अभूतपूर्व आदेश पारित किया था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को एक सीनियर जज के साथ बैठाया जाए और उनके रिटायरमेंट तक उन्हें आपराधिक क्षेत्राधिकार आवंटित न किया जाए।

    4 अगस्त को पारित कठोर आदेश द्वारा निपटाया गया था। यह मामला अब शुक्रवार को जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ के समक्ष पुनः सूचीबद्ध माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर मामले की स्थिति अब "लंबित" दिखाई जा रही है।

    सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आलोचना हुई थी कि यह न्यायिक शक्तियों का अतिक्रमण और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की रोस्टर शक्तियों में हस्तक्षेप है।

    4 अप्रैल को जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार द्वारा पारित उस आदेश पर आपत्ति जताई थी, जिसमें आपराधिक शिकायत यह कहते हुए रद्द करने से इनकार कर दिया गया था कि धन की वसूली के लिए दीवानी मुकदमे का उपाय प्रभावी नहीं है।

    हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए खंडपीठ ने टिप्पणी की कि आदेश पारित करने वाले हाईकोर्ट जज को एक सीनियर जज के साथ खंडपीठ में बैठाया जाना चाहिए। इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट जज को कोई भी आपराधिक मामला आवंटित नहीं किया जाना चाहिए। यह भी कहा गया कि जज ने "न्याय का मखौल" उड़ाया है।

    खंडपीठ ने कहा,

    "संबंधित जज ने न केवल खुद को दयनीय स्थिति में पहुंचाया है, बल्कि न्याय का भी मखौल उड़ाया। हम यह समझने में असमर्थ हैं कि हाईकोर्ट के स्तर पर भारतीय न्यायपालिका में क्या गड़बड़ है। कई बार हम यह सोचकर हैरान रह जाते हैं कि क्या ऐसे आदेश किसी बाहरी विचार पर पारित किए जाते हैं या यह कानून की पूरी तरह से अज्ञानता है। जो भी हो, ऐसे बेतुके और त्रुटिपूर्ण आदेश पारित करना अक्षम्य है।"

    न्यायालय जस्टिस कुमार द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें वर्तमान अपीलकर्ता द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 406 के तहत जारी समन को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई की जा रही थी।

    संक्षेप में तथ्य

    उक्त मामला यह है कि ललिता टेक्सटाइल्स (हाईकोर्ट के समक्ष प्रतिवादी) ने अपीलकर्ता के विरुद्ध आपराधिक शिकायत दर्ज की थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने अपीलकर्ता को विनिर्माण में प्रयुक्त धागा आपूर्ति किया और 7,23,711/- रुपये की बकाया राशि बकाया थी।

    इसके बाद प्रतिवादी/शिकायतकर्ता का बयान दर्ज किया गया और अपीलकर्ता के विरुद्ध समन जारी किया गया। जब अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो जस्टिस कुमार ने सुझाव दिया कि चूंकि शिकायतकर्ता "छोटी व्यावसायिक फर्म" है। इसमें शामिल राशि बहुत बड़ी है, इसलिए इस मामले को पक्षों के बीच दीवानी विवाद के रूप में संदर्भित करना न्याय का उपहास होगा।

    हाईकोर्ट ने आदेश में कहा:

    "ओ.पी. नंबर 2 एक बहुत ही छोटी व्यावसायिक फर्म प्रतीत होती है और उसके लिए ब्याज सहित उपरोक्त राशि एक बड़ी राशि है। यदि वह दीवानी मुकदमा दायर करता है तो ओ.पी. नंबर 2 दीवानी मुकदमा चलाने की स्थिति में नहीं होगा। यदि ओ.पी. नंबर 2 दीवानी मुकदमा दायर करता है तो सबसे पहले तो उसे आशा की कोई किरण दिखाई देने में वर्षों लग जाएंगे। दूसरी बात, उसे मुकदमा चलाने के लिए और अधिक धन लगाना होगा। अधिक सटीक रूप से कहें तो यह ऐसा लगेगा जैसे अच्छा पैसा बुरे पैसे के पीछे भाग रहा हो। यदि यह न्यायालय पक्षकारों के बीच दीवानी विवाद के कारण मामले को दीवानी न्यायालय में भेजने की अनुमति देता है तो यह न्याय का उपहास होगा और ओ.पी. नंबर 2 को अपूरणीय क्षति होगी। वह मामले को आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय बाधाओं से उबरने की स्थिति में भी नहीं होगा।"

    यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उठाया गया तो जस्टिस पारदीवाला ने जस्टिस कुमार के विरुद्ध कुछ कठोर टिप्पणियां कीं।

    हाईकोर्ट के आदेश के पैरा 12 का उल्लेख करते हुए जस्टिस पारदीवाला की खंडपीठ ने आदेश में कहा:

    "जज ने यहां तक कहा कि शेष राशि की वसूली के लिए शिकायतकर्ता से दीवानी उपाय अपनाने के लिए कहना बहुत अनुचित होगा, क्योंकि दीवानी मुकदमे का फैसला आने में बहुत समय लग सकता है। इसलिए शिकायतकर्ता को शेष राशि की वसूली से पहले आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट जज की यह समझ है कि, अंततः, सही या गलत, यदि अभियुक्त दोषी ठहराया जाता है तो निचली अदालत उसे शेष राशि प्रदान करेगी।

    पैरा 12 में दर्ज निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं। प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए बिना भी हमारे पास आदेश को रद्द करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। परिणामस्वरूप, हम याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हैं और हाईकोर्ट द्वारा पारित विवादित आदेश रद्द करते हैं। हम मामले को आपराधिक विविध आवेदन पर नए सिरे से विचार के लिए हाईकोर्ट को वापस भेजते हैं। हम हाईकोर्ट के माननीय चीफ जस्टिस से अनुरोध करते हैं कि वे इस मामले को हाईकोर्ट के किसी अन्य जज को सौंप दें।"

    सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में आगे कहा:

    "हम माननीय चीफ जस्टिस से अनुरोध करते हैं कि वे संबंधित जज के वर्तमान निर्णय को तत्काल वापस लें। संबंधित जज को हाईकोर्ट के किसी अनुभवी सीनियर जज के साथ खंडपीठ में बैठाया जाना चाहिए। इस मामले में, संबंधित जज को उनके पद छोड़ने तक कोई भी आपराधिक निर्णय नहीं दिया जाना चाहिए। यदि उन्हें सिंगल जज के रूप में बैठना ही है तो उन्हें कोई भी आपराधिक निर्णय नहीं दिया जाना चाहिए। रजिस्ट्री आदेश की कॉपी इलाहाबाद हाईकोर्ट के माननीय चीफ जस्टिस को भेजे।"

    Case Details: M/S. SHIKHAR CHEMICALS v THE STATE OF UTTAR PRADESH AND ANR|SLP(Crl) No. 11445/2025

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