विधेयकों की स्वीकृति की समय-सीमा पर राष्ट्रपति के संदर्भ पर 22 जुलाई को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

19 July 2025 5:45 PM

  • विधेयकों की स्वीकृति की समय-सीमा पर राष्ट्रपति के संदर्भ पर 22 जुलाई को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

    विधेयकों को स्वीकृति देने से संबंधित प्रश्नों पर संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा दिए गए संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट 22 जुलाई को सुनवाई करेगा।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी।

    राष्ट्रपति ने यह संदर्भ तमिलनाडु के राज्यपाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद दिया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के अनुसार राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए क्रमशः समय-सीमा निर्धारित की गई थी।

    तमिलनाडु मामले में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर "पॉकेट वीटो" का प्रयोग नहीं कर सकते। साथ ही राज्यपाल के निर्णय के लिए तीन महीने की ऊपरी सीमा तय की।

    न्यायालय ने आगे कहा कि यदि राज्यपाल द्वारा विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखा जाता है, तो राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर कार्रवाई करनी होगी। न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि समय-सीमा का उल्लंघन होता है तो राज्य सरकार न्यायालय से परमादेश याचिका (रिट) प्राप्त करने की हकदार होगी।

    तमिलनाडु राज्य द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी घोषित किया कि राज्यपाल द्वारा एक वर्ष से अधिक समय से लंबित रखे गए दस विधेयकों को मानित स्वीकृति प्राप्त हो गई।

    उपराष्ट्रपति ने इस निर्णय की कड़ी आलोचना की और सवाल उठाया कि क्या न्यायालय को राष्ट्रपति को निर्देश जारी करने का अधिकार है। उपराष्ट्रपति ने तो अनुच्छेद 142 की शक्ति को न्यायपालिका के पास "परमाणु मिसाइल" तक कह दिया।

    राष्ट्रपति के संदर्भ में उठाए गए प्रश्नों में से एक यह है कि क्या न्यायालय न्यायिक रूप से राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित कर सकता है।

    उठाए गए प्रश्न निम्नलिखित हैं:

    1. जब भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के समक्ष कोई विधेयक प्रस्तुत किया जाता है तो उसके सामने संवैधानिक विकल्प क्या हैं?

    2. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल के समक्ष कोई विधेयक प्रस्तुत किए जाने पर वह मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सहायता और सलाह से बाध्य है?

    3. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल द्वारा संवैधानिक विवेकाधिकार का प्रयोग न्यायोचित है?

    4. क्या भारत के संविधान का अनुच्छेद 361, भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल के कार्यों के संबंध में न्यायिक पुनर्विचार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है?

    5. संवैधानिक रूप से निर्धारित समय-सीमा और राज्यपाल द्वारा शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में क्या राज्यपाल द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत सभी शक्तियों के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय-सीमाएँ निर्धारित की जा सकती हैं और प्रयोग का तरीका निर्धारित किया जा सकता है?

    6. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक विवेकाधिकार का प्रयोग न्यायोचित है?

    7. संवैधानिक रूप से निर्धारित समय-सीमा और राष्ट्रपति द्वारा शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार के प्रयोग हेतु न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय-सीमाएँ निर्धारित की जा सकती हैं और प्रयोग का तरीका निर्धारित किया जा सकता है?

    8. राष्ट्रपति की शक्तियों को नियंत्रित करने वाली संवैधानिक व्यवस्था के आलोक में क्या राष्ट्रपति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के अंतर्गत संदर्भ के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेने और राज्यपाल द्वारा किसी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए या अन्यथा आरक्षित रखने पर सुप्रीम कोर्ट की राय लेने की आवश्यकता है?

    9. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 और अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय कानून के लागू होने से पहले के चरण में न्यायोचित हैं? क्या न्यायालयों के लिए किसी विधेयक के कानून बनने से पहले किसी भी रूप में उसकी विषय-वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेना अनुमन्य है?

    10. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग और राष्ट्रपति/राज्यपाल के आदेशों को किसी भी प्रकार से प्रतिस्थापित किया जा सकता है?

    11. क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल की अनुमति के बिना लागू कानून माना जाता है?

    12. भारत के संविधान के अनुच्छेद 145(3) के प्रावधान के मद्देनजर, क्या इस माननीय न्यायालय की किसी भी पीठ के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह पहले यह निर्णय करे कि क्या उसके समक्ष कार्यवाही में शामिल प्रश्न ऐसी प्रकृति का है, जिसमें संविधान की व्याख्या के संबंध में विधि के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं और उसे कम-से-कम पांच जजों की पीठ को भेजा जाए?

    13. क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियाँ प्रक्रियात्मक कानून के मामलों तक सीमित हैं या क्या भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 ऐसे निर्देश जारी करने/आदेश पारित करने तक विस्तारित है, जो संविधान या लागू कानून के मौजूदा मूल या प्रक्रियात्मक प्रावधानों के विपरीत या उनसे असंगत हैं?

    14. क्या संविधान, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 131 के अंतर्गत वाद के माध्यम से छोड़कर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी अन्य अधिकार क्षेत्र पर रोक लगाता है?

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