सुप्रीम कोर्ट गैर-मान्यता प्राप्त कॉलेज से लॉ ग्रेजुएट को न्यायिक परीक्षा में बैठने की अनुमति देने वाले आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा

Shahadat

27 Feb 2025 2:32 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट गैर-मान्यता प्राप्त कॉलेज से लॉ ग्रेजुएट को न्यायिक परीक्षा में बैठने की अनुमति देने वाले आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा

    गुजरात हाईकोर्ट के उस अंतरिम आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 4 मार्च को सुनवाई करेगा, जिसमें गैर-मान्यता प्राप्त संस्थानों से लॉ ग्रेजुएट करने वाले दो स्टूडेंट को सिविल जज की परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई।

    जस्टिस निरजर एस देसाई की हाईकोर्ट की पीठ ने 24 फरवरी को राज्य बार काउंसिल को निर्देश दिया कि वह गैर-मान्यता प्राप्त संस्थान से LLB करने वाले दो लॉ ग्रेजुएट को प्रैक्टिस का प्रोविजनल सर्टिफिकेट जारी करे, जिससे वे सिविल जज के पद के लिए भर्ती प्रक्रिया में भाग ले सकें।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया गया। जस्टिस गवई ने वकील से अंतरिम आवेदन दाखिल करने को कहा और निर्देश दिया कि मामले को वर्तमान पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए 4 मार्च, मंगलवार को सूचीबद्ध किया जाए।

    बातचीत इस प्रकार हुई:

    जस्टिस गवई: "आप आईए (अंतरिम आवेदन) क्यों नहीं दाखिल करते, परीक्षा कब है?"

    वकील: "मुझे नहीं पता लेकिन लगता है कि यह तत्काल है।"

    जस्टिस गवई: "एओआर को आज ही आईए तैयार करने को कहें, हम इसे मंगलवार को सूचीबद्ध करेंगे। आप इसका मसौदा तैयार करें। बार काउंसिल ऑफ इंडिया को नोटिस दें, बीसीआई भी प्रभावित होगी, अंतरिम आदेश से ऐसा कैसे हो सकता है।"

    वकील: "ऐसा नहीं किया जा सकता, वे योग्यता नहीं बदल सकते।"

    हाईकोर्ट के समक्ष

    याचिकाकर्ता का मामला यह था कि जिस संस्थान से उन्होंने LLB की पढ़ाई पूरी की, उसे मान्यता प्राप्त संस्थान नहीं माना जाता है। इस संस्थान ने पिछले साल हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की, जो लंबित है। न्यायालय को बताया गया कि कम से कम 20 कॉलेजों या उनके स्टूडेंट द्वारा ऐसी अन्य याचिकाएं दायर की गईं।

    न्यायालय को बताया गया कि सैय्यद महम्मदजुबर यूनुसभाई और अन्य बनाम बार काउंसिल ऑफ गुजरात और अन्य के मामले में याचिकाकर्ताओं को अखिल भारतीय बार परीक्षा में बैठने की अनुमति देने से संबंधित मामला था और बार काउंसिल ऑफ गुजरात द्वारा जारी किए गए अनंतिम प्रमाण पत्र के आधार पर याचिकाकर्ताओं को इसमें शामिल होने की अनुमति दी गई।

    अदालत को बताया गया कि प्रैक्टिस का प्रमाण पत्र यह पता लगाने के लिए आवश्यक है कि कोई व्यक्ति प्रैक्टिसिंग एडवोकेट है या नहीं, क्योंकि आवेदन में केवल इतना बताना आवश्यक है, जैसा कि विज्ञापन से देखा जा सकता है, कि व्यक्ति को फॉर्म भरते समय यह बताना होगा कि वह कितने समय से प्रैक्टिस कर रहा है। इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई व्यक्ति प्रैक्टिसिंग एडवोकेट है और नॉन-प्रैक्टिसिंग एडवोकेट नहीं है, प्रैक्टिस का प्रमाण पत्र आवश्यक है।

    इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा,

    "उपर्युक्त प्रस्तुतियों के साथ-साथ विशेष सिविल आवेदन नंबर 13048/2024 में पारित दिनांक 21.10.2024 के आदेश तथा दिनांक 23.10.2024 के मिनटों पर टिप्पणी के आदेश पर विचार करते हुए न्यायालय ने प्रथम दृष्टया पाया कि अतीत में भी प्रतिवादी - बार काउंसिल ऑफ गुजरात ने प्रैक्टिस का ऐसा सर्टिफिकेट जारी किया, जिसके आधार पर संबंधित आवेदकों को अखिल भारतीय बार परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई। यहां उद्देश्य अलग हो सकता है लेकिन साथ ही तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता जिन्होंने एक ऐसे कॉलेज से पढ़ाई की, जो अब मान्यता से संबंधित मुद्दे का सामना कर रहा है, जिसके लिए इस न्यायालय के समक्ष याचिका लंबित है जिसमें राहत दी गई। वर्तमान याचिकाकर्ता भी राहत प्रदान करने के लिए विचार किए जाने के पात्र हैं, केवल इस कारण से कि शुरू में एडवोकेट श्री झा द्वारा एक बयान दिया गया कि याचिकाकर्ता केवल भर्ती प्रक्रिया में भागीदारी चाहते हैं और जब तक मान्यता के मुद्दे पर निर्णय नहीं हो जाता, याचिकाकर्ता पद पर नियुक्ति का दावा नहीं करेंगे, भले ही उनका चयन हो जाए।"

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