क्या गैरकानूनी हिरासत की अवधि को डिफ़ॉल्ट जमानत की अवधि में शामिल किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट गौतम नवलखा की याचिका पर 22 मार्च को सुनवाई करेगा

LiveLaw News Network

15 March 2021 7:48 AM GMT

  • क्या गैरकानूनी हिरासत की अवधि को डिफ़ॉल्ट जमानत की अवधि में शामिल किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट गौतम नवलखा की याचिका पर 22 मार्च को सुनवाई करेगा

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह एक्टिविस्ट गौतम नवलखा की याचिका पर 22 मार्च सुनवाई करेगा।

    गौतम नवलखा ने सुप्रीम कोर्ट में बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें गौतम नवलखा को 2018 में उनके हाउस अरेस्ट की 34 दिनों की अवधि को गिनती में लाते हुए उन्हें डिफ़ॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया था।

    जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की एक खंडपीठ ने सोमवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी के अनुरोध पर नवलाखा की याचिका पर जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए सुनवाई स्थगित कर दी।

    नवलखा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि एक काउंटर-एफिडेविट आवश्यक नहीं हो सकता है, क्योंकि इस मामले में केवल कानून का सवाल शामिल है।

    हालांकि, पीठ ने अतिरिक्त एडिशनल जनरल एस वी राजू द्वारा काउंटर-एफिडेविट दाखिल करने के लिए समय देने के अनुरोध को स्वीकार कर लिया।

    न्यायमूर्ति ललित ने एएसजी से कहा,

    "क्योंकि आदमी हिरासत में है, इसलिए आपको प्रक्रिया में तेजी लानी होगी। अगले सोमवार को हमारे सामने यह प्रक्रिया पेश करनी होगी।"

    न्यायमूर्ति ललित ने एनआईए को 19 मार्च तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा,

    "यह केवल कानून का सवाल है कि क्या धारा -167 सीआरपीसी के प्रयोजनों के लिए हाउस-अरेस्ट की अवधि को शामिल किया जाना है।"

    8 फरवरी को, बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना था कि नवलखा की 34 दिन की हाउस अरेस्ट को डिफ़ॉल्ट जमानत के प्रयोजनों के लिए चार्जशीट दाखिल करने की अवधि की गणना में शामिल नहीं किया जा सकता है।

    हाईकोर्ट ने नोट किया कि गिरफ्तारी और रिमांड के लिए अनिवार्य शर्तों के उल्लंघन के कारण दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा घर से गिरफ्तारी की अवधि को गैरकानूनी हिरासत में रखा गया था।

    हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए निर्धारित 90 दिनों की अवधि की गणना करते समय गैरकानूनी हिरासत की ऐसी अवधि को शामिल नहीं किया जा सकता है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि नवलखा घर में नजरबंद थे। इस दौरान वह केवल अपने परिवार और वकीलों से बातचीत कर सकते थे। हालांकि, जांच एजेंसी के पास उनसे पूछताछ करने का कोई अवसर या कोई मौका नहीं था, क्योंकि हाईकोर्ट ने पुलिस को नवलखा को उसी स्थान पर रखने का आदेश दिया था, जहां से उन्हें गिरफ्तार किया गया था।

    हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए निर्धारित 90 दिनों की अवधि की गिनती करते समय "गैरकानूनी हिरासत" में बिताया गया समय शामिल नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट ने आगे कहा कि 28 अगस्त, 2018 से 10 अक्टूबर, 2018 के बीच नवलखा घर में नज़रबंद रहे थे, इसलिए यह समय उनकी कुल हिरासत अवधि की गिनती करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

    साथ ही मजिस्ट्रेट के ट्रांजिट रिमांड के दौरान के समय को भी दिल्ली हाईकोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि नवलखा घर में नजरबंद थे और इस दौरान वह केवल अपने परिवार और वकीलों से बातचीत कर सकते थे।

    हालांकि, जांच एजेंसी के पास उनसे पूछताछ करने के लिए कोई अवसर नहीं था, क्योंकि हाईकोर्ट ने पुलिस को नवलखा को उसी स्थान पर रखने का आदेश दिया था, जहां से उन्हें गिरफ्तार किया गया था।

    पीठ ने कहा,

    "चूंकि ट्रांजिट रिमांड के आदेश पर रोक लगाई गई थी, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता पुलिस जांच के लिए हिरासत में था।"

    अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 167 (2) मानती है कि हिरासत मजिस्ट्रेट द्वारा अधिकृत है और उस दिन से 90 दिन की अवधि का उपयोग डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए हिरासत की अवधि की गिनती के लिए किया जा सकता है।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "हालांकि, एक बार मजिस्ट्रेट द्वारा प्राधिकृत किए जाने के बाद अवैध रूप से हिरासत में रखने को अवैध घोषित कर दिया जाता है, उक्त अवधि (हाउस अरेस्ट कस्टडी) को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के अर्थ के भीतर अधिकृत हिरासत में नहीं लिया जा सकता है।"

    महाराष्ट्र पुलिस ने एक दिन बाद 31 दिसंबर, 2017 को आयोजित 'एल्गर परिषद' और भीमा कोरेगांव हिंसा के बाद दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में 28 अगस्त, 2018 को नवलखा को गिरफ्तार किया था।

    इस सम्मेलन से जुड़े कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों पर देशव्यापी कार्रवाई करके पुलिस ने एक बड़ी माओवादी साजिश का पर्दाफाश करने का दावा किया था। बाद में मामला एनआईए को सौंप दिया गया था।

    अगस्त, 2018 में नवलखा की गिरफ्तारी और उसके बाद घर पर नज़रबंदी को दिल्ली हाईकोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया था। तब नवलखा ने सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया, मगर सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा को 16 मार्च 2020 को उनकी जमानत अर्जी खारिज करने के बाद उन्हें तीन सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था।

    कोरोनावायरस महामारी के मद्देनजर उनकी जमानत-विस्तार की याचिका को भी खारिज कर दिया गया था। इसके बाद नवलखा ने 14 अप्रैल को आत्मसमर्पण कर दिया था।

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