सुप्रीम कोर्ट 17 अगस्त को खुलासे के लिए आरबीआई के आरटीआई नोटिस के खिलाफ बैंकों की चुनौती पर सुनवाई करेगा

LiveLaw News Network

7 Aug 2021 7:38 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने वित्त वर्ष 2017 -2018 और वित्त वर्ष 2018-2019 के लिए इंस्पेक्‍शन रिपोर्ट/रिस्क एसेसमेंट रिपोर्ट के संबंध में सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 11(1) के तहत भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को जारी नोटिस के खिलाफ बैंकों द्वारा दायर याचिकाओं की सुनवाई शुक्रवार को स्थगित कर दी।

    याचिकाकर्ता-बैंकों में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी के अनुरोध को स्वीकार करते हुए जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए 17 अगस्त की तारीख तय की।

    सुनवाई के दौरान प्रतिवादियों की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि पीठ को पहले यह तय करने की जरूरत है कि क्या मामले को जस्टिस नागेश्वर राव की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना है।

    उन्होंने मामले में एक प्रारंभिक मुद्दा उठाया है, जिसमें कहा गया है कि इस मामले की सुनवाई जस्टिस नागेश्वर राव द्वारा की जानी चाहिए क्योंकि पहले अवमानना ​​का मामला उनके द्वारा तय किया गया था।

    भूषण ने पिछली तारीख पर कहा था "योर लॉर्डशिप ने खुद आदेश दिया था कि इन सभी मामलों को जस्टिस राव के समक्ष जाना चाहिए क्योंकि अवमानना ​​​​मामला उनके द्वारा तय किया गया था। इस अदालत के मानदंडों के अनुसार, इस मामले को जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा सुना जाना चाहिए।"

    सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस राव की अगुवाई वाली बेंच ने 28 अप्रैल को भारतीय रिजर्व बैंक बनाम जयंतीलाल एन मिस्त्री के मामले में 2015 के फैसले को वापस लेने से इनकार कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि आरबीआई बैंकों से संबंधित डिफॉल्टरों की सूची, इंस्पेक्‍शन रिपोर्ट, एनुअल स्टेस्टमेंट्स आदि आरटीआई एक्ट के तहत का खुलासा करने के लिए बाध्य है।

    बेंच ने बैंकों के आवेदनों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के नियमों में किसी फैसले को वापस लेने के लिए कोई आवेदन दाखिल करने का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि, पीठ ने बैंकों को जयंतीलाल मिस्त्री के फैसले के खिलाफ अन्य उपलब्ध कानूनी उपायों का इस्तेमाल करने की स्वतंत्रता दी थी।

    उसके बाद, बैंकों ने आरबीआई द्वारा उन्हें जारी किए गए आरटीआई नोटिस को चुनौती देते हुए अलग-अलग रिट याचिकाएं दायर की हैं, जिसमें तर्क दिया गया है कि संवेदनशील वित्तीय जानकारी का खुलासा उनके व्यवसाय के लिए हानिकारक होगा और यह जमाकर्ताओं की गोपनीयता से समझौता करेगा।

    स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और यस बैंक सहित बैंकों द्वारा याचिका दायर की गई है। उनका तर्क है कि उनके प्रतियोगी उनकी आंतरिक रिपोर्ट का फायदा उठा सकते हैं।

    जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने 2 जुलाई को पंजाब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा डिफॉल्टरों की सूची, निरीक्षण रिपोर्ट आदि जानकारी का खुलासा करने के लिए जारी आरटीआई नोटिस पर रोक लगाने की नेशनल बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की प्रार्थना को खारिज कर दिया था।

    बेंच ने हालांकि बैंकों द्वारा दायर रिट याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था और उन्हें भारतीय स्टेट बैंक और निजी बैंकों एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और यस बैंक द्वारा पहले दायर की गई इसी तरह की याचिकाओं के साथ पोस्ट किया था। पीठ ने उन बैंकों को भी अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था।

    धारा 11 केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी को आरटीआई आवेदनों में तीसरे पक्ष से सूचना प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करती है। धारा 11(1) एक अग्रिम नोटिस है जो इस तरह के प्रकटीकरण पर तीसरे पक्ष की आपत्तियों को आमंत्रित करते हुए जारी किया जाता है।

    जयंतीलाल मिस्त्री मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय र‌िजर्व बैंक के इस तर्क को खारिज कर दिया था कि उसने एक फिड्यूसरी क्षमता से बैंकों की जानकारी रखी है और इसलिए इस तरह की जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 (1) (ई) के तहत प्रकटीकरण से छूट दी गई है।

    जस्टिस एमवाई इकबाल और सी नागप्पन की पीठ ने माना था कि आरबीआई खुद को वित्तीय संस्थानों के साथ फिड्यूसरी संबंध में नहीं रखता है, क्योंकि निरीक्षण की रिपोर्ट, बैंक के बयान, आरबीआई द्वारा प्राप्त व्यवसाय से संबंधित जानकारी भरोसे या भरोसे के बहाने के तहत नहीं हैं।

    कोर्ट ने कहा कि नियामक क्षमता के तहत या कानून के आदेश के तहत प्राप्त जानकारी को प्रत्ययी क्षमता के तहत रखी गई जानकारी नहीं कहा जा सकता है।

    न्यायालय ने कहा कि आरबीआई को पारदर्शिता के साथ कार्य करना है और जानकारी को छिपाना नहीं है, जिससे बैंकों को शर्मिंदगी हो सकती है और यह अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने और मांगी गई जानकारी का खुलासा करने के लिए बाध्य है।

    बाद में, अवमानना ​​याचिकाएं तब दायर की गईं जब आरबीआई ने तर्क दिया कि 2016 में आरबीआई द्वारा तैयार की गई प्रकटीकरण नीति जयंतलाल मिस्त्री के फैसले के निर्देशों के विपरीत थी।

    अप्रैल 2019 में, जस्टिस नागेश्वर राव और जस्टिस एमआर शाह की एक पीठ ने आरबीआई को निर्देश दिया कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले ( गिरीश मित्तल बनाम पार्वती वी सुंदरम और अन्य ) के विपरीत छूट की अनुमति देने वाली खुलासा नीति को वापस ले। कोर्ट ने कहा कि आरबीआई द्वारा उसके निर्देश के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा।

    मामला: एचडीएफसी बैंक लिमिटेड बनाम यून‌ियन ऑफ इंडिया और अन्य और जुड़े मामले

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