सुप्रीम कोर्ट ने COVID 19 प्रभावित शवों के साथ कथित बुरे व्यवहार की खबरों पर स्वत: संज्ञान लिया
LiveLaw News Network
11 Jun 2020 11:57 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने COVID 19 प्रभावित शवों के साथ कथित बुरे व्यवहार की खबरों पर स्वत: संज्ञान लिया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अश्विनी कुमार ने सीजेआई एस ए बोबडे को एक पत्र को लिखा था, जिसमें कहा गया है कि COVID 19 महामारी के बीच नागरिक की गरिमा के साथ मृत्यु के अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है। उन्होंने सीजेआई से आग्रह किया था कि वह उन सभी घटनाओं पर स्वतःसंज्ञान ले, जिनमें COVID 19 से संक्रमित व्यक्तियों के साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा है और उनके शवों से भी छेड़छाड़ या ठीक से दाह-संस्कार नहीं करने दिया जा रहा है।
केस का शीर्षक ""In Re Proper Treatment Of COVID-19 Patients And Dignified Handling Of Dead Bodies In The Hospitals, Etc." को न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ के समक्ष शुक्रवार को सुबह 10.30 बजे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अश्विनी कुमार ने सीजेआई का ध्यान मध्य प्रदेश में हुई एक दुखद घटना की तरफ भी आकर्षित किया, जहां COVID 19 से पीड़ित एक बुजुर्ग व्यक्ति को अस्पताल में इसलिए बिस्तर से बांध दिया गया क्योंकि वह कथित तौर पर इलाज के पैसे नहीं दे पा रहा था।
इसी तरह उन्होंने केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी से सामने आई एक वीडियो की तरफ भी इशारा किया, जिसमें दिखाया गया था कि कैसे सरकारी कर्मचारियों एक COVID 19 पॉजिटिव व्यक्ति के शव को गड्ढे में फेंक रहे हैं।
इस पत्र में कहा गया कि
''मध्य प्रदेश के एक अस्पताल में बिस्तर पर बांधे गए एक COVID 19 रोगी की घटना और एक शव को पुडुचेरी में दफनाने के लिए एक गड्ढे में फेंके जाने के दृश्य दुखद और निंदनीय हैं। जिन्होंने संविधान के तहत मानवीय गरिमा के लिए प्रतिबद्ध गणतंत्र की उस सोच को झटका दिया है, जो गैर-संवैधानिक अधिकारों के पदानुक्रम में गरिमा को प्रमुख संवैधानिक मूल्य के रूप में पहचानती है या मान्यता देती है।''
डॉ कुमार ने अस्पतालों और मोर्चरी में शवों के जमाव, श्मशान /कब्रिस्तान की अनुपलब्धता और विद्युत शवदाहगारों के ठीक से काम न करने पर भी चिंता व्यक्त की है। यह मृतकों का निरादर करना है और गरिमा के साथ मरने के अधिकार का अस्वीकार्य उल्लंघन भी है।"
उन्होंने जोर देकर कहा है कि जैसा कि हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने एक स्वतःसंज्ञान जनहित याचिका मामले में और और बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रदीप गांधी बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में माना है कि गरिमा या सम्मान के साथ मरने के अधिकार में सभ्य या शालीन तरीके से दफन या दाह संस्कार का अधिकार भी शामिल है और यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिला एक मौलिक अधिकार है। उन्होंने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई मौकों पर ''गरिमा के साथ मरने के अधिकार''को एक मौलिक अधिकार माना है। इसलिए यह न्यायालय का कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि उसके द्वारा घोषित कानून वास्तव में लागू हो।