पूर्व कानून मंत्री (वरिष्ठ अधिवक्ता) अश्विनी कुमार ने मुख्य न्यायाधीश को लिखा पत्र, COVID 19 मरीजों/ मृत शरीरों के साथ छेड़खानी करने वाली रिपोर्ट पर स्वतःसंज्ञान लेने का आग्रह

LiveLaw News Network

11 Jun 2020 3:15 AM GMT

  • पूर्व कानून मंत्री (वरिष्ठ अधिवक्ता) अश्विनी कुमार ने मुख्य न्यायाधीश को लिखा पत्र, COVID 19 मरीजों/ मृत शरीरों के साथ  छेड़खानी करने वाली रिपोर्ट पर स्वतःसंज्ञान लेने का आग्रह

    वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अश्विनी कुमार ने सीजेआई एस ए बोबडे को एक पत्र को लिखा है। जिसमें कहा गया है कि COVID 19 महामारी के बीच नागरिक की गरिमा के साथ मृत्यु के अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है।

    उन्होंने सीजेआई से आग्रह किया है कि वह उन सभी घटनाओं पर स्वतःसंज्ञान ले, जिनमें COVID १९ से संक्रमित व्यक्तियों के साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा है और उनके शवों से भी छेड़छाड़ या ठीक से दाह-संस्कार नहीं करने दिया जा रहा है।

    उन्होंने सीजेआई का ध्यान मध्य प्रदेश में हुई एक दुखद घटना की तरफ भी आकर्षित किया है,जहां COVID 19 से पीड़ित एक बुजुर्ग व्यक्ति को अस्पताल में इसलिए बिस्तर से बांध दिया गया क्योंकि वह कथित तौर पर इलाज के पैसे नहीं दे पा रहा था।

    इसी तरह उन्होंने केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी से सामने आई एक वीडियो की तरफ भी इशारा किया। जिसमें दिखाया गया था कि कैसे सरकारी कर्मचारियों एक COVID 19 पॉजिटिव व्यक्ति के शव को गड्ढे में फेंक रहे हैं।

    इस पत्र में कहा गया है कि-

    ''मध्य प्रदेश के एक अस्पताल में बिस्तर पर बांधे गए एक COVID 19 रोगी की घटना और एक शव को पुडुचेरी में दफनाने के लिए एक गड्ढे में फेंके जाने के दृश्य दुखद और निंदनीय हैं। जिन्होंने संविधान के तहत मानवीय गरिमा के लिए प्रतिबद्ध गणतंत्र की उस सोच को झटका दिया है, जो गैर-संवैधानिक अधिकारों के पदानुक्रम में गरिमा को प्रमुख संवैधानिक मूल्य के रूप में पहचानती है या मान्यता देती है।''

    डॉ कुमार ने अस्पतालों और मोर्चरी में शवों के जमाव, श्मशान /कब्रिस्तान की अनुपलब्धता और विद्युत शवदाहगारों के ठीक से काम न करने पर भी चिंता व्यक्त की है। यह मृतकों का निरादर करना है और गरिमा के साथ मरने के अधिकार का अस्वीकार्य उल्लंघन भी है।"

    उन्होंने जोर देकर कहा है कि जैसा कि हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने एक स्वतःसंज्ञान जनहित याचिका मामले में और और बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रदीप गांधी बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में माना है कि गरिमा या सम्मान के साथ मरने के अधिकार में सभ्य या शालीन तरीके से दफन या दाह संस्कार का अधिकार भी शामिल है और यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिला एक मौलिक अधिकार है।

    उन्होंने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई मौकों पर ''गरिमा के साथ मरने के अधिकार''को एक मौलिक अधिकार माना है। इसलिए यह न्यायालय का कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि उसके द्वारा घोषित कानून वास्तव में लागू हो।

    पत्र में लिखा है कि-

    ''यह अनुरोध किया जाता है कि न्यायालय इस मामले की स्वतःसंज्ञान ले। गरिमा के मौलिक अधिकार के चैंकाने वाले उल्लंघन के मद्देनजर ... आपकी लाॅर्डशिप से सम्मानपूर्वक अनुरोध किया जाता है, वह इस तरह के आदेश, रिट या अन्य दिशा-निर्देश जारी करे जो नागरिकों के गरिमा के साथ मरने के अधिकार को कार्यान्वित या लागू करवाएं।''

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अखबार की उन रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया था, जिसमें बताया गया था कि COVID 19 से मरने वालों के शव मोर्चरी व शवदाह गृहों में कैसे रखे जा रहे हैं और इस दुखद स्थिति पर प्रकाश ड़ाला गया था। कोर्ट ने इस मामले में दिल्ली सरकार से कहा था कि वह एक स्टेट्स रिपोर्ट दायर करें, जिसमें बताया जाए कि COVID 19 रोगियों के शवों के उचित निपटान के लिए सरकार ने जो दिशानिर्देशों जारी किए है उनका अनुपालन कैसे हो रहा है।

    वहीं COVID 19 संक्रमित के संपर्क में आने के बाद दिल का दौरा पड़ने से एक डाॅक्टर की मौत हो जाने के बाद उनके शव को दफनाने का भी सामूहिक रूप से विरोध किया गया था, जिससे कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ गई थी। इस मामले में सामने आई रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर अनुच्छेद 21 के तहत मिले दफनाने के अधिकार के तहत राज्य को नोटिस जारी किया था।

    एक COVID 19 से प्रभावित डॉक्टर को दफन करने के काम में बांधा ड़ालने की रिपोर्ट सामने आने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी हाल ही के एक आदेश में शालीनता के साथ दफन करने के अधिकार के संबंध में व्यापक टिप्पणियां की थी।

    आदेश में कहा गया था कि-

    ''न्यायालय के विचार में अनुच्छेद 21 के अभिप्राय और परिधि के दायरे में सभ्यता या शालीनता से दफन का अधिकार शामिल है। प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि उपर्युक्त कथित कृत्यों के परिणामस्वरूप, एक व्यक्ति जो डॉक्टर जैसे महान पेशे में प्रैक्टिस करता था और मर जाता है,उसे भी उसके उस अधिकार से वंचित कर दिया गया,जिसके तहत उसको उस कब्रिस्तान में दफनाया जा सकें,जो मुख्यतः दफनाने के उद्देश्य के लिए ही बना है। इसके अलावा कानून और व्यवस्था और सार्वजनिक व्यवस्था की समस्या के कारण उन अधिकारियों को भी लगातार चोट खानी पड़ी है,जो अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।''

    पत्र डाउनलोड करेंं



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