सुप्रीम कोर्ट ने जेल प्रबंधन को जेल की सजा काट चुके तकनीकी विशेषज्ञ द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर का उल्लेख किया

LiveLaw News Network

3 March 2021 12:01 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने जेल प्रबंधन को जेल की सजा काट चुके तकनीकी विशेषज्ञ द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर का उल्लेख किया

    सुप्रीम कोर्ट ने 13 महीने की जेल की सजा काट चुके सॉफ्टवेयर इंजीनियर द्वारा विकसित 'प्रिजन सॉफ्टवेयर' को पूरे देश भर की जेलों में लागू करने की संभाव्यता तलाशने की सलाह दी है।

    सॉफ्टवेयर इंजीनियर अमित मिश्रा ने 2014 में बरी होने से पहले 13 महीने जेल की सजा काटी थी। वह अपनी पत्नी की आत्महत्या से संबंधित एक मामले में अभियुक्त था। जून 2015 में, उसने 'इनवेडर टेक्नोलॉजी' नामक कंपनी बनायी थी। जेल में जिन परिस्थितियों का उसका सामना हुआ, उसका संज्ञान लेते हुए उसने जेल / कैदी सूचना प्रबंधन से संबंधित 'फीनिक्स' नामक सॉफ्टवेयर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया था।

    फीनिक्स जेल / कैदी सूचना प्रबंधन प्रणाली की महत्वपूर्ण विशेषताएं इस प्रकार हैं: सभी जेलों और कैदियों की प्रोफाइलिंग की विस्तार से जानकारी, यथा नाम, पिता का नाम, पता, संपर्क नंबर के साथ पूर्ण जनसांख्यिकीय गेट नियंत्रण (फिंगर प्रिंट पहचान पर) स्वचालित गेट के साथ-सुरक्षा के लिए और इन-आउट इतिहास।

    मेटा सर्च इंजन (फिंगर प्रिंट पहचान के लिए) - 100 प्रतिशत स्थिति और व्यावसायिक गुणवत्ता अनुकूलन बजट प्रबंधन- टॉप-डाउन बजट प्रविष्टि निर्णय समर्थन प्रणाली- प्रबंधकीय प्रक्रियाओं को स्वचालित करने में मदद करती है। अवकाश (पैरोल / फर्लो) प्रबंधन प्रणाली- पात्र कैदियों के लिए पैरोल / फर्लो की प्रक्रिया प्रवाह रिलीज प्रबंधन प्रणाली-पारदर्शी और तेजी से निपटान सुनिश्चित करना।

    गृह मंत्रालय द्वारा 2015 में मंजूरी दिये जाने के बाद अब इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल हरियाणा की जेलों में हो रहा है।

    हाल ही में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की खंडपीठ के संज्ञान में यह बात लायी गयी थी।

    कोर्ट ने कहा,

    "हरियाणा में बंदियों / दोषियों में से एक श्री अमित मिश्रा ने एक सॉफ्टवेयर तैयार किया है, जिसे हरियाणा राज्य सरकार ने खुद लागू करने लायक और व्यापक तौर पर इस्तेमाल करने लायक माना था। कुछ संशोधनों के साथ इसे देश में व्यापक रूप से अपनाने की संभाव्यता का भी पता लगाया जा सकता है। "

    बेंच एक निश्चित समय सीमा के भीतर कैदियों की सजा समाप्त करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने से संबंधित मामले पर विचार कर रही थी।

    बेंच ने माना कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण को इस दिशा में एक व्यापक दिशानिर्देश तैयार करने की दिशा में काम करना चाहिए कि संबंधित राज्य की नीतियों के अनुसार न्यूनतम सजा देने के बाद छूट की मांग कैसे की जानी चाहिए, क्या नशीले पदार्थों के मामले में कोई नीति होनी चाहिए, और यदि हां, तो कम सजा के मामलों में किस हद तक और कैसे कानूनी सहायता प्रदान की जा सकती है जब समस्या वर्षों बाद उत्पन्न होती हो।

    बेंच ने सीधे तौर पर जेलों से दर्ज मामलों (सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ भी इस मुद्दे की जांच कर रही है) में कानूनी सहायता देने में देरी के मुद्दे का भी संज्ञान लिया।

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