सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे स्वामी श्रद्धानंद की दया याचिका पर शीघ्र निर्णय की मांग वाली याचिका खारिज की
Praveen Mishra
5 Dec 2025 3:43 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने आज 87 वर्षीय स्वयंभू धर्मगुरु स्वामी श्रद्धानंद की दायर उस याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें उनकी दया याचिका पर जल्द निर्णय लेने का अनुरोध किया गया था। श्रद्धानंद अपनी पत्नी शाकेरह खलीली (मैसूर के दिवान सर मिर्ज़ा इस्माइल की पोती) की हत्या के मामले में पिछले 31 वर्षों से जेल में हैं।
जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की खंडपीठ ने अधिवक्ता वरुण ठाकुर की दलीलें सुनने के बाद मामले को वापस लेने पर खारिज कर दिया। सुनवाई के दौरान जस्टिस महेश्वरी ने आश्चर्य व्यक्त किया कि इस मामले में 6 बार स्थगन क्यों दिया गया और कहा कि यदि यह मामला उनकी पीठ के समक्ष पहले दिन आता, तो उसी दिन खारिज कर दिया जाता।
एडवोकेट ठाकुर ने कोर्ट से कहा कि श्रद्धानंद बेहद बीमार हैं और 31 वर्षों से बिना एक भी दिन की पैरोल जेल में हैं। हालांकि पीठ इस तर्क से सहमत नहीं हुई और कहा कि पूर्व में उनकी कई याचिकाएँ—जैसे रीव्यू, पैरोल की मांग, और अमेज़न प्राइम की डॉक्यू-सीरीज़ 'Dancing on the Grave' पर रोक लगाने की मांग—पहले ही खारिज हो चुकी हैं।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने केंद्र की ओर से बताया कि राज्य सरकार, जो अभियोजन प्राधिकारी है, को अपनी राय देनी होती है और वही अभी लंबित है। “जैसे ही राज्य जवाब देगा, हम आगे बढ़ेंगे,” ASG ने कहा।
खंडपीठ अनिच्छा देखते हुए, अधिवक्ता ठाकुर ने कहा कि श्रद्धानंद ने सिर्फ “एक घटना”—अपनी पत्नी की हत्या—के लिए 30 साल बिना पैरोल बिताए हैं, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में दोषी ठहराए गए लोग तक रिहा हो चुके हैं। अंततः उन्होंने याचिका वापस ले ली, लेकिन कोर्ट ने किसी भी प्रकार की अनुमति दिए बिना इसे वापस लेने पर खारिज कर दिया।
जस्टिस महेश्वरी ने टिप्पणी की, “हमें समझ नहीं आता कि इस मामले में 6 स्थगन क्यों दिए गए। पता नहीं यह यहां लंबित क्यों था। यदि यह हमारे सामने पहले आता, हम इसे पहले ही दिन खारिज कर देते।”
मामले की पृष्ठभूमि:
शाकेरह खलीली ने अपने 21 साल पुराने पहले विवाह को समाप्त करने के बाद वर्ष 1986 में श्रद्धानंद से शादी की थी। अप्रैल–मई 1994 के बीच वह अचानक गायब हो गईं। जून में उनकी पहली शादी से हुई बेटी ने बैंगलोर में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई।
तीन वर्ष बाद, 1994 में, पुलिस ने शाकेरह का शव उनके बैंगलोर स्थित घर में दफन पाया। जांच में सामने आया कि श्रद्धानंद ने उन्हें नशीला पदार्थ देकर जिंदा दफना दिया, ताकि उनकी ओर से जारी पावर ऑफ अटॉर्नी और वसीयत का लाभ उठा सके।
श्रद्धानंद को 1994 में गिरफ्तार किया गया। वर्ष 2000 में उन्हें कर्नाटक की एक अदालत ने फांसी की सजा सुनाई, जिसे 2005 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा।
बाद में जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, तो 2007 में स्प्लिट वर्डिक्ट आया और मामला बड़ी पीठ को भेजा गया। बड़ी पीठ ने 2008 में उनकी फांसी की सजा को बदलकर आजीवन कारावास (मृत्यु तक कारावास) में बदल दिया।

