BREAKING| सुप्रीम कोर्ट ने दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को प्रतिबंधित करने वाला मध्य प्रदेश सरकार का नियम खारिज किया
Shahadat
3 March 2025 5:24 AM

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी दिव्यांगता के कारण न्यायिक सेवा में भर्ती के लिए विचार से वंचित नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों को न्यायिक सेवा में भर्ती के लिए किसी भी तरह के भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए। राज्य को उन्हें समावेशी ढांचा प्रदान करने के लिए सकारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
"कोई भी अप्रत्यक्ष भेदभाव जिसके परिणामस्वरूप दिव्यांग व्यक्तियों को बाहर रखा जाता है, चाहे कटऑफ के माध्यम से या प्रक्रियात्मक बाधाओं के माध्यम से, मौलिक समानता को बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप किया जाना चाहिए।"
कोर्ट ने कहा,
"किसी भी उम्मीदवार को केवल उसकी दिव्यांगता के कारण विचार से वंचित नहीं किया जा सकता।"
दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के अनुसार उनकी पात्रता का आकलन करते समय उन्हें आवास प्रदान किया जाना चाहिए।
ऐसा मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमों के एक नियम को इस सीमा तक रद्द कर दिया कि यह दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा से वंचित करता है।
न्यायालय ने जोर देकर कहा कि दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले उम्मीदवार न्यायिक सेवा पदों के लिए चयन में भाग लेने के हकदार हैं।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने मध्य प्रदेश सेवा परीक्षा (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम 1994 के नियम 6ए के संबंध में स्वतः संज्ञान मामले में फैसला सुनाया। मामले में 3 दिसंबर, 2024 को आदेश सुरक्षित रखा गया था, जिसे संयोग से अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग व्यक्तियों के दिवस के रूप में मनाया जाता है।
जस्टिस महादेवन द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया,
"अधिकार-आधारित दृष्टिकोण के लिए यह आवश्यक है कि दिव्यांग व्यक्तियों को न्यायिक सेवा के अवसरों की तलाश में किसी भी भेदभाव का सामना न करना पड़े।"
केस टाइटल: न्यायिक सेवाओं में दृष्टिबाधित व्यक्तियों की भर्ती के संबंध में बनाम रजिस्ट्रार जनरल, हाईकोर्ट मध्य प्रदेश, एसएमडब्लू (सी) नंबर 2/2024