सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट महमूद प्राचा पर 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाए जाने पर रोक लगाई
Shahadat
26 Oct 2024 9:06 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई, जिसमें एडवोकेट महमूद प्राचा पर चुनावी प्रक्रिया के दौरान वीडियोग्राफी से संबंधित याचिका दायर करके "कोर्ट का समय बर्बाद करने" के लिए 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया था।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने आदेश पारित करते हुए चुनाव आयोग को सीमित उद्देश्य के लिए नोटिस जारी किया कि क्यों न प्राचा के खिलाफ हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों को हटाया जाए और जुर्माना लगाने वाले आदेश रद्द किया जाए।
मामले की अगली सुनवाई 09.12.2024 को होगी।
गौरतलब है कि सुनवाई के दौरान जस्टिस कांत ने प्राचा को बताया कि उन्हें बार-बार याचिकाएं दायर नहीं करनी चाहिए।
जज ने कहा,
"आपने बहुत अच्छी चिंता जताई थी, मुद्दा बहुत प्रासंगिक था। शायद दिल्ली हाईकोर्ट ने इसे प्रभावी ढंग से संबोधित किया था।"
प्राचा की ओर से पेश एडवोकेट तस्नीम अहमदी इस दृष्टिकोण से असहमत थे कि दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश ने सभी मुद्दों को संबोधित किया। अंततः, पीठ ने ECI को सीमित नोटिस जारी किया और जुर्माना लगाने की सीमा तक आदेश पर रोक लगाई।
संक्षेप में कहा जाए तो प्राचा ने चुनावी प्रक्रिया में वीडियोग्राफी की प्रामाणिकता, अखंडता, सुरक्षा और सत्यापन के संबंध में एक रिट याचिका दायर की थी।
हाईकोर्ट ने पाया कि उन्होंने पहले दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष समान विषय वस्तु (वर्ष 2024 के लिए उत्तर प्रदेश में 7-रामपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव) पर दो याचिकाएं दायर की थीं, जिनमें उनकी संतुष्टि के अनुसार आदेश पारित किए गए। इसके बावजूद, उन्होंने इसी तरह की राहत की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया।
कोट और बैंड पहनकर व्यक्तिगत रूप से मामले पर बहस करने के उनके आचरण के बारे में न्यायालय ने टिप्पणी की कि जब उसे बताया गया कि प्राचा व्यक्तिगत रूप से पेश हो रहे हैं तो वह 'हैरान' रह गया।
जाहिर है, हाईकोर्ट को सूचित किया गया कि प्राचा जुर्माना लगाने का प्रस्ताव करने वाले आदेश के बाद व्यक्तिगत रूप से पेश हो रहे थे। यह देखते हुए कि उन्होंने बहस करने से पहले अपना बैंड नहीं हटाया, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि प्राचा का व्यवहार बार के सीनियर सदस्य के लिए अनुचित था, जिसे व्यक्तिगत रूप से बेंच को संबोधित करते समय आवश्यक बुनियादी शिष्टाचार के बारे में पता होना चाहिए।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“बार के सीनियर सदस्य से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं की जाती है, जिसे व्यक्तिगत रूप से बेंच को संबोधित करते समय पालन किए जाने वाले बुनियादी शिष्टाचार के बारे में पता होना चाहिए। मिस्टर प्राचा को भविष्य में सतर्क रहने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि वे न्यायालय की मर्यादा और गरिमा बनाए रखें। ध्यान देने योग्य एक और पहलू यह है कि याचिकाकर्ता ने एक वकील (मिस्टर उमर जामिन) के माध्यम से यह रिट याचिका दायर की थी। ऐसा करने के बाद वह अपने वकील को हटाए बिना या न्यायालय से अनुमति लिए बिना व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं हो सकते।”
यह देखते हुए कि रिट याचिका गलत तरीके से दायर की गई। इससे न्यायालय का समय बर्बाद हुआ। साथ ही व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के दौरान उनके द्वारा अपनाई गई 'अनुचित कार्यप्रणाली' के कारण हाईकोर्ट ने प्राचा की रिट याचिका खारिज की और उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को 1 लाख रुपये का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया।
केस टाइटल: महमूद प्राचा बनाम भारत का चुनाव आयोग, एसएलपी (सी) नंबर 24577/2024