सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी और एडमिशन में 58% आरक्षण देने वाले छत्तीसगढ़ सरकार के कानूनी संसोधन को रद्द करने वाले हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई

Shahadat

2 May 2023 4:39 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी और एडमिशन में 58% आरक्षण देने वाले छत्तीसगढ़ सरकार के कानूनी संसोधन को रद्द करने वाले हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को बड़ी राहत देते हुए सोमवार को हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें राज्य सरकार द्वारा 58 प्रतिशत आरक्षण देने के कदम को 'असंवैधानिक' घोषित किया गया था।

    जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसुचित जातियों, जन जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम, 2011 को रद्द करने के छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

    इस 2011 अधिनियम द्वारा, 1994 में अधिनियमित मूल अधिनियम में संशोधन किया गया और सार्वजनिक सेवाओं और पदों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को राज्य सरकार द्वारा स्थापित, रखरखाव या सहायता प्राप्त कुछ शैक्षणिक संस्थानों के लिए (SC-12%; ST-32%; OBC-14%) 58 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया।

    खंडपीठ ने राज्य सरकार की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए 58 फीसदी आरक्षण की नीति को अंतरिम संरक्षण भी दिया। छत्तीसगढ़ राज्य का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी और सुमीर सोढ़ी, एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड और राज्य के सरकारी वकील ने किया।

    वकील ने खंडपीठ को सूचित किया कि हाईकोर्ट के फैसले ने भर्ती की चल रही प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया। उनकी दलीलों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार को उस नीति के आधार पर भर्तियों को आगे बढ़ाने की अनुमति दी जिसे हाईकोर्ट ने अंतरिम व्यवस्था के रूप में 'असंवैधानिक' करार दिया था।

    इतना ही नहीं खंडपीठ ने राज्य सरकार को अपने आदेशों में यह भी निर्दिष्ट करने का निर्देश दिया कि चल रही भर्ती प्रक्रिया का परिणाम 2011 के संशोधन की संवैधानिकता के संबंध में अदालत के अंतिम फैसले के अधीन होगा।

    खंडपीठ ने अपील के इस सेट को जुलाई में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

    मामले की पृष्ठभूमि

    स्कैनर के तहत छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का 2011 एक के संशोधन को रद्द करने का निर्णय है, जो राज्य में भर्ती और एडमिशन टेस्ट में एससी, एसटी और ओबीसी को 58 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करता है। यह फैसला पिछले साल हाईकोर्ट की उस खंडपीठ ने दिया था, जिसमें चीफ जस्टिस एके गोस्वामी और जस्टिस पीपी साहू शामिल थे।

    संशोधन के माध्यम से सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में एडमिशन में आरक्षित वर्गों के लिए कोटा बढ़ाकर 58 प्रतिशत कर दिया गया, जिसमें अनुसूचित जाति के लिए 12 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 32 प्रतिशत और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 14 प्रतिशत था। हालांकि, हाईकोर्ट ने माना कि 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा का उल्लंघन करने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं बनाई गई है।

    आरक्षण नीति रद्द करते हुए खंडपीठ ने कहा,

    “हमारी राय है कि आरक्षण को बढ़ाकर 58 प्रतिशत करने के लिए 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा को भंग करने के लिए कोई विशेष मामला नहीं बनता। राज्य के अधीन सेवाओं में प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता या शैक्षणिक संस्थानों में प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता आरक्षण को 50 प्रतिशत से नीचे रखने की मांग के लिए प्रासंगिक है, लेकिन यदि सीमा को पार करना है तो प्रतिनिधित्व में अपर्याप्तता एकमात्र निर्धारक कारक नहीं हो सकती है और असाधारण परिस्थितियां होनी चाहिए।

    हाईकोर्ट ने 2011 के संशोधन को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं के बैच को अनुमति दी और उक्त संशोधन को इस आधार पर रद्द कर दिया कि सरकार की नीति सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने ऐतिहासिक इंद्रा साहनी फैसले में निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा के विपरीत थी।

    अदालत ने फैसले में कहा,

    "[इंद्र साहनी नियम] का उल्लंघन केवल कुछ असाधारण स्थितियों और असाधारण मामलों में ही किया जा सकता है। यह भी देखा गया कि इस तरह की शक्ति का अत्यधिक सावधानी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए।"

    केस टाइटल- योगेश कुमार ठाकुर बनाम गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी व अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (सिविल) नंबर 18816-18817/2022 और अन्य जुड़ा मामला।

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