सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के ऑनलाइन कक्षाओं के लिए ईडब्ल्यूएस और डीजी छात्रों को गैजेट्स देने के लिए दिल्ली सरकार को स्कूलों को प्रतिपूर्ति करने के आदेश पर रोक लगाई

LiveLaw News Network

10 Feb 2021 8:09 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के ऑनलाइन कक्षाओं के लिए ईडब्ल्यूएस और डीजी छात्रों को गैजेट्स देने के लिए दिल्ली सरकार को स्कूलों को प्रतिपूर्ति करने के आदेश पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले पर रोक लगा दी जिसमें दिल्ली सरकार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) और अन्य वंचित समूहों (डीजी) के तहत छात्रों को पर्याप्त गैजेट और इंटरनेट पैकेज प्रदान करने के लिए स्कूलों को प्रतिपूर्ति करने का निर्देश दिया गया था ताकि उन्हें COVID-19 लॉकडाउन के प्रकाश में स्कूलों द्वारा आयोजित की जा रही वर्चुअल कक्षाओं के बराबर पहुंच में सक्षम बनाया जा सके।

    मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली सरकार की याचिका पर नोटिस भी जारी किया है।

    दरअसल विशेषाधिकार प्राप्त और वंचितों के बीच डिजिटल विभाजन को खत्म करने के सिद्धांत को लागू करते हुए, न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने स्कूलों को अनुमति दी थी कि वह छात्रों को यह सुविधा उपलब्ध कराने में आई लागत की भरपाई करने के लिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12 के तहत सरकार के समक्ष दावा कर सकते हैं।

    यह आदेश जस्टिस फॉर ऑल की ओर से दायर एक याचिका पर आया था, जिसमें स्कूलों द्वारा आयोजित ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने के लिए ईडब्ल्यूएस और डीजी श्रेणी के छात्रों के लिए लैपटॉप, इंटरनेट कनेक्शन और अन्य उपकरणों की मांग की गई थी।

    यह मानते हुए कि अदालत एक अद्यतन निर्माण को लागू कर सकती है या समाज की विकसित जरूरतों के अनुसार आरटीई अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या कर सकती है।

    अदालत ने कहा किः

    'निजी स्कूल जो समकालिक फेस-टू-फेस रियल टाइम ऑनलाइन शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, यही स्कूल ऐसे हैं जो आरटीई अधिनियम, 2009 की सभी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। इसलिए, ऑनलाइन माध्यम से शिक्षण आरटीई अधिनियम, 2009 की आवश्यकताओं के अनुसार होना चाहिए। वहीं आरटीई अधिनियम, 2009 की धारा 3 व अनुच्छेद 21 ए के तहत दी गई आवश्यकताएं भी ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा प्रदान किए जाने के संबंध में भी स्पष्ट रूप से पूरी होती हैं।'

    कोर्ट ने माना कि आरटीई अधिनियम की धारा 3 के तहत ईडब्ल्यूएस और डीजी श्रेणी के छात्रों के अधिकारों को स्कूलों द्वारा कमजोर किया जा रहा है।

    इसलिए कोर्ट ने कहा कि,

    'ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा कुछ नहीं है, बस एक वर्चुअल क्लासरूम है, जो एक फिजिकल क्लासरूम की तरह ही है। इसके जरिए पढ़ाई फिजिकली तौर पर न करवाकर वर्चुअली तौर पर करवाई जाती है। ऐसे में ईडब्ल्यूएस/ डीजी श्रेणी के छात्रों (जो, अन्यथा,जो अपने स्वंय के साधनों से इस तरह के उपकरण खरीदने या प्राप्त करने की स्थिति में नहीं हैं) को आवश्यक अपरिहार्य उपकरण प्रदान न करके स्कूल ऐसे छात्रों की पढ़ाई में एक वित्तीय बाधा डाल रहे हैं। जिस कारण यह छात्र वर्तमान महामारी की स्थिति में कक्षा के अन्य सहपाठियों की तरफ अपनी प्रारंभिक शिक्षा को आगे बढ़ाने और पूरा करने में समक्ष नहीं हो पा रहे हैं।'

    इस भेदभाव को दूर करने के लिए, अदालत ने निर्देश दिया कि आरटीई अधिनियम, 2009 की धारा 12 (1) (सी) के तहत गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूल और धारा 3 (2) के तहत सरकारी स्कूल जैसे केंद्रीय विद्यालयों को निर्देश दिया जाता है कि वह ईडब्ल्यूएस/डीजी छात्रों को ऑनलाइन सीखने में सक्षम बनाने के लिए पर्याप्त उपकरण उपलब्ध कराएं।

    अदालत ने कहा कि,

    'इस डिजिटल डिवाइड या डिजिटल गैप या डिजिटल अपार्टहेड' को खत्म करने में या इससे निपटने में, यदि निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को कोई अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ता है, तो स्कूल इसके लिए आरटीई अधिनियम, 2009 की धारा 12 (2) के तहत राज्य से प्रतिपूर्ति या अदायगी का दावा कर सकते हैं।

    इसके अतिरिक्त, अदालत ने एक कमेटी का भी गठन किया जिसमें केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय के शिक्षा सचिव या उनके द्वारा नामित कोई अधिकारी,जीएनसीटीडी के शिक्षा सचिव को शामिल किया जाएगा। यह कमेटी मानक गैजेट/ उपकरणों के साथ-साथ इन उपकरणों के निर्माता/आपूर्तिकर्ता व इंटरेट पैकेज आदि तय करने के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं बनाने का काम करेगी,ताकि ईडब्ल्यूएस/ डीजी छात्र ऑनलाइन माध्यम से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर सकें। इसके अलावा कमेटी यह भी तय करेगी कि कौन से गैजेट/ उपकरण लिए जाएं, जिसमें उनकी उपयोगिता, संचालन में आसानी, लागत, रखरखाव, शुल्क, गैजेट का जीवन, निर्माता की प्रतिष्ठा, चाइल्ड लॉक आदि सहित सभी प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखा जाएगा। कमेटी को अपने गठन के दो सप्ताह के भीतर यह सारा काम करना होगा। उक्त समिति यह भी तय करेगी कि क्या इन गैजेट/उपकरण को क्लस्टर बोली या स्कूलों द्वारा स्वयं खरीदा जाना चाहिए या फिर इनको पट्टे या लाइसेंस समझौते के माध्यम से किराए पर लेना चाहिए।

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