सुप्रीम कोर्ट ने हावड़ा कोर्ट हिंसा मामले में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हाईकोर्ट की स्वतःसंज्ञान अवमानना ​​कार्यवाही पर लगाई रोक

Shahadat

17 Jun 2025 10:08 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने हावड़ा कोर्ट हिंसा मामले में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हाईकोर्ट की स्वतःसंज्ञान अवमानना ​​कार्यवाही पर लगाई रोक

    सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें 2019 हावड़ा जिला कोर्ट में वकीलों पर हमले में कथित रूप से शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ स्वतःसंज्ञान से आपराधिक अवमानना ​​कार्यवाही शुरू की गई थी।

    जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस मनमोहन की बेंच हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। बेंच ने मामले पर विचार करने पर सहमति जताई और याचिका में नोटिस जारी किया।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट चंदर उदय सिंह ने कहा कि बेंच के समक्ष मुख्य मुद्दा यह है कि क्या हाईकोर्ट 5 साल की देरी के बाद कोर्ट की अवमानना ​​अधिनियम 1971 की धारा 15 के तहत स्वप्रेरणा से अवमानना ​​कार्रवाई शुरू कर सकता है।

    गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल राज्य ने भी संबंधित एसएलपी में इस आदेश को चुनौती दी है।

    खंडपीठ ने निम्नलिखित आदेश पारित किया:

    "नोटिस जारी करें, जिसका 6 सप्ताह में जवाब दिया जाए। इस बीच 2 मई, 2025 के आदेश के अनुसार आगे की कार्यवाही स्थगित रहेगी।"

    हाईकोर्ट ने 2 मई को अवमानना ​​नोटिस जारी किया था। वकील ने जोर देकर कहा कि यह 2016 में महेश्वर पेरी बनाम इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है।

    महेश्वर पेरी में कोर्ट ने माना था कि न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम की धारा 20 में प्रदान की गई एक वर्ष की परिसीमा अवधि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट द्वारा अवमानना ​​कार्यवाही की स्वतःसंज्ञान से शुरुआत करने पर भी लागू होती है।

    गुप्ता ने कहा कि वर्तमान मामले में हाईकोर्ट ने अप्रैल, 2019 में 24 अप्रैल, 2019 को हावड़ा जिला सदर कोर्ट परिसर में हुई अप्रिय घटनाओं का स्वतःसंज्ञान से संज्ञान लिया था, जब पुलिस कर्मियों ने कथित तौर पर कोर्ट परिसर में प्रवेश किया और वकीलों पर हमला किया था।

    बाद में मई, 2019 में हाईकोर्ट ने पूर्व हाईकोर्ट जज जस्टिस के जे सेनगुप्ता को घटना की जांच के लिए एक सदस्यीय आयोग नियुक्त किया।

    वकील ने प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट ने अब आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 5 साल बाद मामले को फिर से उठाया और आदेश में कहा कि पिछली कार्यवाही अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका के रूप में की गई थी।

    अब मामले की सुनवाई 6 सप्ताह बाद होगी।

    हाईकोर्ट ने न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम के तहत परिसीमा के मुद्दे पर क्या कहा?

    हाईकोर्ट ने कहा कि अधिनियम 1971 की धारा 20 के तहत 1 वर्ष की रोक वर्तमान मामले में लागू नहीं होगी, क्योंकि यहां न्यायालय स्वतःसंज्ञान से कार्यवाही शुरू कर रहा है। उक्त रोक केवल तभी लागू होती है, जब किसी व्यक्ति द्वारा न्यायालय के समक्ष अवमानना ​​का मुद्दा उठाने के बाद कार्यवाही शुरू की जाती है।

    प्रासंगिक भाग में लिखा है:

    "हमारे अनुसार अधिनियम 1971 की धारा 20 के अनुसार सीमा-बाधा न्यायालय के संज्ञान में अवमानना ​​के कृत्य को लाने वाले व्यक्ति द्वारा शुरू की गई कार्यवाही के संबंध में है। ऐसी सीमा-बाधा का पूरा उद्देश्य अवमानना ​​का आरोप लगाने वाले व्यक्ति को सतर्क रखना और बिना किसी अनावश्यक देरी के न्यायालय का दरवाजा खटखटाना है। यद्यपि धारा 20 में निर्धारित सीमा-बाधा एक विशेष क़ानून में निहित है, लेकिन अनुच्छेद 215 के तहत न्यायालय द्वारा किसी अप्रिय घटना को संज्ञान में लेते हुए स्वतःसंज्ञान से रिट याचिका शुरू करने के मामले में प्राप्त शक्तियों को अनुच्छेद 215 के तहत न्यायालय को उपलब्ध अंतर्निहित शक्तियों के मद्देनजर निरस्त या निष्प्रभावी नहीं किया जा सकता।"

    Case Details : VISHAL GARG AND ORS. Versus REGISTRAR GENERAL AND ORS.| SLP(C) No. 16422/2025 and connected matter

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