सुप्रीम कोर्ट ने 'आपत्तिजनक' पोस्ट को लेकर दर्ज FIR में समाजवादी पार्टी के ट्रेड विंग प्रमुख की गिरफ्तारी पर रोक लगाई
Shahadat
1 March 2025 5:22 AM

सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी (SP) के ट्रेड विंग प्रमुख मनीष जगन अग्रवाल की गिरफ्तारी पर 2 सप्ताह के लिए रोक लगाई। अग्रवाल पर उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने कुछ "आपत्तिजनक" सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर मामला दर्ज किया।
कोर्ट ने आदेश दिया,
"अगर याचिकाकर्ता पहले से ही जमानत पर है तो उसकी गिरफ्तारी पर 2 सप्ताह के लिए रोक रहेगी, ताकि वह इस बीच हाईकोर्ट जा सके।"
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे (अग्रवाल की ओर से) की सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया। दवे ने दलील दी कि याचिकाकर्ता 3 FIR रद्द करने/एक साथ जोड़ने की मांग कर रहा है - जिनमें से दो में उसे जमानत मिल चुकी है और तीसरी में उसे गिरफ्तार नहीं किया गया।
जस्टिस कांत ने दवे से पूछा,
"हाईकोर्ट जाइये, आप सुप्रीम कोर्ट क्यों आ रहे हो? तीनों FIR सिर्फ यूपी में हैं। आप हाईकोर्ट क्यों नहीं जा सकते?"
जवाब में सीनियर वकील ने माना कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है, लेकिन इस बीच उसे अंतरिम संरक्षण दिया जा सकता है। तदनुसार, न्यायालय ने आदेश में दर्ज किया कि यदि अग्रवाल जमानत पर हैं तो उनकी गिरफ्तारी (किसी अन्य समान मामले में) 2 सप्ताह तक स्थगित रहेगी, जिससे वे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकें।
संक्षेप में मामला
सपा के व्यापार विंग के प्रमुख अग्रवाल ने कथित तौर पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित कुछ "आपत्तिजनक" सोशल मीडिया पोस्ट किए। इसके बाद उन्हें लखनऊ पुलिस ने "सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट के माध्यम से समाज में लगातार नकारात्मकता, अशांति और हिंसा पैदा करने की प्रबल संभावना को रोकने के लिए" गिरफ्तार किया।
जाहिर है, उनके खिलाफ यूपी में 3 FIR दर्ज की गईं - (i) BNS की धारा 353 (3), 196 (1) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67, (ii) BNS की धारा 353 (2) के तहत और (iii) BNS की धारा 353 (3) और 356 (2) के तहत।
इनमें से दो में उन्हें जमानत पर बाहर बताया गया। इन अनेक "तुच्छ" FIR का हवाला देते हुए अग्रवाल ने लखनऊ पुलिस द्वारा BNSS की धारा 126, 135 और 170 के तहत दर्ज मामले में अपनी "अवैध गिरफ्तारी और हिरासत" के संबंध में तत्काल निर्देश मांगने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने दावा किया कि FIR ने संविधान के अनुच्छेद 21 और 22(1) के तहत उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वतंत्रता को बाधित किया।
अग्रवाल को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान करते हुए, जिससे वे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकें, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) उनकी प्रस्तावित याचिका को दाखिल करने के 3 दिनों के भीतर सूचीबद्ध करें।
जस्टिस कांत ने कहा,
"याचिकाकर्ता निम्नलिखित 3 FIR रद्द करने/एक साथ जोड़ने की मांग कर रहा है। सभी FIR उत्तर प्रदेश राज्य में दर्ज की गईं। हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता समान राहत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। इसमें शामिल तात्कालिकता को ध्यान में रखते हुए हम हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर की जाने वाली याचिका को दायर करने के 3 दिनों के भीतर सूचीबद्ध किया जाए।"
केस टाइटल: मनीष जगन अग्रवाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, डब्ल्यू.पी.(सीआरएल.) नंबर 99/2025