'हाईकोर्ट को ऐसे आदेश पारित करने से बचना चाहिए जिन्हें लागू करना मुश्किल हो' : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई

LiveLaw News Network

22 May 2021 5:48 AM GMT

  • हाईकोर्ट को ऐसे आदेश पारित करने से बचना चाहिए जिन्हें लागू करना मुश्किल हो : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 17 मई को उत्तर प्रदेश राज्य में चिकित्सा सुविधाओं को युद्ध स्तर पर विकसित करने के लिए जारी निर्देशों पर रोक लगा दी।

    जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस बीआर गवई की अवकाश पीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा दी गई दलीलों को सुनने के बाद आदेश पर रोक लगा दी।

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कोविड मुद्दों से निपटने के लिए एक स्वत: संज्ञान मामले पर विचार करते हुए 17 मई को सभी गांवों में आईसीयू सुविधाओं के साथ एम्बुलेंस उपलब्ध कराने, सभी नर्सिंग होम में ऑक्सीजन बेड उपलब्ध कराने और राज्य में मेडिकल कॉलेज अस्पतालों आदि को तत्काल आधार पर समयबद्ध तरीके से COVID दूसरी लहर को देखते हुए अपग्रेड करने के संबंध में कई निर्देश पारित किए थे।

    सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट के निर्देश भले ही अर्थपूर्ण हों, लेकिन उन्हें लागू करना मुश्किल है।

    एसजी ने बताया कि उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि राज्य के हर गांव को एक महीने के भीतर आईसीयू सुविधाओं के साथ 2 एम्बुलेंस उपलब्ध कराई जानी चाहिए। एसजी ने कहा, यह निर्देश एक महीने के भीतर लागू करना मुश्किल है, क्योंकि यूपी राज्य में लगभग 97,000 गांव हैं।

    इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि सभी नर्सिंग होम में ऑक्सीजन बेड की सुविधा होनी चाहिए और यह कि निर्दिष्ट संख्या से ऊपर के बेड वाले नर्सिंग होम में ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र और कुछ प्रतिशत वेंटिलेटर होने चाहिए। इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि राज्यों के मेडिकल कॉलेज अस्पतालों को चार महीने की अवधि के भीतर संजय गांधी स्नातकोत्तर संस्थान के स्तर पर अपग्रेड किया जाना चाहिए।

    साथ ही, उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के कस्बों और गांवों में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली जैसे "राम भरोसे" जैसी टिप्पणियां कीं। सॉलिसिटर जनरल के अनुसार, ऐसी टिप्पणियों का राज्य में स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों पर मनोबल गिराने वाला प्रभाव होगा।

    एसजी ने शीर्ष अदालत को यह भी बताया कि उच्च न्यायालय ने वैक्सीन उत्पादन से संबंधित कई टिप्पणियां की थीं और सुझाव दिया था कि सरकार को कंपनियों से वैक्सीन निर्माण फॉर्मूला लेना चाहिए ताकि अधिक कंपनियां इसका उत्पादन कर सकें।

    एसजी ने प्रस्तुत किया कि उच्च न्यायालयों को नीतिगत मामलों में निर्देश पारित करने से बचना चाहिए, खासकर जब उनके अंतरराज्यीय और यहां तक ​​​​कि अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव हो सकते हैं।

    उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पीठ ने "क्वारंटीन सेंटरों पर अमानवीय स्थिति और कोरोना पॉजिटिव को बेहतर उपचार प्रदान करने के लिए" स्वत: संज्ञान मामले में निर्देश पारित किया था।

    उच्च न्यायालयों को ऐसे आदेश पारित करने से बचना चाहिए जिनको लागू ना किया जा सके

    सॉलिसिटर जनरल के सबमिशन को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

    "शुरुआत में, हम COVID के प्रबंधन के लिए मामले को उठाने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के साथ-साथ विभिन्न अन्य उच्च न्यायालयों के प्रयासों की सराहना कर सकते हैं। हालांकि, ऐसे मामलों और चिंताओं से निपटने के दौरान न्यायालयों को मरीजों के लिए और आम जनता और पीड़ित लोगों को अत्यधिक राहत देने के लिए चिंता हो सकती है, कभी-कभी, अनजाने में अदालतें आगे बढ़ जाती हैं और कुछ आदेश पारित कर देती हैं जो लागू होने में सक्षम नहीं हैं।"

    शीर्ष अदालत ने कहा कि निर्देश पारित करते समय अदालत को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या उन्हें लागू किया जा सकता है।

    बेंच ने कहा,

    "आदेश पारित करते समय मामले को गहराई से देखने के लिए हाईकोर्ट के प्रयास को स्वीकार करते हुए, हम कहते हैं कि न्यायालय को आदेश पारित करने से बचना चाहिए यदि उन्हें लागू करना असंभव है। असंभवता का सिद्धांत न्यायालयों पर समान रूप से लागू होता है।"

    सुप्रीम कोर्ट ने आगाह किया,

    "राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव से संबंधित मामलों में, उच्च न्यायालयों को आदेश पारित करने से बचना चाहिए।"

    हाईकोर्ट के निर्देशों पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपी राज्य को इन्हें सलाहकारी दिशानिर्देशों के तौर पर लेना चाहिए और इन्हें लागू करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए।

    पीठ ने आदेश में कहा,

    "टिप्पणियां और निर्देश अच्छे अर्थ में हो सकते हैं और आम जनता के लिए चिंता में पारित हो सकते हैं। लेकिन राज्य सरकार द्वारा निर्देशों को अदालत की टिप्पणियों और सलाह के रूप में माना जाना चाहिए, न कि निर्देश या अदालत द्वारा पारित आदेश। हमें उम्मीद है और विश्वास है कि राज्य इसका पालन करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा।"

    सॉलिसिटर जनरल ने इस निर्देश के लिए भी अनुरोध किया कि एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए संबंधित उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठों द्वारा ही COVID से संबंधित मामलों को निपटाया जाए।

    हालांकि, शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए इस याचिका पर विचार करने से परहेज किया कि पीठ का गठन उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का विशेषाधिकार है।

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