सुप्रीम कोर्ट ने असम के गोलाघाट में बेदखली अभियान पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया

Avanish Pathak

23 Aug 2025 2:02 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने असम के गोलाघाट में बेदखली अभियान पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने कल असम के गोलाघाट जिले के उरियमघाट और आसपास के गांवों में शुरू की गई बेदखली और तोड़फोड़ की कार्रवाई के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।

    जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें याचिकाकर्ताओं की रिट अपीलों को खारिज कर दिया गया था और प्रतिवादी-प्राधिकारियों द्वारा शुरू की गई बेदखली की कार्रवाई को बरकरार रखा गया था।

    संक्षेप में, याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट द्वारा "लंबे समय से बसे निवासियों" को जबरन बेदखली से बचाने से इनकार करने से व्यथित होकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, जिनमें से कई सात दशकों से भी अधिक समय से निर्बाध रूप से कब्ज़े में हैं। दावा किया गया है कि बेदखली की कार्रवाई असम वन विनियमन, 1891 और वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत निर्धारित उचित प्रक्रिया, पुनर्वास या निपटान जांच के बिना की गई है।

    जुलाई 2025 में, प्रतिवादी-प्राधिकारियों ने असम वन विनियमन, 1891 (संशोधित) के तहत याचिकाकर्ताओं को बेदखली नोटिस जारी किए थे, जिसमें कहा गया था कि उनके गांव दोयांग और दक्षिण नम्बर आरक्षित वनों के अंतर्गत आते हैं। इन नोटिसों में स्पष्ट रूप से खाली करने के लिए 7 दिनों का समय दिया गया था। इससे व्यथित होकर, याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, न्यायालय की एकल पीठ ने अधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया और याचिकाकर्ताओं को अतिक्रमणकारी माना।

    अन्य बातों के अलावा, याचिकाकर्ताओं का दावा है कि वे संबंधित गांवों में लंबे समय से बसे हुए हैं और उन्हें बिजली कनेक्शन, राशन कार्ड, मतदाता सूची में नामांकन आदि के मामले में राज्य से मान्यता प्राप्त है। उनका तर्क है कि अधिकारियों की कार्रवाई भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवज़ा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 और असम नियम, 2015 के वैधानिक प्रावधानों की अनदेखी करती है।

    यह भी दावा किया गया है कि अधिकारियों की कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 25 और 300-ए के तहत याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों का हनन करती है।

    इसके समर्थन में, याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट के 'इन रे: डायरेक्शन्स इन द मैटर ऑफ डिमोलिशन ऑफ स्ट्रक्चर्स' में दिए गए निर्देशों का हवाला देते हैं, जिसमें पूर्व सूचना, सुनवाई का अवसर और उचित पुनर्वास अनिवार्य किया गया है।

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