हाईकोर्ट जज द्वारा एफआईआर को क्लब करने के लिए सिविल रिट याचिका पर विचार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सावधानी बरतने की चेतावनी दी, वादी पर 50 हजार का जुर्माना लगाया

Shahadat

23 Oct 2023 10:24 AM IST

  • हाईकोर्ट जज द्वारा एफआईआर को क्लब करने के लिए सिविल रिट याचिका पर विचार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सावधानी बरतने की चेतावनी दी, वादी पर 50 हजार का जुर्माना लगाया

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राजस्थान हाईकोर्ट के समक्ष कानूनी प्रक्रियाओं के दुरुपयोग का चौंकाने वाला मामला उजागर किया, जहां एफआईआर रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अंतरिम राहत से इनकार करने के बाद आरोपी (यहां प्रतिवादियों) ने सभी एफआईआर के समेकन के लिए सिविल रिट याचिका दायर की। साथ ही वह किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा पाने में कामयाब रहा।

    इस कदम का उद्देश्य कथित तौर पर रोस्टर जज को चकमा देना था, जिन्होंने उन्हें आपराधिक क्षेत्राधिकार के तहत राहत देने से इनकार कर दिया था।

    न्यायालय ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया का यह दुरुपयोग न केवल रोस्टर प्रणाली को कमजोर करता है, बल्कि स्थापित न्यायिक प्रक्रियाओं के पालन के महत्व का भी अनादर करता है।

    कोर्ट ने कहा,

    “यह कानून की प्रक्रिया के घोर दुरुपयोग का मामला है। हमें आश्चर्य है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) को एक साथ जोड़ने के लिए सिविल रिट याचिका पर कैसे विचार किया जा सकता है। चीफ जस्टिस द्वारा अधिसूचित रोस्टर में आपराधिक रिट याचिकाओं के लिए अलग रोस्टर है। यदि अदालतें इस तरह की कठोर प्रथाओं की अनुमति देती हैं तो चीफ जस्टिस द्वारा अधिसूचित रोस्टर का कोई मतलब नहीं रहेगा। न्यायाधीशों को अनुशासन का पालन करना होगा और किसी भी मामले को तब तक नहीं लेना चाहिए जब तक कि यह चीफ जस्टिस द्वारा विशेष रूप से नहीं सौंपा गया हो... चीफ जस्टिस द्वारा विशेष रूप से नहीं सौंपे गए मामले को लेना घोर अनुचितता का कार्य है। हालांकि एक सिविल रिट याचिका दायर की गई थी, न्यायाधीश को इसे एक आपराधिक रिट याचिका में परिवर्तित करना चाहिए, जिसे केवल आपराधिक रिट याचिकाएं लेने वाले रोस्टर न्यायाधीश के समक्ष रखा जा सकता है।

    जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उत्तरदाताओं को किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा दी गई।

    विवाद तब शुरू हुआ जब अपीलकर्ता के आदेश पर प्रतिवादियों के खिलाफ छह एफआईआर दर्ज की गईं, साथ ही अन्य शिकायकर्ता द्वारा दो अन्य एफआईआर भी दर्ज की गईं। इसके बाद उत्तरदाताओं ने राजस्थान हाईकोर्ट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आपराधिक विविध याचिका दायर की। इस याचिका में एफआईआर रद्द करने की मांग की गई। हालांकि, इन याचिकाओं पर एकल न्यायाधीश ने सुनवाई की, जिन्होंने अंतरिम राहत नहीं दी।

    इसके बाद 5 मई, 2023 को उन्होंने सिविल रिट याचिका दायर की, जिसमें सभी आठ एफआईआर को एक ही मामले में समेकित करने का अनुरोध किया गया, जिसे अनुमति दे दी गई। हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सभी आठ प्राथमिकियों के संबंध में उत्तरदाताओं के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।

    अपीलकर्ता ने आरोप लगाया कि उत्तरदाताओं ने अपने लाभ के लिए राजस्थान हाईकोर्ट की प्रचलित रोस्टर प्रणाली का शोषण किया। उन्होंने दावा किया कि सिविल रिट याचिका रोस्टर जज से बचने के एकमात्र उद्देश्य से दायर की गई, जिन्होंने उन्हें अंतरिम राहत नहीं दी। यह बताया गया कि उन्होंने सिविल रिट याचिका में अंतरिम राहत की भी मांग की, जिससे उन्हें सभी आठ एफआईआर के संबंध में दंडात्मक कार्रवाई से बचाया जा सके, जबकि शिकायतकर्ता सिविल रिट याचिकाओं में शामिल भी नहीं है।

    न्यायालय ने कहा,

    "यह फ़ोरम शॉपिंग का उत्कृष्ट मामला है।"

    न्यायालय ने 50,000 का जुर्माना लगाया और यह स्पष्ट कर दिया कि इस तरह के आचरण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। साथ ही सभी पक्षकारों को अदालत के प्रक्रियात्मक नियमों और दिशानिर्देशों का सम्मान करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

    इसलिए अदालत ने आदेश दिया,

    "तदनुसार, हम एसबी सिविल रिट याचिका नंबर 6277/2023 खारिज करते हैं। विवादित आदेश कायम नहीं रहता है।"

    दूसरे से चौथे उत्तरदाताओं के आचरण को संबंधित न्यायालय के ध्यान में लाया जाएगा, जो दूसरे से चौथे उत्तरदाताओं द्वारा दायर सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।

    केस टाइटल: अंबालाल परिहार बनाम राजस्थान राज्य

    फैसले को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Next Story