आपकी हिम्मत कैसे हुई यह याचिका दायर करने की? सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के दोषी को आत्मसमर्पण के लिए समय बढ़ाने की दूसरी याचिका पर लगाई फटकार
Shahadat
5 Jun 2025 10:02 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने एक 'जटिल' मामले पर कड़ा रुख अपनाया, जिसमें याचिकाकर्ता ने जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने के लिए समय बढ़ाने की मांग की, जबकि कोर्ट ने पहले भी इसी मुद्दे पर आदेश दिया था।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ हत्या के एक मामले में आत्मसमर्पण करने के लिए 3 सप्ताह का समय बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट ऋषि मल्होत्रा ने बताया कि वर्तमान आवेदन इस बात को ध्यान में रखते हुए दायर किया गया कि दिल्ली हाईकोर्ट 10 जुलाई को याचिकाकर्ता की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर फैसला करने वाला है।
हालांकि, जस्टिस अमानुल्लाह ने इस तथ्य पर कड़ा रुख अपनाया कि जस्टिस एएस ओक की अध्यक्षता वाली अन्य खंडपीठ ने पहले ही आत्मसमर्पण करने के लिए 3 सप्ताह का समय दे दिया था।
जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा,
"आपने इसे दायर करने की हिम्मत कैसे की? जस्टिस ओक (रिटायर) की अध्यक्षता वाली समन्वय पीठ और आपके पास छुट्टियों के दौरान इसे दायर करने की हिम्मत है?"
सुप्रीम कोर्ट की समन्वय पीठ ने 14 मई को ही एसएलपी को इन टिप्पणियों के साथ खारिज कर दिया था:
"हमें हाईकोर्ट की ओर से कोई त्रुटि नहीं मिली जब फर्लो जारी रखने की प्रार्थना खारिज कर दी गई। हालांकि, हम याचिकाकर्ता को आत्मसमर्पण करने के लिए आज से तीन सप्ताह का समय देते हैं।"
उपरोक्त पर विचार करते हुए वर्तमान खंडपीठ ने कहा,
"उसी राहत के लिए वर्तमान मामला दायर करना पूरी तरह से अनुचित है और इससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है।"
विस्तार के लिए आवेदन खारिज करते हुए न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता आज ही आत्मसमर्पण कर दे।
मामले को कल सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया, जहां न्यायालय "इस बात पर विचार करेगा कि वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में क्या अन्य आदेश पारित करने की आवश्यकता है।"
न्यायालय ने संबंधित एओआर की याचिका को वापस लेने की याचिका को भी खारिज कर दिया।
अब इस मामले की सुनवाई 5 जून को होगी।
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में समय से पहले रिहाई की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। उसने 14 साल की वास्तविक सजा और 16 साल की छूट सहित सजा काटी थी।
हाईकोर्ट ने उसकी याचिका पर नोटिस जारी किया, लेकिन 20 मई तक आत्मसमर्पण पर रोक लगाने का आवेदन खारिज कर दिया। जेल अधिकारियों ने उसे 28 अप्रैल को छुट्टी दे दी थी।
आत्मसमर्पण की याचिका खारिज किए जाने को फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और जस्टिस ओक की अगुवाई वाली पीठ ने हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा। आत्मसमर्पण के लिए 3 सप्ताह का समय दिए जाने के बावजूद याचिकाकर्ता ने आत्मसमर्पण के लिए समय बढ़ाने के लिए फिर से वर्तमान आवेदन दायर किया।
Case Details : VINOD @ GANJA v. STATE (GOVT OF NCT OF DELHI) | Miscellaneous Application No.1051/2025 in SLP(Crl) No.7285/2025

