'नैतिक पुलिसिंग न्यायालय का काम नहीं': सुप्रीम कोर्ट ने जैन पुजारी के खिलाफ ट्वीट के लिए जुर्माना लगाने का आदेश खारिज किया

Shahadat

8 April 2025 7:44 AM

  • नैतिक पुलिसिंग न्यायालय का काम नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने जैन पुजारी के खिलाफ ट्वीट के लिए जुर्माना लगाने का आदेश खारिज किया

    सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का आदेश खारिज किया, जिसमें संगीतकार विशाल ददलानी और कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला पर ट्विटर पर जैन संत तरुण सागर का कथित रूप से अपमान करने के लिए 10-10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया। हालांकि, उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज कर दिया गया।

    जस्टिस अभय ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को ददलानी और पूनावाला पर जुर्माना नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने माना था कि उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उनके मौलिक अधिकार को बरकरार रखा गया।

    न्यायालय ने कहा,

    "आक्षेपित निर्णय के अवलोकन से पता चलता है कि हाईकोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिभाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपीलकर्ता के मौलिक अधिकार को बरकरार रखा है। यह मानने के बाद कि अपीलकर्ता के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है, अपीलकर्ता और अन्य याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाने का कोई सवाल ही नहीं उठता।"

    न्यायालय ने कहा कि नैतिक पुलिसिंग करना न्यायालयों का काम नहीं है। पुजारी द्वारा किए गए योगदान की तुलना डडलानी और पूनावाला के योगदान से करने वाली हाईकोर्ट की टिप्पणी को अस्वीकार कर दिया।

    न्यायालय ने कहा,

    "हमारा विचार है कि CrPC की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते समय यह पता लगाने के बाद कि कोई अपराध नहीं बनता है, हाईकोर्ट को अपीलकर्ता को यह बताकर सलाहकार अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए कि पुजारी द्वारा किया गया योगदान अपीलकर्ता और अन्य आरोपियों द्वारा किए गए योगदान से कहीं अधिक है। न्यायालय का काम नैतिक पुलिसिंग करना नहीं है।"

    न्यायालय ने टिप्पणी की कि हाईकोर्ट को "घटना के बाद होने वाली लागत" के सुस्थापित नियम का पालन करना चाहिए और प्रतिवादी-शिकायतकर्ता पर लागत लगानी चाहिए।

    न्यायालय ने कहा,

    "शायद हाईकोर्ट इस तथ्य से प्रभावित था कि अपीलकर्ता और अन्य अभियुक्तों ने एक विशेष धर्म से संबंधित पुजारी की आलोचना की थी।"

    घटना के बाद होने वाली लागत के नियम का अर्थ है कि मुकदमे में असफल पक्ष को सामान्यतः लागत का भुगतान करना चाहिए।

    पृष्ठभूमि

    यह मामला संगीतकार विशाल ददलानी के ट्वीट से उत्पन्न हुआ, जिसमें तरुण सागर की नग्न उपस्थिति और हरियाणा सरकार द्वारा उन्हें विधानसभा में बुलाने की कार्रवाई की आलोचना की गई। राजनीतिक टिप्पणीकार तहसीन पूनावाला ने जैन संत के साथ एक अर्ध-नग्न महिला की फोटोशॉप की हुई छवि पोस्ट की और सामाजिक मानदंडों के बारे में सवाल उठाया।

    हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज FIR को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि शिकायत से आईपीसी की धारा 153ए, 295ए, 509 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ई के तहत कोई अपराध नहीं बनता। हालांकि, न्यायालय ने पाया कि दोनों ने जैन मुनि तरुण सागर का अपमान किया और जैन धर्म के अनुयायियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई।

    न्यायालय ने यह जुर्माना इसलिए लगाया, जिससे भविष्य में वे सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए किसी धार्मिक संप्रदाय के प्रमुख का मजाक न उड़ा सकें।

    हाईकोर्ट ने ददलानी और पूनावाला के योगदान की तुलना जैन मुनि के योगदान से करते हुए कहा,

    "यदि याचिकाकर्ताओं द्वारा गरीब लोगों के लिए किए गए योगदान की तुलना जैन मुनि तरुण सागर द्वारा किए गए योगदान से की जाए तो यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं ने बिना किसी खास श्रेय के प्रचार पाने के लिए शरारत की है।"

    इसने आगे टिप्पणी की कि हालांकि सोशल मीडिया पोस्ट के कारण पहले भी हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए, लेकिन जैन मुनि द्वारा अहिंसा और क्षमा की शिक्षाओं ने ऐसे विरोध प्रदर्शनों को रोका है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता ने जैन धर्म का अनुयायी होने का उल्लेख नहीं किया। इसके अलावा, विशाल ददलानी ने जैन मुनि तरुण सागर से माफ़ी मांगी, जिन्होंने उसे माफ़ कर दिया और जैन धर्म के किसी भी अनुयायी ने उन पर मुकदमा चलाने का विकल्प नहीं चुना।

    इन निष्कर्षों के बावजूद, हाईकोर्ट ने जुर्माना लगाया और FIR रद्द करने की शर्त के रूप में ददलानी और पूनावाला को धर्मार्थ ट्रस्टों और निधियों के साथ निर्दिष्ट राशि जमा करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल- तहसीन पूनावाला बनाम हरियाणा राज्य और अन्य।

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