सुप्रीम कोर्ट ने 'तलाक-ए-हसन' के ज़रिए इस्लामी तलाक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मांगा जवाब

Shahadat

12 Aug 2025 10:38 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन के ज़रिए इस्लामी तलाक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मांगा जवाब

    'तलाक-ए-हसन' की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को याचिकाकर्ताओं की सुनवाई योग्यता और/या उनके अधिकार क्षेत्र के आधार पर किसी भी विरोध पर विचार करने में अनिच्छा व्यक्त की।

    बता दें, तलाक-ए-हसन मुस्लिम कानून के तहत तलाक का एक ऐसा रूप है, जिसके ज़रिए एक पुरुष अपनी पत्नी से तीन महीने के लिए महीने में एक बार "तलाक" कहकर अलग हो सकता है।

    न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत "कानून" की व्याख्या और न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर शायरा बानो मामले में बहुमत की राय के संबंध में सीनियर एडवोकेट एमआर शमशाद की दलील के जवाब में कहा,

    "इन मामलों में सुनवाई योग्यता और अधिकार क्षेत्र मुद्दा नहीं हो सकता। हमारे सामने पीड़ित पक्ष हैं।"

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ इस मुद्दे से संबंधित 9 याचिकाओं पर विचार कर रही थी। मामले को नवंबर में सूचीबद्ध करते हुए खंडपीठ ने राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से जवाब तलब किए।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे ने सुनवाई के दौरान बताया कि तीन तलाक मामले (जहां न्यायालय ने तलाक-ए-बिद्दत को अमान्य घोषित कर दिया था) की सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर ठोस तर्क दिए गए। हालांकि, जस्टिस कांत ने कहा कि न्यायालय इन मामलों की स्वतंत्र रूप से सुनवाई करेगा।

    गौरतलब है कि खंडपीठ ने तर्कों के समर्थन में प्रामाणिक पुस्तकों और/या धर्मग्रंथों सहित किसी भी सामग्री को प्रस्तुत करने की अनुमति दी। इसके अलावा, खंडपीठ ने सूचीबद्ध सभी हस्तक्षेप आवेदनों को भी स्वीकार कर लिया।

    संक्षेप में मामला

    न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध मुख्य याचिका पत्रकार बेनज़ीर हीना द्वारा दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया कि उनके पति ने उन्हें 19 अप्रैल को स्पीड पोस्ट के माध्यम से तलाक का पहला नोटिस भेजा था। दूसरा और तीसरा नोटिस बाद के महीनों में प्राप्त हुआ।

    याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह प्रथा भेदभावपूर्ण है, क्योंकि केवल पुरुष ही इसका प्रयोग कर सकते हैं। वह इस प्रथा को असंवैधानिक घोषित करने की मांग कर रही हैं, क्योंकि यह मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करता है। उनके अनुसार, यह इस्लामी आस्था का अनिवार्य अभ्यास नहीं है।

    इनमें से एक याचिका क्रिकेटर मोहम्मद शमी की पत्नी हसीन जहां ने दायर की।

    अगस्त, 2022 में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम.एम. सुंदरेश की खंडपीठ ने प्रथम दृष्टया यह टिप्पणी की थी कि तलाक-ए-हसन "इतना अनुचित नहीं" है। यह भी कहा गया कि मुस्लिम महिलाओं के पास "खुला" के माध्यम से तलाक लेने का विकल्प है।

    खंडपीठ के पीठासीन जज जस्टिस कौल ने मौखिक रूप से कहा,

    "प्रथम दृष्टया यह (तलाक-ए-हसन) इतना अनुचित नहीं है। महिलाओं के पास भी एक विकल्प है। खुला मौजूद है। प्रथम दृष्टया मैं याचिकाकर्ताओं से सहमत नहीं हूं। मैं नहीं चाहता कि यह किसी अन्य कारण से एजेंडा बने।"

    Case Title: BENAZEER HEENA Versus UNION OF INDIA AND ORS., W.P.(C) No. 348/2022

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