सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी का घर अवैध रूप से गिराने का आरोप लगाने वाली याचिका पर मध्य प्रदेश के अधिकारियों से जवाब मांगा

Shahadat

18 Nov 2025 5:15 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी का घर अवैध रूप से गिराने का आरोप लगाने वाली याचिका पर मध्य प्रदेश के अधिकारियों से जवाब मांगा

    सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के अधिकारियों से उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए याचिकाकर्ता के घर को कथित रूप से अवैध रूप से गिराने के लिए अवमानना ​​कार्यवाही की मांग की गई।

    सीहोर जिले के निवासी इमरोज़ खान नामक याचिकाकर्ता ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने से इनकार करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिकाकर्ता के अनुसार, उनके खिलाफ गैरकानूनी धर्म परिवर्तन का आरोप लगाकर झूठा मामला दर्ज करने के बाद उनका घर गिरा दिया गया।

    याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. एस. मुरलीधर ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ को बताया कि यह मामला 'राज्य की अराजकता' का एक स्पष्ट उदाहरण है।

    उन्होंने कहा:

    "मालिक के फैसले के बावजूद, वही बात - पूरी तरह से राज्य की अराजकता। यह वास्तव में राज्य की अराजकता का एक उदाहरण है।"

    याचिकाकर्ता ने कहा कि वह 2018 से आवासीय संपत्ति में रह रहा है।

    उसकी याचिका के अनुसार,

    "अगस्त, 2025 में मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 2021 के तहत उसके परिवार के खिलाफ दर्ज झूठी और सांप्रदायिक FIR के बाद स्थानीय नगरपालिका अधिकारियों ने मनमाने ढंग से ध्वस्तीकरण नोटिस जारी करना शुरू कर दिया।"

    इस तरह के ध्वस्तीकरण की आशंका के चलते याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की। 12 सितंबर को हाईकोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे कोई भी ध्वस्तीकरण कदम उठाने से पहले, 'इन री: डायरेक्शन्स इन द मैटर ऑफ डिमोलिशन ऑफ स्ट्रक्चर्स' में दिए गए फैसले का अनुपालन सुनिश्चित करें।

    इस आदेश के बावजूद, 15 सितंबर को स्थानीय अधिकारियों ने याचिकाकर्ता के घर को ध्वस्त कर दिया।

    इसके बाद याचिकाकर्ता ने 12 सितंबर के आदेश के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में अवमानना ​​याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट के आदेश की प्रति अधिकारियों को दिखाने के बाद ही ध्वस्तीकरण किया गया।

    8 अक्टूबर को अवमानना ​​याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने यह साबित करने के लिए कोई रिकॉर्ड पेश नहीं किया कि उसे निर्माण कार्य करने की अनुमति थी।

    हाईकोर्ट ने आगे कहा,

    "ऐसा कोई दस्तावेज़ी प्रमाण मौजूद नहीं है, जिससे यह पता चले कि विध्वंस से पहले प्रतिवादियों को आदेश की जानकारी दी गई।"

    याचिकाकर्ता को मुआवज़े के लिए दीवानी मुकदमा दायर करने की अनुमति देते हुए अवमानना ​​का मामला खारिज कर दिया गया।

    याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट ने "अपने आदेशों का पालन सुनिश्चित करने के अपने संवैधानिक कर्तव्य का परित्याग किया। इस प्रकार न्यायिक प्राधिकार के प्रवर्तन को कमज़ोर किया है, जो विधि के शासन की आधारशिला है।"

    याचिका में तर्क दिया गया कि हाईकोर्ट का तर्क "विकृत" है, और तर्क दिया गया कि आदेश की जानकारी होने के बाद अवमानना ​​के लिए सेवा के औपचारिक प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें आगे कहा गया कि हाईकोर्ट ने अपने स्वयं के आदेशों और अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी दृष्टांतों का अनुपालन सुनिश्चित करने के अपने संवैधानिक कर्तव्य का परित्याग किया।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया,

    "याचिकाकर्ता के घर को मनमाने ढंग से और सांप्रदायिक रूप से ध्वस्त करना मौलिक अधिकारों के गंभीर मुद्दों को भी उठाता है। यह कृत्य संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(ई), 21, 25 और 300-ए का उल्लंघन करता है।"

    याचिकाकर्ता ने 08.10.2025 का विवादित आदेश रद्द करने, दोषी अधिकारियों के विरुद्ध अवमानना ​​की घोषणा करने और बहाली, मुआवज़ा तथा जवाबदेही के लिए परिणामी निर्देश देने की मांग की।

    अब मामले की सुनवाई 3 सप्ताह बाद होगी।

    Case Details: IMROZ KHAN vs. SUDHIR KUMAR|SLP(C) No. 033404 - / 2025

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