सुप्रीम कोर्ट ने जमानत आदेश की अनदेखी करने पर सेशन जज से स्पष्टीकरण मांगा, हाईकोर्ट से उन्हें ट्रेनिंग के लिए भेजने को कहा
Shahadat
10 May 2025 10:16 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने उस न्यायिक अधिकारी के आचरण पर नाराजगी जताई, जिसने जमानत मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों की अनदेखी की। मामले को 'चौंकाने वाला' बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया कि उसके खिलाफ सख्त रुख क्यों नहीं अपनाया जाना चाहिए।
कोर्ट ने एमपी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से न्यायिक अधिकारी, एडिशनल सेशन जज को एक सप्ताह के प्रशिक्षण के लिए भेजने का भी अनुरोध किया।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ 24 जनवरी को दिए गए अपने पिछले जमानत आदेश के अनुपालन से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने आरोपी/याचिकाकर्ता को जमानत दी थी।
24 जनवरी के आदेश के अनुसार, याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों के अधीन जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया था। जब याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो उसकी रिहाई के लिए निर्धारित शर्त जुर्माना अदा करना थी, जिसके खिलाफ अपील पहले ही स्वीकार कर ली गई, मगर वह लंबित रही।
याचिकाकर्ता ने जब फिर से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया तो न्यायालय ने 7 मार्च को निर्देश दिया,
"हमारे दिनांक 24.01.2025 के आदेश के क्रम में याचिकाकर्ता को 25,000/- रुपये की राशि के जमानत बांड और समान राशि के दो जमानतदारों को प्रस्तुत करने पर रिहा किया जाएगा।"
8 मार्च के अपने आदेश में ट्रायल कोर्ट ने (1) सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अभियुक्त द्वारा दायर अंतरिम आवेदन की कॉपी मांगी थी ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि क्या ट्रायल कोर्ट के दिनांक 17.2.25 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई;
(2) इसने नोट किया कि अभियुक्त द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अंतरिम आवेदन में ट्रायल कोर्ट के 17.02.2025 के आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें पहले से जमा किए गए 5 लाख रुपये दोषसिद्धि के बाद जुर्माने के विरुद्ध समायोजित किया जाना चाहिए या नहीं।
हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने पाया कि सुप्रीम कोर्ट के 24.01.2025 के आदेश में इस मुद्दे को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं किया गया, बल्कि ₹25,000 की दो जमानतों पर रिहाई की अनुमति देते हुए अपने पहले के निर्देश को जारी रखा गया। चूंकि जुर्माना जमा करने पर कोई स्पष्ट राहत नहीं दी गई, इसलिए ट्रायल कोर्ट ने माना कि जब तक अन्यथा स्पष्ट नहीं किया जाता है, जुर्माना देय है।
फिर भी अभियुक्त के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार और स्पष्टीकरण मांगने के आश्वासन को देखते हुए ट्रायल कोर्ट ने जुर्माना के भुगतान के अलावा दो जमानतें और व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करने पर रिहाई का निर्देश दिया।
ट्रायल कोर्ट ने उसे 30 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का आदेश पेश करने के लिए भी कहा, जिसमें पहले जमा किए गए ₹5 लाख के समायोजन की अनुमति दी गई हो या उसे जुर्माना जमा करने की आवश्यकता से राहत दी गई हो।
ट्रायल कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों पर आपत्ति जताते हुए वर्तमान खंडपीठ ने माना कि ट्रायल कोर्ट का आदेश "ट्रायल कोर्ट की समझ की कमी को दर्शाता है। वास्तव में इस न्यायालय के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है। यहां तक कि आदेश की भाषा और भाव भी आपत्तिजनक है।"
इसके अलावा, इसने न्यायिक अधिकारी को कारण बताओ नोटिस प्रस्तुत करने का निर्देश दिया कि उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से यह भी अनुरोध किया गया कि वह न्यायिक अधिकारी को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने की आवश्यकता के बारे में संवेदनशील बनाने के लिए एक सप्ताह की ट्रेनिंग पर भेजें।