सुप्रीम कोर्ट ने यौन शिक्षा में सुधार और POCSO मामलों की रियल-टाइम ट्रैकिंग के सुझावों पर केंद्र सरकार से राय मांगी

Shahadat

26 May 2025 10:21 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने यौन शिक्षा में सुधार और POCSO मामलों की रियल-टाइम ट्रैकिंग के सुझावों पर केंद्र सरकार से राय मांगी

    सुप्रीम कोर्ट ने यौन शिक्षा नीति में सुधार और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत मामलों की रियल-टाइम ट्रैकिंग और डेटा संग्रह पर न्याय मित्र द्वारा दिए गए सुझावों पर केंद्र सरकार से राय मांगी।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ एक अजीबोगरीब मामले पर विचार कर रही थी। यह मामला POCSO के तहत एक व्यक्ति की सजा से संबंधित है, जहां पीड़ित लड़की नहीं चाहती कि उस व्यक्ति को सजा मिले, क्योंकि वह इस कृत्य को "अपराध" के रूप में नहीं देखती। साथ ही वह (वयस्क होने के बाद) अब दोषी से विवाहित है और उनके एक बच्चा भी है। इसलिए पीड़िता नहीं चाहती कि उस व्यक्ति को सजा मिले, क्योंकि इससे अब उसका परिवार टूट जाएगा।

    एमिक्स क्यूरी ने आरोपी को सजा न देने का सुझाव दिया

    हालांकि, तथ्यों के आधार पर न्यायालय ने सजा के संबंध में दोषसिद्धि बहाल की लेकिन पीड़िता की स्थिति को देखते हुए उसने सजा के संबंध में अलग दृष्टिकोण अपनाया। न्यायालय द्वारा नियुक्त एमिक्स क्यूरी सीनियर एडवोकेट माधवी दीवान और लिज़ मैथ्यू ने न्यायालय को सूचित किया कि अजय कुमार बनाम राज्य (दिल्ली के एनसीटी) में दिल्ली हाईकोर्ट और विजयलक्ष्मी बनाम राज्य में मद्रास हाईकोर्ट ने POCSO Act के उद्देश्यों और कारणों के कथन की व्याख्या किशोरों के बीच सहमति से रोमांटिक संबंधों को आपराधिक बनाने के इरादे से नहीं की है।

    मद्रास हाईकोर्ट ने कई मामलों में कानूनी व्याख्या अपनाई कि सहमति से किए गए कृत्य 'प्रवेशात्मक यौन हमले' के अपराध में 'हमले' की आवश्यकता को पूरा नहीं करते हैं। रंजीत राजवंशी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य में कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि POCSO Act अभियुक्त द्वारा एकतरफा कृत्य के रूप में "प्रवेश" को परिभाषित करता है, विभिन्न हाईकोर्ट ने इस बात पर भी विचार किया कि इस तरह के अभियोजन का पीड़ित पर क्या प्रभाव पड़ता है। यदि मामले को आगे बढ़ाने से पीड़ित को नुकसान पहुंचता है तो कार्यवाही रद्द कर दी।

    एमिक्स क्यूरी ने प्रस्तुत किया कि किशोर संबंधों के मामलों में POCOS Act के कठोर अनुप्रयोग से ऐसे परिणाम सामने आ सकते हैं, जो पीड़िता और उसके आश्रितों के सर्वोत्तम हितों के अनुरूप नहीं हो सकते हैं।

    एमिक्स क्यूरी द्वारा दिए गए व्यापक सुझाव

    उन्होंने समग्र किशोर कल्याण और व्यापक यौन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भी सुझाव दिए। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि यूनेस्को, द जर्नी टूवर्ड्स कॉम्प्रिहेंसिव सेक्सुअलिटी एजुकेशन: ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट (2021) बताती है कि भारत में जीवन-कौशल-आधारित HIV और यौन शिक्षा पर शिक्षा नीतियां केवल माध्यमिक शिक्षा-स्तर पर हैं। इसके आलोक में, उन्होंने भारत में व्यापक यौन शिक्षा की वकालत करते हुए कहा कि व्यवस्थित नीति सुधारों, बेहतर शिक्षक प्रशिक्षण और अधिक समावेशी पाठ्यक्रम के बिना देश बढ़ते किशोर स्वास्थ्य मुद्दों, गलत सूचनाओं और यौन और प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा से जुड़े कलंक को दूर करने में संघर्ष करना जारी रखेगा।

    इसके अलावा, उन्होंने संस्थागत जवाबदेही में सुधार के लिए डेटा संग्रह तंत्र को लागू करने के सुझाव दिए। उन्होंने प्रस्तुत किया कि प्रभावी नीति निर्माण, वास्तविक समय की जवाबदेही और लक्षित हस्तक्षेप सुनिश्चित करने के लिए राज्य स्तर पर एक संरचित डेटा संग्रह तंत्र स्थापित करना महत्वपूर्ण है। यौन शिक्षा कार्यान्वयन, परामर्श सेवाएं, POCSO केस ट्रैकिंग और बाल विवाह निगरानी सहित प्रमुख संकेतकों पर वास्तविक समय के डेटा को इकट्ठा करके सरकारें इन महत्वपूर्ण मुद्दों से निपटने में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ा सकती हैं।

    इसके अलावा, उन्होंने प्रस्तुत किया कि इस डेटा को वास्तविक समय के डैशबोर्ड में एकीकृत करने से प्रगति की निगरानी, ​​संस्थानों को जवाबदेह बनाने और सूचित नीतिगत निर्णय लेने के लिए सार्वजनिक रूप से सुलभ, पारदर्शी तंत्र उपलब्ध होगा।

    न्यायालय ने मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का आह्वान करते हुए दोषी को सजा देने से परहेज किया।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि वह मामले को यहीं नहीं छोड़ सकता और उसे न्यायमित्र द्वारा दिए गए सुझावों को आगे बढ़ाना होगा। इसलिए उसने महिला और बाल विकास मंत्रालय के सचिव के माध्यम से भारत संघ को नोटिस जारी किया। नोटिस की तामील के तुरंत बाद महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव को एमिक्स क्यूरी के सुझावों पर विचार करने के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित करने का निर्देश दिया गया। समिति में राज्य के सीनियर अधिकारी शामिल होंगे।

    समिति को 25 जुलाई तक न्यायालय को विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया।

    भारत के विधि आयोग ने भी किशोरों को कारावास से बचाने के लिए POCSO Act में संशोधन का सुझाव दिया।

    केस टाइटल- किशोरों की निजता के अधिकार के संबंध में

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