सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, महिला यौनकर्मियों आदि के रक्तदान करने पर सामान्य प्रतिबंध के खिलाफ याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

5 March 2021 8:50 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, महिला यौनकर्मियों आदि के रक्तदान करने पर सामान्य प्रतिबंध के खिलाफ याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस रिट याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है जिसमें रक्तदान दिशा-निर्देशों को को चुनौती दी गई है जहां ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, महिला यौनकर्मियों आदि के रक्तदान करने पर सामान्य प्रतिबंध लगाया गया है।

    सीजेआई एस ए बोबडे की अगुवाई वाली एक बेंच ने अधिवक्ता जयना कोठारी की सुनवाई के बाद याचिका पर नोटिस जारी किया, लेकिन अदालत ने यह कहते हुए कि वो वैज्ञानिक मुद्दों की विशेषज्ञ नहीं है, इन पर रोक लगाने की अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।

    ट्रांसजेंडर समुदाय के एक सदस्य, थंजम संता सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका में अक्टूबर 2017 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तत्वावधान में केंद्रीय रक्त आधान परिषद और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन द्वारा जारी "रक्तदाता चयन और रक्तदाता रेफरेल, दिशानिर्देश" 2017 को चुनौती दी गई है।

    दलीलों में कहा गया है कि उक्त दिशानिर्देशों के खंड 12 और 51 में मनमाने ढंग से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, समलैंगिक पुरुषों और महिला यौनकर्मियों को उच्च जोखिम वाले एचआईवी / एड्स की श्रेणी में रखा गया है और उन्हें रक्त दान करने से प्रतिबंधित किया गया है।

    यह निवेदन किया गया है कि केवल उनकी लैंगिक पहचान / यौन उन्मुखीकरण के आधार पर,व्यक्तियों के उपरोक्त वर्ग का बहिष्करण, अनुचित ही नहीं, बल्कि अवैज्ञानिक भी है।

    याचिका में कहा गया है,

    "सभी रक्त इकाइयां जो दानदाताओं से एकत्र की जाती हैं, उन्हें हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी और एचआईवी / एड्स सहित संक्रामक रोगों के लिए परीक्षण किया जाता है और इसलिए उन्हें स्थायी रूप से रक्त दान करने से रोकने और अन्य रक्त दाताओं के समान उन्हें केवल उनकी लिंग पहचान और यौन उन्मुखीकरण के आधार पर उच्च जोखिम के रूप में वर्गीकृत करके बाहर रखा जाना उनके अधिकार का उल्लंघन है। "

    इसमें जोड़ा गया है,

    "ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुष और महिला यौनकर्मियों पर रोक स्टीरियोटाइप रूढ़ियों के आधार पर मान्यताओं के चलते लगाई गई है जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत भेदभाव करती है और उन्हें अनुच्छेद 14 के तहत समान गरिमा से वंचित किया जाता है क्योंकि उन्हें सामाजिक भागीदारी और स्वास्थ्य सेवा में अयोग्य और कमतर समझा जाता है। "

    इसके लिए नालसा बनाम भारत संघ (2014) 5 SCC 438 और नवतेज जौहर बनाम भारत संघ (2018) 10 SCC 1 पर भरोसा रखा गया है।

    यह दलील दी गई है कि दुनिया भर में, रक्त दान पर दिशा-निर्देशों को लिंग पहचान के आधार पर तैयार नहीं करने के लिए कहा किया गया है और वे केवल पिछले उच्च जोखिम वाले यौन संपर्क से 3 महीने या 45-दिवसीय बचाव को निर्धारित करते हैं।

    इस पृष्ठभूमि में, याचिका में कहा गया है,

    "रक्त दाता दिशानिर्देशों को सभी दाताओं के लिए एक व्यक्तिगत प्रणाली पर आधारित होने की आवश्यकता होती है, जो कथित जोखिम वाला नहीं है और पहचान पर आधारिक नहीं है। वर्तमान में लागू दिशानिर्देश कलंकित कर रहे हैं क्योंकि वे इस आधार पर नहीं हैं कि एचआईवी संचरण वास्तव में कैसे काम करता है, और न ही वे विशिष्ट गतिविधियों में शामिल वास्तविक जोखिम पर आधारित हैं, बल्कि केवल दाताओं की पहचान पर आधारित होते हैं, जैसे कि वे ट्रांसजेंडर, समलैंगिक या उभयलिंगी पुरुष या महिला यौनकर्मी हैं। "

    अन्त में यह आग्रह किया गया है कि COVID-19 संकट को देखते हुए, जहां आपातकालीन और ऐच्छिक सर्जरी और उपचार के लिए पहले से कहीं अधिक रक्त की आवश्यकता होती है, ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों पर अपने परिवार और समुदाय के लिए और महामारी से प्रभावित लोगों को जीवनरक्षक रक्त प्राप्त करने की मांग को पूरा करने के लिए भरोसा करना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

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