जेंडर पहचान के कारण रोजगार में भेदभाव का आरोप लगाने वाली ट्रांसवुमन द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
Shahadat
11 Dec 2024 9:16 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसवुमन शिक्षिका द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा, जिसकी नियुक्ति कथित तौर पर उसकी जेंडर पहचान के खुलासे के बाद गुजरात और उत्तर प्रदेश दोनों में दो अलग-अलग स्कूलों में समाप्त कर दी गई।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कोर्ट ने 2 जनवरी को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने पक्षों से 2 सप्ताह के भीतर लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा।
भारत के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले पर उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए भारत संघ, राज्य सरकारों और स्कूलों को नोटिस भेजने का निर्देश दिया। इसके बाद कोर्ट ने उसकी लिंग पहचान के कारण उसके साथ किए गए भेदभावपूर्ण व्यवहार को व्यक्त किया।
नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (2014) में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस एके सीकरी की बेंच ने थर्ड जेंडर को कानूनी तौर पर मान्यता दी। इसने पाया कि ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता देने वाले कानून का न होना शिक्षा और रोजगार में समान अवसरों का लाभ उठाने में उनके साथ भेदभाव करने का आधार नहीं बन सकता। इसके बाद 2019 में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम लागू किया गया।
केस टाइटल: जेन कौशिक बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 1405/2023