समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता दिलाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

Avanish Pathak

11 May 2023 11:16 AM GMT

  • समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता दिलाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

    सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दस दिनों की सुनवाई के बाद गुरुवार को समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने संबंधी याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

    चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने 18 अप्रैल को मामले की सुनवाई शुरू की थी।

    मौजूदा मुद्दे पर पीठ के समक्ष बीस याचिकाएं हैं, जिसे विभिन्न समलैंगिक जोड़ों, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और LGBTQIA+ कार्यकर्ताओं ने दायर किया है।

    याचिकाओं में विशेष विवाह अधिनियम 1954, हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और विदेशी विवाह अधिनियम 1969 के प्रावधानों को उस सीमा तक चुनौती दी गई है कि ये कानून समलैंगिक विवाहों को मान्यता नहीं देते।

    सुनवाई के दरमियान पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे को केवल विशेष विवाह अधिनियम तक ही सीमित रखेगी और व्यक्तिगत कानूनों को नहीं छुएगी।

    इस मामले में एक महत्वपूर्ण विकास केंद्र सरकार की ओर से व्यक्त की गई इच्छा थी - जिसने इस आधार पर याचिकाओं का विरोध किया था कि यह संसद के लिए तय करने का मामला है कि क्या समान-लिंगी जोड़ों को कुछ अधिकार प्रदान किए जा सकते हैं, जिसमें विवाह के रूप में कानूनी मान्यता जैसा मुद्दा भी शामिल हो।

    न्यायालय की ओर से केंद्र सरकार से पूछा गया था कि क्या यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ कार्यकारी निर्देश जारी किए जा सकते हैं कि समान-लिंगी जोड़ों के पास कल्याणकारी उपायों और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच हो - जैसे कि संयुक्त बैंक-खाते खोलने की अनुमति, पार्टनर को जीवन बीमा पॉलिसी, पीएफ, पेंशन आदि में नॉमिनी बनाने की छूट आदि।

    पीठ ने इस बात पर भी विचार किया कि क्या समलैंगिक जोड़ों के लिए विवाह के अधिकार की घोषणा मौजूदा कानूनों में हस्तक्षेप किए बिना जारी की जा सकती है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि विशेष विवाह अधिनियम में "पति" और "पत्नी" शब्दों को लिंग तटस्थ तरीके से "पति" या "व्यक्ति" के रूप में पढ़ा जाना चाहिए।

    केंद्र सरकार ने यह कहकर इसका विरोध किया कि विशेष विवाह अधिनियम को पूरी तरह से अलग उद्देश्य को ध्यान में रखकर बनाया गया था और जब 1954 में इसे पारित किया गया था, तो विधायिका ने कभी भी समलैंगिक जोड़ों को इसके दायरे में लाने पर विचार नहीं किया।

    केंद्र ने यह भी कहा कि इस तरह की व्याख्या विभिन्न अन्य कानूनों को बाधित करेगी जो गोद लेने, रखरखाव, सरोगेसी, उत्तराधिकार, तलाक आदि से संबंधित हैं।

    राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने की अनुमति देने के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए हस्तक्षेप किया। दूसरी ओर, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने याचिकाओं का समर्थन किया और समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने के अधिकार का समर्थन किया।


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