'कविता राष्ट्र-विरोधी नहीं, पुलिस को इसे पढ़ना और समझना चाहिए': सुप्रीम कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज FIR पर फैसला सुरक्षित रखा

Shahadat

3 March 2025 7:48 AM

  • कविता राष्ट्र-विरोधी नहीं, पुलिस को इसे पढ़ना और समझना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज FIR पर फैसला सुरक्षित रखा

    सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्होंने सोशल मीडिया पर उनके द्वारा पोस्ट की गई कविता को लेकर गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR रद्द करने की मांग की।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से टिप्पणी की कि "ऐ खून के प्यासे बात सुनो" कविता वास्तव में अहिंसा का संदेश दे रही है। साथ ही कहा कि पुलिस को FIR दर्ज करने से पहले संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी।

    जस्टिस ओक ने कहा,

    "यह वास्तव में अहिंसा को बढ़ावा देता है। इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, इसका किसी भी राष्ट्र-विरोधी गतिविधि से कोई लेना-देना नहीं है। पुलिस ने संवेदनशीलता की कमी दिखाई।"

    गुजरात राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि लोगों ने कविता का अर्थ अलग तरह से समझा होगा।

    जस्टिस ओक ने जवाब दिया,

    "यही समस्या है। अब किसी को रचनात्मकता का सम्मान नहीं है। अगर आप इसे (कविता) सीधे-सादे ढंग से पढ़ें तो यह कहती है कि अगर आप अन्याय सहते हैं तो भी आप इसे प्यार से सहते हैं।"

    जस्टिस ओक ने बताया कि कविता का शाब्दिक अर्थ यह है - जो खून के प्यासे हैं, वे हमारी बात सुनें। अगर न्याय की लड़ाई में अन्याय भी मिले तो हम उस अन्याय का जवाब प्यार से देंगे।

    एसजी ने कहा कि याचिकाकर्ता का तर्क यह था कि कविता उनकी सोशल मीडिया टीम ने अपलोड की थी। हालांकि, उन्हें टीम की कार्रवाई की जिम्मेदारी लेनी होगी।

    जस्टिस ओक ने कहा कि पुलिस को मामले में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी।

    उन्होंने कहा,

    "पुलिस को कुछ संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। उन्हें कम से कम पढ़ना और समझना चाहिए। संविधान के अस्तित्व में आने के 75 साल बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम से कम अब पुलिस को तो समझना ही होगा।"

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने न्यायालय से गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले के बारे में कुछ टिप्पणियां करने का आग्रह किया, जिसमें मामला रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

    सिब्बल ने कहा,

    "देखिए हाईकोर्ट जज क्या कहते हैं। माननीय जजों को इस पर कुछ कहना चाहिए।"

    उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट को भी संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।

    हाईकोर्ट का बचाव करते हुए एसजी मेहता ने कहा,

    "मैंने न्यायालय के प्रति निष्पक्षता बरती है, लेकिन हाईकोर्ट के खिलाफ टिप्पणी करने की ओर नहीं बढ़ना चाहिए। मेरे मित्र कहते हैं कि देश किस ओर जा रहा है..."

    सिब्बल ने पलटवार किया,

    "सुप्रीम कोर्ट कई फैसलों की आलोचना करता है। इसमें क्या गलत है?"

    पिछली सुनवाई के दौरान भी कोर्ट ने FIR पर सवाल उठाते हुए कहा था कि पुलिस और हाईकोर्ट ने कविता के वास्तविक अर्थ को नहीं समझा।

    केस टाइटल- इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य

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