ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट को चुनौती पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
Shahadat
11 Nov 2025 6:41 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 (Tribunal Reforms Act) को चुनौती देने वाले मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 की वैधता से संबंधित मद्रास बार एसोसिएशन के मामले की सुनवाई कर रही थी।
एसोसिएशन ने इस अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों के विपरीत बताते हुए चुनौती दी, जिनमें कहा गया कि ट्रिब्यूनल के सदस्यों का कार्यकाल कम से कम 5 साल होना चाहिए, कम से कम 10 साल के अनुभव वाले वकीलों को पात्र माना जाना चाहिए, आदि।
इससे पहले खंडपीठ ने केंद्र सरकार के समक्ष विवादित अधिनियम को आकार देने के पीछे के कारण प्रस्तुत किए थे।
केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने स्पष्ट किया कि विवादित अधिनियम लाने का उद्देश्य ट्रिब्यूनल की चयन प्रक्रियाओं में एकरूपता की आवश्यकता थी।
अटॉर्नी जनरल ने इस तर्क को और विस्तार देते हुए कहा कि ऐसा नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों ने एक समान प्रक्रिया के विरुद्ध निर्णय दिया हो।
उन्होंने कहा,
"रोजर मैथ्यू मामले में एकरूपता का बहुत स्वागत किया गया। रोजर मैथ्यू ने यह नहीं कहा था कि - एकरूपता बिल्कुल न रखें, अपनी पुरानी व्यवस्थाओं पर वापस जाएं।"
उन्होंने आगे कहा,
"ऐसा नहीं है कि एकरूपता किसी भी विचार या धारणा के लिए अभिशाप है।"
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया था कि संघ ऐसा अधिनियम कैसे पारित कर सकता है, जो सुप्रीम कोर्ट के पिछले निर्णयों के विपरीत हो।
उल्लेखनीय है कि मद्रास बार एसोसिएशन III (एमबीए III) और रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड एवं अन्य के पिछले निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट ने अन्य प्रावधानों के अलावा, कार्यकाल को 4 वर्ष तक सीमित करने, न्यूनतम आयु सीमा 10 वर्ष निर्धारित करने और खोज-सह-चयन समिति को प्रत्येक पद के लिए दो नामों की सिफारिश करने की अनुमति देने वाले प्रावधानों को रद्द कर दिया था। हालांकि, इन प्रावधानों को 2021 के अधिनियम में पुनः शामिल किया गया।
एजी ने न्यायालय से यह भी आग्रह किया कि वह अपना दृष्टिकोण केवल एमबीए III और एमबीए IV की टिप्पणियों तक ही सीमित न रखे। उनके अनुसार, पिछले निर्णयों के निर्णयों को वर्तमान मामले में कठोर अर्थों में लागू नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा,
"कृपया इस धारणा पर अड़े न रहें कि आप एमबीए III या IV से बंधे हैं। वे इसके विकास की पूरी कहानी का केवल एक भाग, एक अध्याय हैं... न तो एमबीए III और न ही एमबीए IV को सरकार पर बाध्यकारी अनम्य निर्देश कहा जा सकता है।"
एमबीए की ओर से सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार ने प्रत्युत्तर में संक्षिप्त प्रस्तुतियां दीं।
दातार ने मुख्य रूप से तर्क दिया था कि विवादित अधिनियम के निम्नलिखित प्रावधान न्यायालय के पिछले निर्णयों के विपरीत हैं - (1) न्यायाधिकरण के सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष होनी चाहिए; (2) अध्यक्ष पद के लिए दो व्यक्तियों की सिफारिश को अनिवार्य करने वाली खोज-सह-चयन समिति; (3) न्यायाधिकरण के सदस्य/अध्यक्ष का कार्यकाल 4 वर्ष का होना चाहिए।
दातार ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि अध्यक्ष पद के लिए दो नामों की सिफ़ारिश का प्रावधान नहीं होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि चयन मेरिट सूची के अनुसार होना चाहिए, न कि प्रतीक्षा सूची के उम्मीदवारों को नज़रअंदाज़ करके नियुक्ति की जानी चाहिए।
Case Title: MADRAS BAR ASSOCIATION Versus UNION OF INDIA AND ANR., W.P.(C) No. 1018/2021

