दिल्ली दंगा मामले में उमर खालिद, शरजील, गुलफिशा समेत अन्य की जमानत याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
Praveen Mishra
10 Dec 2025 4:12 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (9 दिसंबर) को 2020 के दिल्ली दंगा larger conspiracy मामले में उमार खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, मीरा हैदर, शिफा-उर-रहमान, मोहम्मद सलीम खान और शादाब अहमद की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया। यह सभी याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट के 2 सितंबर के फैसले के खिलाफ दायर की गई थीं, जिसमें इनकी जमानत Plea खारिज कर दी गई थी। आरोपियों को पाँच वर्ष से अधिक समय से हिरासत में रखा गया है और उन पर यूएपीए समेत कई गंभीर धाराओं में आरोप हैं।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने कहा कि अदालत अब मामले पर विचार करेगी और उपयुक्त समय पर फैसला सुनाएगी।
याचिकाकर्ताओं का पक्ष
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी, कपिल सिब्बल और सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि—
पाँच से छह साल की लंबी हिरासत के बावजूद कथित साज़िश या हिंसा में प्रत्यक्ष भूमिका के सबूत नहीं मिले हैं।
ट्रायल शुरू होने की कोई संभावना नज़र नहीं आती, जिससे आरोपियों को अनिश्चितकाल तक जेल में रखना न्यायसंगत नहीं है।
गुलफिशा फातिमा की ओर से कहा गया कि उनकी जमानत अर्जी 90 बार सूचीबद्ध हुई, लेकिन बार-बार मामले की सुनवाई टलने से उन्हें अनुचित रूप से जेल में रखा गया है।
कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि दंगों के समय उमार खालिद दिल्ली में थे ही नहीं और अमरावती में दिया गया उनका भाषण शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अपील था।
उन्होंने कहा कि छात्र संगठनों द्वारा विरोध प्रदर्शन, चक्का जाम आदि को यूएपीए के तहत “आतंकी गतिविधि” नहीं माना जा सकता।
प्रोसेक्यूशन का पक्ष
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने अदालत को बताया कि गवाहों के बयान, डिजिटल चैट्स, WhatsApp ग्रुप संदेश, Signal पर माइग्रेशन और मैसेज डिलीट करने की घटनाएँ पूर्व-नियोजित साज़िश की ओर इशारा करती हैं।
दिसंबर 2019 से फरवरी 2020 तक हुई कई बैठकों—जिनमें इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट, शाहीन बाग, पीएफआई ऑफिस और सीलमपुर शामिल हैं—से यह साबित होता है कि दंगे योजनाबद्ध थे।
उन्होंने कहा कि पैरिटी और बदलती परिस्थितियों के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती क्योंकि कई तथ्य बचाव पक्ष ने गलत तरीके से प्रस्तुत किए हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
आरोपी 2019–20 के CAA विरोध प्रदर्शनों के दौरान सक्रिय छात्र कार्यकर्ता थे। पुलिस का आरोप है कि इन्होंने दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों के पीछे “बड़ी साज़िश” रची। कई आरोपियों, जैसे आसिफ इक़बाल तनहा, देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और सफूरा ज़रगर को पहले ही जमानत मिल चुकी है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 सितंबर के अपने फैसले में उमार खालिद, शरजील इमाम, अथर खान, खालिद सैफी, मोहम्मद सलीम खान, शिफा-उर-रहमान, मीरा हैदर, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद की जमानत याचिकाएँ खारिज कर दी थीं।
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